Jharkhand Leopard Attack: क्यों आदमखोर हो गए पलामू टाइगर रिजर्व के तेंदुए? 25 दिन में पांच लोग बन गए निवाला
झारखंड के वन विभाग के पास इसका पुख्ता प्रमाण नहीं कि राज्य के पलामू टाइगर रिजर्व में आज की तारीख में एक भी बाघ है या नहीं, लेकिन इन दिनों इस इलाके में तेंदुए का जबरदस्त आतंक है. पिछले 25 दिनों के भीतर पलामू टाइगर रिजर्व क्षेत्र और इसके पड़ोसी गढ़वा जिले में पांच लोग तेंदुए का निवाला बन चुके हैं
रांची, 7 जनवरी: झारखंड के वन विभाग के पास इसका पुख्ता प्रमाण नहीं कि राज्य के पलामू टाइगर रिजर्व में आज की तारीख में एक भी बाघ है या नहीं, लेकिन इन दिनों इस इलाके में तेंदुए का जबरदस्त आतंक है. पिछले 25 दिनों के भीतर पलामू टाइगर रिजर्व क्षेत्र और इसके पड़ोसी गढ़वा जिले में पांच लोग तेंदुए का निवाला बन चुके हैं. तकरीबन डेढ़ सौ गांवों के लोग इस कदर दहशत में हैं कि वे शाम होते ही घरों में कैद हो जा रहे हैं. तेंदुए के खौफ से स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति बेहद कम हो गई है.
किसान अकेले खेतों में काम करने नहीं जा रहे। वन विभाग कह रहा है कि आदमखोर तेंदुआ सिर्फ एक है, पर लोगों की मानें तो इनकी संख्या एक से ज्यादा है. वन्य जीव विशेषज्ञ तेंदुओं के आदमखोर हो जाने को चिंता का विषय मान रहे हैं, क्योंकि सामान्य तौर पर तेंदुए मनुष्यों पर हमला नहीं करते. ऐसा तभी होता है, जब जीवन और आहार की ²ष्टि से उनके लिए स्थितियां प्रतिकूल हो जाती हैं. यह भी पढ़े: Leopard Attack VIDEO: मैसूर में तेंदुए की दहशत, हमला कर कई लोगों को किया घायल, रेस्क्यू ऑपरेशन जारी
गढ़वा दक्षिणी वन प्रमंडल पदाधिकारी शशि कुमार बताते हैं कि अब तक मिली सूचनाओं के अनुसार इलाके में सिर्फ एक तेंदुआ है, जो इंसानी बस्तियों में दाखिल होकर हमले कर रहा है. उसे ट्रैंकुलाइजर गन के जरिए बेहोश करके पकड़ने के लिए अभियान चलाया जा रहा है.
हैदराबाद के वन्य जीव विशेषज्ञ और मशहूर शूटर नवाब शफत अली खान, उनके पुत्र हैदर अली खान, तेलंगाना के शूटर संपत उन इलाकों में गश्त कर रहे हैं, जहां आदमखोर तेंदुए की चहलकदमी या देखे जाने की सूचनाएं मिल रही हैं। उन्होंने कहा कि अगर इसे पकड़ा नहीं जा सका, तभी इसे सीधे शूट किया जा सकता है.पर यह आखिरी विकल्प है और इसके लिए विभाग के शीर्ष स्तर से आदेश जारी किया जा सकता है..
आदमखोर तेंदुए पर निगाह रखने के लिए 50 से 60 कैमरे लगाए गए हैं। 50-60 वनकर्मी भी इस अभियान में जुटे हैं। तेंदुए की चहलकदमी वाले संभावित इलाकों में चार ऑटोमैटिक पिंजरे लगाए गए हैं। कुछ जगहों पर जाल भी बिछाया गया है, लेकिन अभी तक आदमखोर तेंदुए की एक भी तस्वीर नहीं आ पाई है.
हालांकि हैदराबाद से आए शूटर नवाब शफत अली ने बताया कि 6 जनवरी की रात करीब आठ बजे गढ़वा जिले के रमकंडा प्रखंड अंतर्गत बरवा गांव के पास उनकी टीम ने तेंदुए को स्पॉट किया। तेंदुआ उनसे करीब 82 मीटर की दूरी पर था, जबकि उनके पास जो ट्रैंकुलाइजर गन है उसकी रेंज अधिकतम 30 मीटर है.
