लखनऊ, 24 नवंबर : उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य ढांचे को दुरुस्त रखने के लिए यूपी सरकार द्वारा शुरू की गई महत्वाकांक्षी योजना मिशन निरामया: के अंतर्गत अब स्टेट मेडिकल फैकल्टी (State Medical Faculty) ने नर्सिंग एवं पैरामेडिकल संस्थानों का वार्षिक मूल्यांकन करने का निर्णय लिया है. इसमें चयनित संस्थानों को उनके शिक्षण, अध्यापन व उनके बुनियादी ढांचे की उपलब्धता और छात्रों के व्यवहारिक कौशल पर मूल्यांकन किया जाएगा. ऐसे सभी संस्थानों का मूल्यांकन एक स्वतंत्र एजेंसी के द्वारा किया जाएगा और इस कार्य का उत्तरदायित्व भारतीय गुणवत्ता परिषद (क्यूसीआई) को सौंपा गया है.
उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) के कुशल मार्गदर्शन में प्रदेश में स्वास्थ्य व्यवस्थाएं निरंतर नई ऊंचाइयों की ओर अग्रसर है. ऐसे ही सकारात्मक प्रयासों के साथ चिकित्सा क्षेत्र को और अधिक मजबूती देने व स्वास्थ्य कर्मचारियों की क्षमता बढ़ाने के लिए सीएम योगी ने 22 अक्टूबर को 'मिशन निरामया:' की शुरूआत की थी. इस मिशन के माध्यम से चिकित्सा शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार हेतु नसिर्ंग एवं पैरामेडिकल संस्थानों के साथ मिलकर काम करने की दिशा में विभिन्न प्रयास किए जा रहे हैं. यह भी पढ़ें : Shraddha Murder Case Update: श्रद्धा के हत्यारे को कम समय के भीतर कठोर सजा दिलाएंगे- अमित शाह
क्यूसीआई ने चिकित्सा शिक्षा के तकनीकी भागीदारों के सहयोग से पहले ही एक विस्तृत ऑनलाइन स्व-मूल्यांकन फॉर्म तैयार किया है. सभी संस्थानों द्वारा इस फॉर्म को भरकर ऑनलाइन जमा किया जाएगा, जिसके बाद क्यूसीआई टीम पूरे राज्य में सभी संस्थानों का भौतिक रूप से मूल्यांकन करेगी और उसी आधार पर अंतिम रेटिंग 2023 की पहली तिमाही के अंत में शुरू की जाएगी.
प्रमुख सचिव, चिकित्सा शिक्षा विभाग, उत्तर प्रदेश सरकार आलोक कुमार ने भी इसके प्रति स्पष्ट जानकारी दी. उन्होंने बताया कि ये मिशन निरामया: के तहत उत्तर प्रदेश को हेल्थकेयर जनशक्ति के केंद्र के रूप में स्थापित करने की दिशा में किए गए कई प्रारंभिक और बहुत महत्वपूर्ण कदमों में से एक है. उन्होंने आगे कहा कि संस्थानों की रेटिंग से एक ओर तो भावी नसिर्ंग एवं पैरामेडिकल छात्र-छात्राओं को अच्छे संस्थान के लिए निर्णय करने में मदद मिलेगी. साथ ही ऐसे संस्थान जहां ऐसी व्यवस्थाओं का अभाव है उनके सुधार के क्षेत्रों को जानने में भी मदद मिलेगी.
आलोक कुमार के अनुसार, जो संस्थान औसत से नीचे प्रदर्शन कर रहे हैं उनको बेहतर कार्य करने वाले संस्थानों द्वारा मार्गदर्शन दिया जाएगा ताकि पूरे राज्य में संस्थानों की गुणवत्ता में सुधार हो सके. ऐसे संरक्षक व मार्गदर्शक संस्थानों की पहचान और उनके प्रशिक्षण का कार्य पहले से ही चल रहा है. कोई भी संस्थान जो सुधार के बाद पुनर्मूल्यांकन करना चाहता है वो अपनी लागत पर 3 साल की अवधि के भीतर कभी भी ऐसा कर सकता है.
*संस्थानों के मानकों में सुधार का प्रयास*
विशेष सचिव, चिकित्सा शिक्षा विभाग दुर्गा शक्ति नागपाल ने कहा कि यह कदम नसिर्ंग एवं पैरामेडिकल संस्थानों के बीच निरंतर गुणवत्ता सुधार को एक संस्थागत ढांचा बनाने में काफी मददगार साबित होगा. हम एक ऐसे ही वातावरण व सिस्टम के निर्माण के लिए मिशन निरामया: के तहत अपनी पहल व प्रयास जारी रखेंगे जहां ये संस्थान सुधार के साथ-साथ अपने मानकों को ऊपर उठाने में भी सक्षम होंगे. रेटिंग की पूरी प्रक्रिया को रेटिंग दिशानिर्देशों के रूप में पंजीकृत किया गया है जिसे स्टेट मेडिकल फैकल्टी की आधिकारिक वेबसाइट से डाउनलोड किया जा सकता है.