HC On Take Care Of Parents: माता-पिता की देखभाल नहीं करने वाले बेटों को प्रायश्चित का मौका नहीं, कर्नाटक हाईकोर्ट ने लगाई फटकार

कर्नाटक उच्च न्यायालय ने एक बड़े फैसले में कहा है कि जो बेटे अपने माता-पिता की देखभाल नहीं करते हैं, उन्‍हें प्रायश्चित का मौका नहीं दिया जा सकता. अदालत ने यह भी रेखांकित किया कि विवाह अधिकारों को फिर से स्थापित करने के लिए एक कानून है, लेकिन मां को बेटों के साथ रहने के लिए मजबूर करने के लिए कानून में कोई प्रावधान नहीं है.

Karnataka High Court (Photo Credit: Wikimedia Commons)

बेंगलुरु, 15 जुलाई: कर्नाटक उच्च न्यायालय ने एक बड़े फैसले में कहा है कि जो बेटे अपने माता-पिता की देखभाल नहीं करते हैं, उन्‍हें प्रायश्चित का मौका नहीं दिया जा सकता. अदालत ने यह भी रेखांकित किया कि विवाह अधिकारों को फिर से स्थापित करने के लिए एक कानून है, लेकिन मां को बेटों के साथ रहने के लिए मजबूर करने के लिए कानून में कोई प्रावधान नहीं है. यह भी पढ़ें: SAD on Uniform Civil Code: कॉमन सिविल कोड का अकाली दल ने भी किया विरोध, कहा- लागू करना देशहित में नहीं

न्यायमूर्ति कृष्ण एस. दीक्षित की अध्यक्षता वाली पीठ ने दो भाइयों, गोपाल और महेश की याचिका पर यह फैसला दिया. उन्‍होंने अदालत के समक्ष दलील दी थी कि वे अपनी मां की देखभाल के लिए 10-10 हजार रुपये गुजारा भत्ता का भुगतान नहीं सकेंगे. भाइयों ने दावा किया कि वे अपनी मां की देखभाल करने के लिए तैयार हैं। उनकी मां फिलहाल बेटियों के घर पर रहने के लिए मजबूर हैं.

पीठ ने वेदों और उपनिषदों का उल्लेख करते हुए कहा कि अपनी मां की देखभाल करना बच्चों का कर्तव्य है. अदालत ने कहा, "बुढ़ापे के दौरान, मां की देखभाल बेटे द्वारा की जानी चाहिए। तैत्तिरीय उपनिषद में उपदेश दिया गया है कि माता-पिता, शिक्षक और अतिथि भगवान के समान हैं। जो लोग अपने माता-पिता की देखभाल नहीं करते हैं उनके लिए कोई प्रायश्चित नहीं है. भगवान की पूजा करने से पहले, माता-पिता, शिक्षकों और अतिथियों का सम्मान करना चाहिए.

पीठ ने कहा, "लेकिन, आज की पीढ़ी अपने माता-पिता की देखभाल करने में विफल हो रही है. यह अच्छा नहीं है कि ऐसी संख्या बढ़ रही है." इसमें रेखांकित किया गया कि चूंकि दोनों बेटे शारीरिक रूप से स्वस्थ हैं, इसलिए यह दावा नहीं किया जा सकता कि वे भरण-पोषण नहीं दे सकते.

"अगर कोई आदमी अपनी पत्नी की देखभाल कर सकता है, तो वह अपनी मां की देखभाल क्यों नहीं कर सकता? एक बेटे को किराया मिल रहा है. बेटों का इस तर्क से सहमत नहीं हुआ जा सकता कि वे अपनी मां का ध्‍यान रखेंगे. एक मां को मजबूर करने का कानून नहीं है. इस बात से भी सहमत नहीं हुआ जा सकता कि बेटियां साजिश कर उसे अपने घर में रहने के लिए मजबूर कर रही हैं। अगर बेटियां न होती तो मां सड़क पर होती."

न्यायमूर्ति दीक्षित ने मां की देखभाल करने के लिए बेटियों की सराहना की. पीठ ने बेटों को अपनी मां को 20 हजार रुपये गुजारा भत्ता देने का भी आदेश दिया. मैसूरु की 84 वर्षीय वेंकटम्मा अपनी बेटियों के साथ रह रही थीं. अपने बेटे का घर छोड़ने के बाद उन्होंने मैसूरु में प्रभागीय अधिकारी से संपर्क कर गोपाल और महेश से गुजारा भत्‍ता की मांग की थी.

माता-पिता एवं वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण एवं कल्याण अधिनियम के तहत बेटों को अपनी मां को पांच-पांच हजार रुपये देने का आदेश दिया गया. बाद में जिला आयुक्त ने रखरखाव राशि पांच-पांच हजार रुपये से बढ़ाकर 10-10 हजार रुपये कर दी थी. इस आदेश को चुनौती देने वाले भाइयों ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और दावा किया कि वे गुजारा भत्ता नहीं देंगे, बल्कि वे अपनी मां की देखभाल करेंगे.

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