भारत ने जोर देकर कहा है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (United Nations Security Council) का स्थायी सदस्य बनाए जाने के लिए उसका पक्ष मजबूत है और यूएनएससी में भारत के नहीं होने से संयुक्त राष्ट्र की विश्वसनीयता प्रभावित होती है. विदेश मंत्री एस जयशंकर (S.Jaishankar) ने अमेरिकी थिंक टैंक सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज में विदेश नीति पर भाषण देने के बाद वाशिंगटन की प्रभावशाली सभा को संबोधित किया.
कहा कि, "यदि आपके पास ऐसा संयुक्त राष्ट्र है जिसमें संभवत: 15 साल में बनने वाला दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश और तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश निर्णय लेने वालों में शामिल नहीं है, तो मैं मानता हूं कि इससे वह देश प्रभावित होता है."
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जयशंकर ने एक सवाल के जवाब में कहा, "लेकिन साथ ही मेरा यह भी समझना है कि इससे संयुक्त राष्ट्र की विश्वसनीयता भी प्रभावित होती है." उन्होंने कहा, "हमारा मानना है कि इस संबंध में हमारा पक्ष मजबूत है."
जयशंकर ने कहा, "यह केवल सुरक्षा परिषद की बात नहीं है. देखिए, शांतिरक्षा अभियान किस प्रकार चलाए जा रहे है, कौन निर्णय ले रहा है. अन्य पहलू भी हैं. मेरा मतलब है कि आप तर्क दे सकते हैं कि बजट कौन मुहैया कराता है और इसलिए वह भी एक कारक होना चाहिए. यह तर्कसंगत बात है."
उन्होंने कहा, "आज दुनिया के सामने मौजूद चुनौतियों में से यह एक बड़ी चुनौती है, जिसका हम सभी पिछले 70 वर्ष से सामना कर रहे हैं. मैं यह नहीं कह रहा कि वे खत्म हो जाएंगे या अप्रासंगिक हो जाएंगे लेकिन निश्चित ही उनसे इतर भी बहुत कुछ हो रहा है और इससे नए तरह के अंतरराष्ट्रीय संबंध बन रहे हैं. हम सभी को इसे लेकर वास्तविक होने की आवश्यकता है."
जयशंकर ने कहा कि इसे समझने के लिए भविष्य में दूर तक देखने की जरूरत नहीं है, बल्कि वास्तव में अतीत में झांकने की आवश्यकता है. उन्होंने कहा, "पांच साल, 10 साल, 15 साल पीछे देखिए. हमने देखा है कि कई संस्थान वैधता, उत्साह और दक्षता खोने के कारण दबाव में आ गए."
जयशंकर ने कहा, "यदि बड़े देशों के पर्याप्त हित पूरे नहीं होते हैं, तो वे कहीं ओर देखने लगेंगे. यदि आप व्यापार की ओर देखें, तो सच्चाई यह है कि आज मुक्त व्यापार समझौतों का प्रसार हुआ है और यह इसलिए है क्योंकि ऐसा लग रहा है कि वैश्विक व्यापार समझौता नहीं होगा."
उन्होंने कहा, "हम अक्सर देखते हैं कि सुरक्षा स्थितियों के संदर्भ में पश्चिम एशिया में पिछले एक या दो दशक में देशों के गठबंधन बने हैं. इसका आंशिक कारण यह है कि इन गठबंधनों में शामिल देशों के ही हित इससे जुड़े हैं या कुछ मामलों में वे अन्य देशों को शामिल होने के लिए राजी नहीं कर पाए या कुछ मामलों में वे संयुक्त राष्ट्र के पास गए लेकिन कोई रास्ता नहीं निकला और इसलिए उन्होंने कुछ और करने का निर्णय लिया."
जयशंकर ने कहा कि यह वास्तिवकता है. उन्होंने कहा, "मैं मानता हूं, मेरा मतलब है कि मैं किसी संस्था को नहीं छोडूंगा और यह नहीं कहूंगा कि किसी संस्था के बजाए अनौपचारिक समाधान को प्राथमिकता दी जाए."