झारखंड विकास मोर्चा (झाविमो) का 17 फरवरी को भारतीय जनता पार्टी में विलय हो जाएगा. इसे लेकर जहां झाविमो के प्रदेश से लेकर जिला स्तर तक के नेताओं व कार्यकर्ताओं में नई उम्मीदें बढ़ी हैं, वहीं पार्टी अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी को भी कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिलना तय माना जा रहा है. झाविमो नेताओं में भाजपा में विलय को लेकर उत्साह है. रांची महानगर के अध्यक्ष जितेंद्र वर्मा ने बताया कि 17 फरवरी को विलय को लेकर झाविमो ने रणनीति बनाई है. रांची महानगर एवं ग्रामीण जिला से 20 हजार कार्यकर्ता इस मौके पर आयोजित होने वाले समारोह में शामिल होंगे. झाविमो के प्रधान महासचिव अभय सिंह कहते हैं कि झाविमो का भाजपा में विलय (महामिलन) कार्यक्रम ऐतिहासिक होगा और इस दौरान राज्य भर से लाखों की तादाद में पंचायत स्तरीय कार्यकर्ता शामिल होंगे.
उन्होंने कहा, झारखंड को संवारने एवं राष्ट्रवाद को मजबूती देने के लिए पार्टी कार्यकर्ता नए उत्साह के साथ संदेश लेकर समारोह स्थल से लौटेंगे. इस बीच माना जा रहा है कि झाविमो प्रमुख बाबूलाल मरांडी को भाजपा में महत्वपूर्ण पद मिलना तय है. सूत्रों का दावा है कि भाजपा ने मरांडी के सामने केंद्र में मंत्री, झारखंड विधानसभा में विपक्ष का नेता और झारखंड प्रदेश अध्यक्ष के पद का विकल्प रखा है.
सूत्रों का दावा है कि झाविमो के विलय होने का ही कारण है कि भाजपा ने अब तक प्रदेश अध्यक्ष और विधानसभा में विपक्ष के नेता का पद खाली रखा है. वैसे झाविमो के सूत्रों का कहना है कि मरांडी ने विधानसभा में विपक्ष के नेता के लिए हामी भर दी है. उल्लेखनीय है कि झारखंड विधानसभा चुनाव के बाद से ही झाविमो के भाजपा में विलय को लेकर कयास लगाए जाने लगे थे.
गौरतलब है कि इस विलय को लेकर मरांडी ने पिछले कई दिनों से तैयारी प्रारंभ कर दी थी. पिछले दिनों मरांडी ने अपनी पार्टी की नई कार्यकारिणी बनाई थी, जिसमें उनके करीबियों को महत्वपूर्ण पदों पर बैठाया गया था, जिससे विलय को लेकर किसी प्रकार का विरोध या कानूनी अड़चन न पैदा हो जाए. विधानसभा चुनाव में झाविमो को तीन सीटों पर जीत मिली थी. इसके दो विधायक प्रदीप यादव और बंधु टर्की को पार्टी विरोधी कार्य में शामिल होने के आरोप में पार्टी से निष्कासित कर दिया गया है. ये दोनों विधायक प्रारंभ से ही भाजपा में विलय के विरोध का स्वर मुखर कर रहे हैं.
झारखंड के पहले मुख्यमंत्री रहे और तब भाजपा के दिग्गज नेता मरांडी ने 2006 में भाजपा से अलग होकर नई पार्टी बना ली थी. उनकी पार्टी का हालांकि किसी भी चुनाव में प्रदर्शन कुछ खास नहीं रहा। 2009, 2014 और 2019 के झारखंड विधानसभा चुनाव में पार्टी को 11, आठ और तीन सीटों पर ही जीत मिली.