एशिया पावर इंडेक्स रिपोर्ट में भारत की रैंकिंग बढ़ी
ऑस्ट्रेलिया के प्रतिष्ठित लोवी इंस्टिट्यूट के सालाना एशिया पावर इंडेक्स में भारत की रैंकिंग बढ़ी है, लेकिन रिपोर्ट कहती है कि भारत अभी सुपरपावर बनने से बहुत दूर है.
ऑस्ट्रेलिया के प्रतिष्ठित लोवी इंस्टिट्यूट के सालाना एशिया पावर इंडेक्स में भारत की रैंकिंग बढ़ी है, लेकिन रिपोर्ट कहती है कि भारत अभी सुपरपावर बनने से बहुत दूर है.भारत एशिया में अपनी ताकत बढ़ा रहा है, लेकिन 2024 की ‘लोवी इंस्टीट्यूट एशिया पावर इंडेक्स‘ रिपोर्ट में यह भी दिखाया गया है कि भारत अभी सुपरपावर बनने से काफी दूर है. रिपोर्ट के अनुसार, भारत एशिया में अब तीसरी सबसे बड़ी ताकत है. पिछले साल भारत को चौथे नंबर पर रखा गया था. अमेरिका पहले और चीन दूसरे स्थान पर हैं. रिपोर्ट में एशिया पैसिफिक के 27 देशों का आकलन किया गया है.
हालांकि, रिपोर्ट कहती है कि भारत की विशाल जनसंख्या उसे ताकत तो देती है, लेकिन उसके लिए एक बहुत बड़ी चुनौती भी है. भारत ने पिछले साल ही चीन को आबादी में पीछे छोड़ा था. रिपोर्ट के अनुसार, भारत की जनसंख्या और आर्थिक क्षमता के बावजूद, उसे सुपरपावर बनने के लिए कई सुधारों की जरूरत है.
यह रैंकिंग अमेरिकी विशेषज्ञ माइकल बेकली के फॉर्मूले पर आधारित है जिसमें किसी देश की ताकत के आकलन के लिए जीडीपी को प्रति व्यक्ति जीडीपी से गुणा किया जाता है. यह दिखाता है कि बड़ी जनसंख्या के बावजूद, प्रति व्यक्ति आय कम होने के कारण भारत की ताकत सीमित हो जाती है. रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की जनसंख्या एक बड़ी ताकत है, लेकिन इसके साथ ही यह संसाधनों पर भी भारी दबाव डालती है.
पिछले दिनों आई प्यू रिसर्च सेंटर की रिपोर्ट में बताया गया था कि 68 फीसदी भारतीय लोगों को लगता है कि देश की ताकत बढ़ रही है, जबकि अन्य देशों में सिर्फ 28 फीसदी लोग मानते हैं कि भारत की ताकत बढ़ रही है.
एशिया में भारत की रणनीतिक स्थिति
रिपोर्ट में आठ प्रमुख क्षेत्रों का विश्लेषण किया गया है: आर्थिक क्षमता, सैन्य क्षमता, मजबूती, भविष्य के संसाधन, कूटनीतिक प्रभाव, आर्थिक संबंध, रक्षा नेटवर्क, और सांस्कृतिक प्रभाव. इन सभी क्षेत्रों में भारत की ताकत और कमजोरियां दोनों सामने आई हैं.
पिछले एक साल में उसके कूटनीतिक प्रभाव, समस्याओं के सामने टिकने की क्षमता, सैन्य और आर्थिक क्षमताओं में कुछ बेहतरी हुई है लेकिन उसके सांस्कृति प्रभाव, रक्षा नेटवर्क और आर्थिक रिश्तों में काफी गिरावट आई है.
भारत की अर्थव्यवस्था उसकी सबसे बड़ी ताकत है, लेकिन यह अभी भी चीन और अमेरिका से काफी पीछे है. हालांकि भारत की आर्थिक वृद्धि तेजी से हो रही है, रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि बेहतर परिणाम के लिए शिक्षा, तकनीक और बुनियादी ढांचे में सुधार की जरूरत है.
सैन्य ताकत के मामले में भारत तीसरे स्थान पर है, लेकिन चीन और अमेरिका इससे काफी आगे हैं. भारत ने हाल के वर्षों में अपनी सैन्य क्षमताओं को मजबूत किया है. अमेरिका और जापान जैसे देशों के साथ उसके बढ़ते रक्षा संबंध उसे और शक्तिशाली बना रहे हैं. हालांकि, भारत के बड़े सैन्य बल को बनाए रखने की लागत और आधुनिक तकनीक में पीछे रहने की चुनौतियां भी हैं.
भारत का कूटनीतिक प्रभाव एशिया में तेजी से बढ़ रहा है. क्वाड जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उसकी भूमिका महत्वपूर्ण है, जहां वह अमेरिका, जापान, और ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर काम करता है. पिछले हफ्ते ही भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिका में क्वड की बैठक में हिस्सा लिया था. रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत को इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन की बढ़ती ताकत को संतुलित करने वाला एक महत्वपूर्ण देश माना जा रहा है. हालांकि, भारत का कूटनीतिक प्रभाव उसकी आर्थिक और सैन्य क्षमताओं के अनुपात में अब भी सीमित है.
छिपी हुई संभावनाएं और आंतरिक चुनौतियां
लोवी रिपोर्ट कहती है कि भारत में अभी भी बहुत संभावनाएं छिपी हैं. तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के कारण भारत अपने प्रभाव को दक्षिण एशिया और हिंद महासागर क्षेत्रों में बढ़ा सकता है. लेकिन गरीबी, असमानता और बुनियादी ढांचे की कमी जैसी आंतरिक समस्याएं इसकी क्षमता को पूरी तरह से उभरने से रोक रही हैं.
भारत के चीन और पाकिस्तान के साथ पुराने सीमा विवाद भी उसकी सुरक्षा को प्रभावित करते हैं. ये विवाद भारत के संसाधनों को कमजोर करते हैं और उसकी सुरक्षा नीति को अस्थिर करते हैं. 2020 में लद्दाख सीमा पर भारत और चीन के सैनिकों बीच झड़प के बाद से दोनों देशों के रिश्ते तनावपूर्ण रहे हैं.
रिपोर्ट का एक प्रमुख निष्कर्ष यह है कि एशिया में भारत की भूमिका एक संतुलन स्थापित करने वाली ताकत के रूप में बढ़ रही है. अमेरिका और चीन के बीच बढ़ती प्रतिस्पर्धा के बीच, भारत का तीसरी सबसे बड़ी शक्ति के रूप में उभरना उसे एक महत्वपूर्ण मध्यस्थ की भूमिका में रखता है, खासकर इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में.
रिपोर्ट कहती है कि भारत का बढ़ता रक्षा सहयोग जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका जैसे देशों के साथ, इंडो-पैसिफिक में सुरक्षा और स्थिरता बनाए रखने के लिए जरूरी है, लेकिन इन साझेदारियों के बावजूद, भारत को अपनी सैन्य ताकत को और मजबूत करने और तकनीकी निवेश की जरूरत है.