उत्तर प्रदेश: इलाहाबाद हाईकोर्ट के समक्ष धर्मातरण रोधी अध्यादेश की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने के लिए जनहित याचिका की दायर

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष उत्तर प्रदेश सरकार की धर्मातरण रोधी अध्यादेश की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने के लिए एक जनहित याचिका दायर की गई है. कोर्ट द्वारा याचिका स्वीकार किया जाना अभी बाकी है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 31 अक्टूबर, 2020 को एक बयान दिया था कि उनकी सरकार 'लव जिहाद' के खिलाफ एक कानून लाएगी.

इलाहाबाद हाईकोर्ट/प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credits: Twitter)

प्रयागराज/उत्तर प्रदेश, 13 दिसंबर: इलाहाबाद उच्च न्यायालय (Allahabad High Court) के समक्ष उत्तर प्रदेश सरकार की धर्मातरण रोधी अध्यादेश की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने के लिए एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की गई है. कोर्ट द्वारा याचिका स्वीकार किया जाना अभी बाकी है. एक अधिवक्ता, सौरभ कुमार ने यह कहते हुए अदालत का रुख किया है कि उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश (Religion Conversion Prohibition Ordinance), 2020 नैतिक और संवैधानिक दोनों रूप से अवैध है.

उन्होंने अदालत से इस कानून को 'संवैधानिक अधिकार से परे' घोषित करने का अनुरोध किया है. इसके अलावा, याचिकाकर्ता ने अदालत से अनुरोध किया है कि अधिकारियों को निर्देश दिया जाए कि वह अध्यादेश के अनुपालन में कोई ठोस कार्रवाई न करें जो पिछले महीने घोषित किया गया था.

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याचिका के अनुसार, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 31 अक्टूबर, 2020 को एक बयान दिया था कि उनकी सरकार 'लव जिहाद' के खिलाफ एक कानून लाएगी, यह शब्द मुस्लिम पुरुषों और हिंदू महिलाओं के बीच विवाह को बदनाम करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है, और इसे हिंदू महिलाओं के धर्म परिवर्तन को बढ़ावा देने की एक साजिश का हिस्सा बताया जाता है.

मुख्यमंत्री ने अपने बयान में, इस मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एकल पीठ के फैसले का उल्लेख किया था जिसमें कहा गया था कि सिर्फ विवाह के लिए धर्म परिवर्तन करना अवैध है. याचिकाकर्ता ने बताया कि कुछ दिनों बाद, उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने एकल पीठ के फैसले को खारिज कर दिया.

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