नोटबंदी के बाद 98% पैसा वापस आया तो काला धन कहां गया? सुप्रीम कोर्ट की जज नागरत्ना ने खड़े किए सवाल
हैदराबाद में सुप्रीम कोर्ट की जज नागरत्ना ने नोटबंदी पर सवाल खड़े किए. नोटबंदी मामले में अपने असहमति पर उन्होंने बताया कि कैसे उन्हें नोटबंदी के बाद आम आदमी की दुर्दशा से वे कितनी व्यथित थीं.
हैदराबाद में 'कोर्ट्स एंड द कॉन्स्टीट्यूशन' सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में सुप्रीम कोर्ट की जज नागरत्ना ने नोटबंदी पर सवाल खड़े किए. शनिवार को जज जस्टिस बी.वी. नागरत्ना ने राज्यपालों के संवैधानिक अदालतों के सामने मुकदमेबाजी में शामिल होने पर चिंता व्यक्त की. जस्टिस नागरत्ना ने राज्यपालों से संविधान के अनुसार चलने का आह्वान किया, बजाय इसके कि उन्हें बताया जाए कि क्या करना है और क्या नहीं.
उन्होंने कहा- "हाल ही में यह चलन बन गया है कि राज्यों के राज्यपाल बिलों को मंजूरी देने में चूक या उनके द्वारा किए जाने वाले अन्य कार्यों के कारण मुकदमेबाजी का मुद्दा बन जाते हैं. संविधान के तहत राज्यपाल के कार्यों या चूक को संवैधानिक अदालतों के सामने लाना एक स्वस्थ प्रवृत्ति नहीं है. हालांकि इसे एक गवर्नर पद कहा जाता है, यह एक गंभीर संवैधानिक पद है, और राज्यपालों को संविधान के अनुसार काम करना चाहिए ताकि इस तरह के मुकदमे कम हों. राज्यपालों को यह बताया जाना काफी शर्मनाक है कि उन्हें क्या करना है या नहीं करना है. मुझे लगता है अब वह समय आ गया है जहां उन्हें बताया जाएगा कि वे संविधान के अनुसार अपने कर्तव्यों का पालन करें."
उनकी टिप्पणी उस समय महत्वपूर्ण हो जाती है जब सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के राज्यपाल RN रवि के आचरण पर गंभीर चिंता व्यक्त की है, और हाल के दिनों में केरल, तेलंगाना और पंजाब राज्यों ने अपने-अपने राज्यपालों के खिलाफ अदालत का रुख किया है.
जस्टिस नागरत्ना ने माना कि शीर्ष अदालत देश की लोकतांत्रिक नींव को मजबूत करने का काम करती रही है. उन्होंने मुख्य न्यायाधीश यू.यू. ललित की तारीफ की जिन्होंने महत्वपूर्ण और लंबित मामलों में तेजी से संविधान पीठों का गठन किया.
नोटबंदी के बाद आम आदमी की दुर्दशा
नोटबंदी मामले में अपने असहमति पर उन्होंने बताया कि कैसे उन्हें नोटबंदी के बाद आम आदमी की दुर्दशा से वे कितनी व्यथित थीं.
"मुझे खुशी है कि मुझे उस पीठ का हिस्सा बनने का मौका मिला. हम सभी जानते हैं कि 8 नवंबर 2016 को क्या हुआ था. 86% मुद्रा 500 और 1000 रुपये के नोट थे, मुझे लगता है कि केंद्र सरकार इसे भूल गई थी. उस मजदूर की कल्पना कीजिए जिसे रोजमर्रा की जरूरतों के लिए अपने नोटों को बदलना पड़ा. 98% मुद्रा वापस आ गई, तो काला धन निकालने (नोटबंदी का लक्ष्य) के मामले में हम कहां हैं? तो मैंने सोचा (उस समय) कि यह काले धन को सफेद बनाने का एक अच्छा तरीका था, जो बेनामी नकदी प्रणाली में प्रवेश कर रही थी. इसके बाद आयकर कार्यवाही के संबंध में क्या हुआ, यह हम नहीं जानते. इसलिए आम आदमी की इस दुर्दशा ने मुझे वास्तव में परेशान किया और मुझे असहमति जतानी पड़ी."
उन्होंने माना कि सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में दिए गए अपने फैसले को थोड़ा कमजोर कर दिया था, जिसमें कहा गया था कि प्रवर्तन निदेशालय को धन शोधन के मामलों में गिरफ्तार किए गए व्यक्तियों को गिरफ्तारी के लिखित आधार देने होंगे.
गर्भपात के मामलों पर उन्होंने कहा कि प्रजनन अधिकारों से संबंधित मामलों में सुप्रीम कोर्ट का रुख एक छोर से दूसरे छोर तक गया.
उन्होंने कहा कि "प्रो-लाइफ और प्रो-चॉइस के संबंध में बहस छिड़ गई. मैं इसके बारे में ज्यादा बात नहीं करना चाहूंगी, लेकिन मैं केवल इतना कहूंगा कि हमें इस तरह से बहस का ध्रुवीकरण नहीं करना चाहिए. अंततः यह मामले के तथ्यों पर निर्भर करता है कि क्यों क्या महिला समय से परे अदालत में आई है? एक महिला के लिए गर्भावस्था को समाप्त करना एक बहुत कठिन निर्णय है. उसे मनोवैज्ञानिक रूप से तैयार रहना होगा...यह कोई साधारण गर्भपात का अधिकार (मुद्दा) नहीं है."
अंत में, उन्होंने बताया कि सुप्रीम कोर्ट की '2023 में एक कायापलट वाली यात्रा' कैसे हुई. उन्होंने कहा, "अदालतों की ताकत न्याय देने में उनकी भूमिका से आती है." उन्होंने सभी से खुद को संविधान के प्रति फिर से समर्पित करने का आह्वान किया.
भारत के सेवानिवृत्त सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट, तेलंगाना उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश आलोक अराधे, नेपाल के सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश सपना मल्ला और पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश सैयद मंसूर अली शाह ने भी कार्यक्रम के दौरान बात की.