जर्मनी ने कहा है कि भारत के बिना जलवायु परिवर्तन की समस्या का हल संभव नहीं है. दोनों देश अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग को ज्यादा मजबूत बनाकर बेहतर भविष्य की ओर कदम बढ़ा रहे हैं.जर्मनी की आर्थिक सहयोग और विकास मंत्री स्वेन्या शुल्त्से भारत के दौरे पर हैं. वह एक औद्योगिक प्रतिनिमंडल के साथ गुजरात की राजधानी गांधीनगर में चौथे रि-इनवेस्ट सम्मेलन में हिस्सा ले रही हैं. इस सम्मेलन का मकसद अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में ज्यादा-से-ज्यादा वैश्विक निवेश को आकर्षित करना है. 16 सितंबर से 18 सितंबर तक चलने वाले इस सम्मेलन में जर्मनी को अहम साझीदार देशों में शामिल किया गया है.
शुल्त्से ने डीडब्ल्यू हिन्दी के साथ खास बातचीत में कहा, "मुझे लगता है कि हम जलवायु परिवर्तन की समस्या को भारत के बिना हल नहीं कर सकते. भारत दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी वाला देश है, वह पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, तो भारत को समस्या का समाधान बनना होगा." उन्होंने कहा कि भारत और जर्मनी अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में अपनी साझेदारी को मजबूत करके जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई को आगे ले जा रहे हैं.
पवन ऊर्जा का लक्ष्य कैसे पूरा करेगा जर्मनी
इससे पहले, सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी भारत में अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में ज्यादा-से-ज्यादा निवेश की अपील की. उन्होंने कहा कि सरकार ऐसी नीतियां बना रही है, जिससे अक्षय ऊर्जा की बढ़ती मांग को पूरा किया जा सके. मोदी ने अक्षय ऊर्जा को लेकर अपने अंदाज में चुटकी भी ली. उन्होंने कहा, "अभी-अभी भाषण देकर गए प्रह्लाद जोशी हमारे अक्षय ऊर्जा मंत्री हैं, लेकिन मेरी पिछली सरकार में वह कोयला मंत्री थे. तो मेरे तो मंत्री भी कोयले से अक्षय ऊर्जा की तरफ जा रहे हैं!"
दीर्घकालीन साझेदारी जरूरी
भारत की कुल ऊर्जा का 80 फीसदी हिस्सा अब भी जीवाश्म ईंधनों से आता है, खासकर कोयले से. यह कार्बन उत्सर्जन का एक बड़ा कारण है. शुल्त्से ने उम्मीद जताई, "दोनों देशों के बीच अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में साझेदारी बढ़ेगी, तो कोयले का इस्तेमाल धीरे-धीरे खत्म हो जाएगा." उन्होंने बताया कि जर्मनी की बहुत सी कंपनियां भारत में निवेश करना चाहती हैं.
भारत को अहम साझीदार बताते हुए जर्मनी की आर्थिक सहयोग और विकास मंत्री ने बताया, "हम भारत और जर्मनी के बीच अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में एक प्लेटफॉर्म शुरू कर रहे हैं क्योंकि हमारे पास बहुत सारा अनुभव और तकनीकी जानकारी है. अक्षय ऊर्जा को खड़ा करने के लिए इसकी जरूरत है और भारत ऐसा बाजार है, जो तेजी से बढ़ रहा है. तो बहुत सारे लोग अक्षय ऊर्जा में निवेश करना चाहते हैं."
प्रकृति और पर्यावरण के सामने मौजूद चुनौतियों को देखते हुए शुल्त्से ने दीर्घकालीन साझेदारी की जरूरत पर जोर दिया. उनके मुताबिक, "समाज को बदलने और सस्टेनेबिलिटी की तरफ ले जाने का मतलब है लंबी साझेदारी. यह काम चंद हफ्तों या महीनों का नहीं है." उन्होंने कहा कि भारत और जर्मनी इस दिशा में मिलकर जो कदम उठाएंगे, उसपर बहुत सारे दूसरे देशों में भी अमल किया जा सकता है और इससे जलवायु परिवर्तन जैसी गंभीर वैश्विक समस्या को हल करने में मदद मिलेगी.
