पत्नी के अवैध संबंध के कारण पति ने की आत्महत्या, ऐसे सुसाइड के लिए बीवी जिम्मेदार नहीं: कर्नाटका हाई कोर्ट
कर्नाटका हाई कोर्ट ने एक महिला और उसके प्रेमी को उसके पति की आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप से मुक्त कर दिया. अदालत ने कहा कि पत्नी के अवैध संबंधों के कारण पति की आत्महत्या हुई, लेकिन यह उकसाने का कारण नहीं था.
कर्नाटक हाई कोर्ट ने हाल ही में एक अहम फैसले में, एक निचली अदालत के आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें एक महिला और उसके साथी को उसके पति की आत्महत्या के लिए उकसाने का दोषी ठहराया गया था. यह मामला विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि अदालत ने यह साफ किया कि अवैध संबंध के कारण पति की आत्महत्या को आत्महत्या के लिए उकसाने का आधार नहीं माना जा सकता.
न्यायमूर्ति शिवशंकर अमरन्नावर ने इस मामले में कहा कि, "महिला के पति की आत्महत्या उसके अवैध संबंधों के कारण हुई, यह पर्याप्त कारण नहीं है कि उन्हें आत्महत्या के लिए उकसाने का दोषी ठहराया जाए." अदालत ने कहा कि हालांकि आरोपी ने मृतक से कुछ दिन पहले यह कहा था कि "जाकर मर जाओ", लेकिन केवल इस प्रकार के शब्दों के कहने से आत्महत्या के लिए उकसाने का अपराध नहीं होता है.
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि आरोपियों का उद्देश्य मृतक को आत्महत्या करने के लिए प्रेरित करना नहीं था. "आरोपियों ने मृतक से यह कहा था कि वह जाकर मर जाए ताकि वे खुशी से जी सकें, यह आत्महत्या के लिए उकसाने का अपराध नहीं है," कोर्ट ने कहा. न्यायमूर्ति अमरन्नवर ने यह भी माना कि मृतक संवेदनशील था और अपनी पत्नी के अवैध संबंधों के कारण दुखी था, जिससे वह आत्महत्या कर सकता है, लेकिन रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्य इस बात को साबित नहीं करते कि आरोपियों के कृत्यों ने आत्महत्या के लिए उकसाया.
अंततः कर्नाटका हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को खारिज करते हुए दोनों आरोपियों, प्रेम और बसवलींगे गौड़ा को सभी आरोपों से मुक्त कर दिया. कोर्ट ने कहा कि आरोपियों के कृत्य उनके खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप को साबित नहीं करते हैं.
इस मामले में आरोपियों की ओर से एडवोकेट ए.एन. राधाकृष्ण ने बहस की, जबकि राज्य की ओर से सरकार के वकील बी. लक्ष्मण ने अदालत में अपना पक्ष रखा.
यह निर्णय समाज में यह संदेश देता है कि किसी व्यक्ति की आत्महत्या के लिए केवल भावनात्मक आघात या संवेदनाओं को आधार नहीं बनाया जा सकता. आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप गंभीर होता है, और इसके लिए ठोस प्रमाण और गहरी जांच की आवश्यकता होती है.