नोटबंदी से देश में राजनीतिक और आर्थिक उलझनें पैदा हुई: पूर्व सीईए अरविंद सुब्रमण्यन
देश के पूर्व आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रह्मण्यम (Arvind Subramanian) ने नोटबंदी (Demonetisation) और जीडीपी (GDP) के आंकड़ों में संबंध स्थापित करते हुए कहा है कि नोटबंदी के कारण पैदा हुई उलझन के दोहरे पक्ष रहे हैं.
नई दिल्ली: देश के पूर्व आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रह्मण्यम (Arvind Subramanian) ने नोटबंदी (Demonetisation) और जीडीपी (GDP) के आंकड़ों में संबंध स्थापित करते हुए कहा है कि नोटबंदी के कारण पैदा हुई उलझन के दोहरे पक्ष रहे हैं. क्या जीडीपी के आंकड़ों पर दिखे इसके प्रभाव ने एक लचीली अर्थव्यवस्था को प्रतिबिंबित किया है, और क्या वृद्धि दर के आंकड़ों ने आधिकारिक डेटा संग्रह प्रक्रिया पर सवाल खड़ा किए हैं.
सुबह्मण्यम इस समय हार्वर्ड केरेडी स्कूल में पढ़ा रहे हैं. वह यहां पेंगुइन द्वारा प्रकाशित अपनी पुस्तक 'ऑफ काउंसिल : द चैलेंजेस ऑफ द मोदी-जेटली इकॉनॉमी' के विमोचन समारोह में हिस्सा लेने आए थे.
उन्होंने आईएएनएस के साथ एक बातचीत में पुस्तक के एक अध्याय 'द टू पजल्स ऑफ डीमोनेटाइजेशन-पॉलिटिकल एंड इकॉनॉमिक' का जिक्र किया.
उन्होंने अपनी पुस्तक में मौजूद दूसरे पजल का भी जिक्र किया, और यह पजल है भारत में पलायन और आर्थिक वृद्धि जैसी समकारी ताकतों के बावजूद क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था में विचलन. उन्होंने कहा कि राज्यों की एक गतिशीलता प्रतिस्पर्धी संघवाद के तर्क के खिलाफ होती है.
उन्होंने कहा, "अपनी नई पुस्तक के जरिए मैं इस पजल (उलझन), नोटबंदी के बाद नकदी में 86 प्रतिशत कमी की बड़ी उलझन, बावजूद इसके अर्थव्यवस्था पर काफी कम असर की तरफ ध्यान खींचने की कोशिश की है."
सुबह्मण्यम ने कहा, "ये उलझनें खासतौर से इस सच्चाई से पैदा होती हैं कि यह कदम राजनीतिक रूप से क्यों सफल हुआ, और जीडीपी पर इसका इतना कम असर हुआ..क्या यह ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि हम जीडीपी को ठीक से माप नहीं रहे हैं, अनौपचारिक क्षेत्र को नहीं माप रहे हैं, या यह अर्थव्यवस्था में मौजूद लचीलेपन को रेखांकित कर रहा है?"
सुबह्मण्यम ने अपनी किताब में लिखा है, "नोटबंदी के पहली छह तिमाहियों में औसत वृद्धि दर आठ प्रतिशत थी और इसके बाद सात तिमाहियों में औसत वृद्धि दर 6.8 प्रतिशत."
उन्होंने कहा, "इसका प्रमुख कारण भारत की राजनीति और अर्थव्यवस्था की एक व्यापक समझ में छिपा हुआ है, इस बारे में कि लोग वोट कैसे करते हैं."
उन्होंने केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा जीडीपी के बैक सीरीज डेटा को जारी करने के दौरान नीति आयोग की उपस्थिति को लेकर जारी विवाद का जिक्र किया. जीडीपी के इस आंकड़े में आधार वर्ष बदल दिया गया, और पूर्व की संप्रग सरकार के दौरान देश की आर्थिक विकास दर को कम कर दिया गया.
उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि जीडीपी की गणना एक बहुत ही तकनीकी काम है और तकनीकी विशेषज्ञों को ही यह काम करना चाहिए. जिस संस्थान के पास तकनीकी विशेषज्ञ नहीं हैं, उसे इसमें शामिल नहीं होना चाहिए."
सुब्रह्मण्यम ने कहा, "जब मानक बहुत ऊंचे होंगे और वृद्धि दर फिर भी समान रहेगी तो अर्थशास्त्री स्वाभाविक रूप से सवाल उठाएंगे. यह आंकड़े की विश्वसनीयता को लेकर उतना नहीं है, जितना कि आंकड़े पैदा करने की प्रक्रिया को लेकर और उन संस्थानों को लेकर जिन्होंने इस काम को किया है."