VIDEO: लापता बेटा साधु बनकर 22 साल बाद लौटा, मां से लिया भिक्षा फिर हुआ गायब! घरवालों की आंखों से छलके आंसू, देखें इमोशनल वीडियो

वीडियो में मां-बेटे के बीच भावुक पुनर्मिलन को देखा जा सकता है. इसमें साधु वीणा बजाते हुए और मधुर स्वर में भजन गाते हुए अपनी मां से भिक्षा मांग रहा है.

उत्तर प्रदेश के अमेठी जिले के एक गांव में लापता बेटे की 22 साल बाद रहस्यमयी वापसी ने सबको चौंका दिया है. 11 साल की उम्र में घर से गायब हुआ लड़का अब गेरुआ वस्त्र पहने साधु के रूप में लौटा और अपनी मां से भिक्षा मांगने लगा. सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियो में मां-बेटे के बीच भावुक पुनर्मिलन को देखा जा सकता है. इसमें साधु वीणा बजाते हुए और मधुर स्वर में भजन गाते हुए अपनी मां से भिक्षा मांग रहा है.

साधु द्वारा गाए गए लोकगीतों में राजा भरथरी की कहानी सुनाई गई है, जिसकी कहानी कुछ हद तक उसके जीवन से मिलती है. राजा भरथरी भी सुखी जीवन छोड़कर संन्यासी बन गए थे. वीडियो में मां को बिलखते हुए देखा जा सका है

कंचे का झगड़ा बना जीवन का मोड़!

रतिपाल सिंह के बेटे पिंकू 2002 में 11 साल की उम्र में कंचे खेलने को लेकर पिता से हुए विवाद के बाद दिल्ली से घर से गायब हो गए थे. उनकी मां, जानकी ने उन्हें डांटा था और गुस्से में पिंकू एक ऐसी यात्रा पर निकल पड़े, जिसने उन्हें दो दशक तक परिवार से दूर रखा.

कब के बिछड़े हुए हम आज कहां आकर मिले...

पिछले हफ्ते, अमेठी के खरौली गांव में हड़कंप मच गया, जब लंबे समय से लापता पिंकू संन्यासी के रूप में अपने गांव लौटा. ग्रामीणों ने तुरंत दिल्ली में रहने वाले उसके माता-पिता को सूचित किया.

जब माता-पिता पहुंचे, तो उन्होंने शरीर पर एक निशान से पिंकू को पहचान लिया. हालांकि, पुनर्मिलन अल्पकालिक ही था. पिंकू ने अपनी मां से भिक्षा ली और परिवार और ग्रामीणों की मिन्नतों के बावजूद गांव छोड़कर चला गया.

पिंकू के पिता का आरोप है कि उनके बेटे का संबंध जिस धार्मिक संप्रदाय से है, वह उसे रिहा करने के लिए ₹ 11 लाख की मांग कर रहा है. पिंकू के पिता ने कहा, "मेरी जेब में 11 रुपये भी नहीं हैं, मैं 11 लाख रुपये का भुगतान कैसे कर सकता हूं?"

हालांकि, पिंकू ने स्पष्ट किया कि उसकी यात्रा पारिवारिक संबंधों से प्रेरित नहीं थी, बल्कि एक धार्मिक अनुष्ठान से प्रेरित थी. उसने बताया कि उनकी परंपरा में, इच्छुक साधुओं को एक अनुष्ठान पूरा करना होता है, जिसमें उन्हें अपनी मां से भिक्षा प्राप्त करनी होती है. यह प्रतीकात्मक कार्य उनके मठवासी जीवन में आधिकारिक रूप से प्रवेश का प्रतीक है.

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