कर्नाटक में बीजेपी की सरकार बनते ही आपस मे लड़ पड़े देवगौड़ा और सिद्धारमैया, एक-दूसरे पर लगाये ये इल्जाम
कर्नाटक में कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन सरकार के विदा हुए तीन हफ्ते से भी ज्यादा का समय बीत चुका है. लेकिन अभी भी सूबे की सियासत में उफान कम नहीं हुआ है. बीजेपी द्वारा सत्ता हाथ में लेने के बाद कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा के बीच जुबानी जंग तेज हो गई है.
बेंगलुरु: कर्नाटक (Karnataka) में कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन सरकार के विदा हुए तीन हफ्ते से भी ज्यादा का समय बीत चुका है. लेकिन अभी भी सूबे की सियासत में उफान कम नहीं हुआ है. बीजेपी द्वारा सत्ता हाथ में लेने के बाद कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया (Siddaramaiah) और पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा (HD Deve Gowda) के बीच जुबानी जंग तेज हो गई है. कांग्रेस और जेडीएस के दोनों दिग्गज नेता एक दूसरे पर गंभीर आरोप लगा रहे है.
कांग्रेस नेता सिद्धारमैया ने देवेगौड़ा पर हमला बोलते हुए कहा “मैंने और देवेगौड़ा ने कई निर्वाचन क्षेत्रों में एक साथ प्रचार किया. उन्होंने मुझे अपने और अपने पोते के चुनाव में हार के लिए दोषी ठहराया है, फिर उन्हें ये भी बताना चाहिए कि हमारे उम्मीदवार क्यों हार गए. इसके पीछे क्या कारण हैं? क्या उन्होंने हमारे खिलाफ मतदान करने वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई की?”
उन्होंने आगे कहा “देवेगौड़ा ने कभी किसी और को बढ़ने नहीं दिया. यहां तक की वे अपनी जाति के लोगों को भी बढ़ने नहीं देते है. सभी जातियों और सभी दलों में मेरे मित्र हैं.”
इससे पहले जेडीएस के वरिष्ठ नेता एचडी देवगौड़ा ने संकेत दिया था कि कर्नाटक में उनकी पार्टी और कांग्रेस की गठबंधन सरकार इसलिए गिरी क्योंकि राष्ट्रीय दल के आलाकमान ने अपनी पार्टी के नेता सिद्धरमैया से विचार-विमर्श किए बिना उनके बेटे एच डी कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला किया था.
पूर्व प्रधानमंत्री ने सिद्धरमैया पर निशाना साधते हुए कांग्रेस आलाकमान के फैसले को ‘गलत’ ठहराया. इससे एक ही दिन पहले उन्होंने आरोप लगाया था कि कांग्रेस के कुछ मित्र गठबंधन सरकार को गिराना चाहते थे क्योंकि वे कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री के रूप में नहीं देख सकते.
गौरतलब हो कि कर्नाटक में कांग्रेस-जेडीएस सरकार 22 जुलाई को गिर गई थी. तत्कालीन मुख्यमंत्री एच डी कुमारस्वामी द्वारा पेश विश्वास प्रस्ताव विधानसभा में गिर गया था. उनकी सरकार महज 14 महीने तक चली. कर्नाटक विधानसभा में विश्वास मत के दौरान विधायकों की संख्या 208 थी. जिसमें से बीजेपी को 106 सदस्यों का समर्थन हासिल था.