संघ के निष्ठावान स्वयंसेवक थे अनंत कुमार, दक्षिण में कमल खिलने में निभाई अहम भूमिका
(Photo Credits: ANI)

बेंगलुरु: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दृढ़ विचारक, संगठन के मजबूत स्तंभ, बेंगलुरु के “सबसे ज्यादा पसंद” किए जाने वाले सांसद और संयुक्त राष्ट्र में कन्नड़ में बोलने वाले पहले व्यक्ति, ये कुछ ऐसी विशिष्टताएं हैं जो केंद्रीय मंत्री अनंत कुमार के व्यक्तित्व से परिचय कराती हैं. अपनी राजनीतिक निपुणता के लिए विख्यात कुमार छह बार सांसद रहे. वह राजनीति की जबर्दस्त समझ रखते थे और बेहद मिलनसार थे. वह बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व के हमेशा करीब रहे- चाहे वह अटल बिहारी वाजपेयी या लालकृष्ण आडवाणी का दौर रहा हो या फिर अभी नरेंद्र मोदी के समय में. 22 जुलाई, 1959 को बेंगलुरु में एक मध्यम वर्गीय ब्राह्मण परिवार में जन्मे कुमार ने अपनी शुरुआती शिक्षा अपनी मां गिरिजा एन शास्त्री के मार्गदर्शन में पूरी की जो खुद भी एक ग्रेजुएट थीं. उनके पिता नारायण शास्त्री रेलवे के कर्मचारी थे. कला एवं कानून में स्नातक कुमार के सार्वजनिक जीवन की शुरुआत अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े रहने के कारण हुई. वह एबीवीपी के प्रदेश सचिव और राष्ट्रीय सचिव भी रहे.

कुमार ने तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार द्वारा आपातकाल लगाए जाने के खिलाफ प्रदर्शन किया था और करीब 30 दिनों तक वह जेल में भी रहे. राजनीति में अपने लिए बड़ी संभावनाएं तलाशने के लिए 1987 में कुमार भाजपा में शामिल हुए जहां उन्हें कभी प्रदेश सचिव, कभी युवा मोर्चा का प्रदेश अध्यक्ष तो कभी महासचिव और राष्ट्र सचिव बनाया गया.

यह भी पढ़े: बीजेपी के संकटमोचक थे अनंत कुमार, 6 बार कांग्रेस के उम्मीदवार को दी थी मात, जानें उनसे जुड़ी कुछ अहम बातें

कुमार भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बी एस येदियुरप्पा समेत उन चुनिंदा नेताओं में शामिल हैं जिन्हें कर्नाटक में भाजपा के विकास का श्रेय दिया जा सकता है. कुमार ने अपना संसदीय करियर 1996 में शुरू किया जब वह दक्षिण बेंगलुरु से लोकसभा में चुने गए. यह निर्वाचन क्षेत्र उनके निधन तक उनका मजबूत गढ़ बना रहा जहां उन्हें लगातार छह बार जीत मिली.

15 वीं लोकसभा का चुनाव जीतने के बाद उन्होंने विभिन्न संसदीय समितियों में पद संभाले और नरेंद्र मोदी नीत सरकार में बतौर संसदीय कार्य मंत्री और केंद्रीय रसायन एवं उर्वरक मंत्री रहे.