हर घर बनाएगा अपनी बिजली
भारत अभी दुनिया में कार्बन डाई ऑक्साइड का तीसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक है. हालांकि, उसका प्रति व्यक्ति उत्सर्जन अब भी काफी कम है. 'ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट' की रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में भारत का प्रति व्यक्ति उत्सर्जन दो टन था. जर्मनी में यह आंकड़ा 8.9 टन है और वैश्विक औसत है 4.7 टन. इसका मतलब है कि भारत में दुनिया की करीब 18 प्रतिशत आबादी रहती है, लेकिन ग्रीन हाउस गैसों के वैश्विक उत्सर्जन में उसकी हिस्सेदारी लगभग 7.6 प्रतिशत है.
भारत जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों और परिणामों से वाकिफ है. इसीलिए वह अक्षय ऊर्जा की तरफ तेजी से कदम बढ़ा रहा है. अभी भारत में अक्षय ऊर्जा स्रोतों से 200 मेगावॉट बिजली बन रही है. साल 2030 तक इसे बढ़ाकर 500 मेगावाट तक ले जाने का लक्ष्य है. इस बारे में उठाए जा रहे कदमों पर बोलते हुए मोदी ने 'पीएम सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना' का खासतौर से जिक्र किया. उन्होंने बताया कि इन अनोखी पहल के तहत परिवारों को अपने घरों में सोलर सिस्टम लगाने के लिए वित्तीय मदद दी जा रही है. मोदी ने कहा, "अब तक 1.3 करोड़ लोगों ने इस योजना के लिए रजिस्टर किया है और 3.25 घरों में तो सोलर सिस्टम इंस्टॉल भी किया जा चुका है."
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प्रधानमंत्री मोदी ने बताया कि इस योजना की मदद से हर घर ना सिर्फ अपनी खुद की ऊर्जा जरूरत पूरी कर सकेगा, बल्कि अतिरिक्त बिजली ग्रिड को बेचकर पैसे भी कमा सकता है. इसके अलावा भारत के 17 शहरों को सोलर सिटी के तौर पर विकसित किए जाने की भी योजना है. पीएम मोदी ने बताया कि इन शहरों में अधोध्या भी शामिल है जहां बहुत से घरों, इमारतों और स्ट्रीट लाइटों समेत कई चीजों को सोलर एनर्जी से जोड़ दिया गया है. इसके अलावा उन्होंने बीते साल में परमाणु ऊर्जा से बिजली बनाने में 35 फीसदी की वृद्धि और 'ग्रीन हाइड्रोजन मिशन' जैसी योजनाएं शुरू करने का जिक्र भी किया.
साझेदारी की मिसाल मेट्रो
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 16 सितंबर को ही गांधीनगर और अहमदाबाद को जोड़ने वाली मेट्रो की नई लाइन को हरी झंडी दिखाई. जर्मनी इस प्रोजेक्ट में भी अहम भूमिका निभा रहा है. 60 करोड़ यूरो के इस प्रोजेक्ट का एक हिस्सा जर्मन विकास बैंक ने कर्ज के रूप में मुहैया कराया है. जर्मन कंपनी सीमेंस इसमें तकनीकी तौर पर मदद दे रही है.
स्वेन्या शुत्ल्से जब 15 सितंबर की शाम भारत पहुंचीं, तो उन्होंने सबसे पहले इसी मेट्रो लाइन पर सवारी की. करीब 90 लाख की आबादी वाले अहमदाबाद में मेट्रो ना सिर्फ आने-जाने का एक बेहतर साधन मुहैया कराती है, बल्कि ईको फ्रेंडली भी है. इसीलिए जर्मन मंत्री ने इसे साझेदारी की एक अच्छी मिसाल बताया.
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शुल्त्से ने कहा कि उनके लिए अहमदाबाद मेट्रो में सफर करना वैसा ही अनुभव रहा, जैसे कि वह बर्लिन मेट्रो में बैठी हों. उन्होंने डीडब्ल्यू हिंदी के साथ बातचीत में कहा, "यहां पर बहुत ज्यादा लोग हर दिन मेट्रो से सफर करते हैं. और यह साफ है, सुरक्षित है और जर्मन टेक्नोलॉजी की वजह से हर दिन काम करती है, तो हमें गर्व है कि हम भारत की इस तरह मदद कर रहे हैं."