सियाचिन में मौसम की मार से नहीं जाएगी अब किसी वीर जवान की जान, इसरो-रक्षा मंत्रालय ने बनाया यह प्लान

भारतीय सेना के वीर जवान चौबीसों घंटे बिना अपनी जान की परवाह किए सीमा पर हमारी सुरक्षा के लिए डंटे रहते है. लेकिन दुर्भाग्यवश कई बार बेरहम मौसम की वजह से जवानों की मौत तक हो जाती है. और ऐसा इसलिए क्योकि उन्हें समय पर जरुरी उपचार नहीं मिल पाता.

सियाचिन ग्लेशियर

नई दिल्ली: भारतीय सेना के वीर जवान चौबीसों घंटे बिना अपनी जान की परवाह किए सीमा पर हमारी सुरक्षा के लिए डंटे रहते है. लेकिन दुर्भाग्यवश कई बार बेरहम मौसम की वजह से जवानों की मौत तक हो जाती है. और ऐसा इसलिए क्योकि उन्हें समय पर जरुरी उपचार नहीं मिल पाता. इसी को देखते हुए भारतीय अंतरिक्ष शोध संस्थान (इसरो) और इंडियन आर्मी ने कुछ ऐसा प्लान बनाया है जिससे दुर्गम इलाकों में तैनात जवानों को किसी भी परिस्थिति में मेडिकल सुविधा मुहैया कराई जा सके.

इसरो और रक्षा मंत्रालय ने इसके लिए करार किया है. इस नई पहल से सियाचीन ग्लेशियर जैसे दुर्गम इलाकों में जहां जवान बहुत ही कठिन हालत में तैनात रहते हैं, वहां पर भी अब उन्हें डॉक्टर्स की एक्सपर्ट राय मिल सकेगी. 1984 से अबतक सियाचिन में सैकड़ों भारतीय जवानों की जान सियाचिन के बेरहम मौसम ने ले ली है. सबसे बड़ी दिक्कत यह थी कि यहां मौसम की मार झेल रहे जवानों को बीमार होने पर कई बार सही चिकित्सा नहीं मिल पाती थी.

रक्षा मंत्रालय के अनुसार, नई दिल्‍ली में अंतरिक्ष विभाग अहमदाबाद और मुख्यालय, एकीकृत रक्षा स्टाफ (आईडीएस) मेडिकल और इसरो के शिक्षा संचार इकाई (डीईसीयू) के बीच टेलीमेडिसिन नोड्स की स्थापना के लिए एक ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए. इसके तहत सियाचिन सहित देश के विषम क्षेत्रों में जवानों के लिए टेलीमेडिसिन नोड्स स्थापित किए जाएंगे, ताकि उन्हें सही उपचार मिल सके.

जानकारी के मुताबिक पहले चरण में इसरो एयरफोर्स, नेवी और आर्मी में मौजूदा 20 नोड्स के साथ 53 नोड्स की और स्‍थापना करेगा. दुनिया में सबसे अधिक ऊंचाई वाले सियाचिन ग्लेशियर पर न केवल कामकाजी नोड है, बल्‍कि ग्लेशियर में तैनात सैनिकों के बीच डॉक्टर चिकित्सा परामर्श सक्षम करने के लिए चार और नोड्स स्थापित किए जा रहे हैं. टेलीमेडिसिन में वीडियो कॉन्फ्रेन्सिंग या और किसी संचार की तकनीक के द्वारा चिकित्सा पद्धति उपलब्ध कराई जाती है.

रक्षा विशेषज्ञों की मानें तो अगर इसे प्रभावी ढंग से लागू किया जाए तो सैनिकों की मौत की संख्या काफी घट सकती है. रक्षा मंत्रालय के अनुसार, सियाचिन ग्लेशियर पर पिछले तीन साल के दौरान कम से 41 सैनिकों की जान जा चुकी है. आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार 1984 में सियाचिन पर कब्जा जमाने के बाद से अब तक एक हजार सैनिक अपनी जान गंवा चुके हैं. इनमें सिर्फ 220 सैनिक ही दुश्मन की गोली से शहीद हुए है.

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