जैसे ही आगे बढ़ने की कोशिश हुई, तेंदुआ घने जंगल में ओझल हो गया। बाद में पगमार्क की जांच से वहां तेंदुआ होने की पुष्टि हुई। इसके पहले भंडरिया प्रखंड के कुशवाहा-बरवा गांव के पास भी यही तेंदुआ देखा गया था। बीते 28 दिसंबर को इसी कुशवाहा गांव में शाम छह बजे के करीब तेंदुए ने 12 वर्षीय बालक हरेंद्र घासी को मार डाला था.
इसके पहले आदमखोर तेंदुए ने गत 10 दिसम्बर को लातेहार जिले के बरवाडीह प्रखंड मुख्यालय से 5 किलोमीटर दूर उकामाड़ में एक 12 वर्षीय बच्ची को अपना पहला शिकार बनाया था.दूसरी घटना 14 दिसम्बर को गढवा जिले के भंडरिया प्रखंड के रोदो गांव में हुई थी.
यहां 9 वर्ष के बच्चे को तेंदुए ने मार डाला था और उसके शरीर के आधे हिस्से को खा गया था। तीसरी घटना रंका प्रखंड में 19 दिसम्बर को हुई थी, जब एक सात वषीर्या बच्ची सीता की मौत तेंदुए के हमले में हो गई थी.
इसी तरह जनवरी के पहले हफ्ते में पलामू टाइगर रिजर्व के अंतर्गत बरवाडीह प्रखंड के छेछा पंचायत में एक बुजुर्ग व्यक्ति जंगली जानवर के हमले में मारा गया। ग्रामीणों का कहना है कि आमदखोर तेंदुए ने ही उनकी जान ली, जबकि वन विभाग का कहना है कि बुजुर्ग की जान लकड़बग्घे के हमले में हुई है.
वन विभाग के अधिकारियों के मुताबिक पलामू टाइगर रिजर्व में जानवरों की गिनती के लिए जो कैमरे लगाए गए हैं, उनमें कई बार तेंदुए देखे गए हैं। तेंदुओं की कुल संख्या 90 से 110 के बीच है.कुल 1,026 वर्ग किलोमीटर में फैले इस टाइगर रिजर्व का कोर एरिया 226 वर्ग किलोमीटर में हैं. रिजर्व के पूरे इलाके में 250 से अधिक गांव हैं.
लातेहार के डिविजनल फॉरेस्ट ऑफिसर कुमार आशीष स्वीकार करते हैं कि पलामू टाइगर रिजर्व एरिया के अंदर जो इंसानी बस्तियां हैं, वहां की गतिविधियों के बीच वन्य प्राणियों के लिए कई बार असहज स्थितियां पैदा होती हैं. अगर जंगली जीवों को संरक्षित करना है तो रिजर्व इलाके में मानवीय दखल न्यूनतम होना चाहिए..
झारखंड के चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन शशिकर सामंत कहते हैं कि गढ़वा-लातेहार में तेंदुए के हमले की पीछे की वजहें क्या हो सकती हैं, इसपर रिपोर्ट मांगी गई है। वैस, अब तक के तमाम अध्ययन यही बताते हैं कि जहां भी इस तरह के हमले की घटनाएं होती हैं, वहां जंगली जानवरों के क्षेत्र में बढ़ता अतिक्रमण एक बड़ी वजह होती है. हम जंगली जानवरों के रास्ते में आ रहे हैं। कोल माइंस खुल रहे हैं और उनके रास्ते बंद हो रहे हैं.
वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट प्रो. डीएस श्रीवास्तव बताते हैं कि तेंदुआ सामान्य तौर पर आदमखोर नहीं होते। अधिकांश स्वस्थ तेंदुए जंगली शिकार पसंद करते हैं, लेकिन कई बार ऐसा देखा गया है कि तेंदुआ घायल अथवा बीमार हो या फिर जंगल में नियमित तौर पर उनके लिए शिकार की कमी हो गई तो वे छिपकर मनुष्यों पर हमले करते हैं.
आमतौर पर यही माना जाता है कि आदमखोर हो चुके तेंदुए को फौरन उस इलाके से हटा देना चाहिए। लेकिन यह समस्या का स्थायी समाधान नहीं है। क्योंकि कुछ महीनों बाद कोई दूसरा तेंदुआ फिर से शिकार करने लगता है.
इंसानों और जानवरों के एक-दूसरे पर होने वाले हमलों का यह सिलसिला तभी रुक पाएगा जब इनके लिए जिम्मेदार कारणों को समझने की कोशिश की जाएगी.