क्या COVID-19 पॉजिटिव निकल आने पर दूसरी बीमारी का इलाज रोक दिया जाता है?

कोरोना वायरस को भारत में आये 6 महीने से भी ज्यादा का समय हो गया है, बढते संक्रमण को रोकने के लिये देश में टेस्टिंग बढ़ा दी गई है. इसी के तहत लक्षण वाले मरीजों के अलावा अलग-अलग शहरों में सीरो सर्वे भी जारी है.

कोरोना वायरस (Photo Credits: Pixabay)

कोरोना वायरस को भारत में आये 6 महीने से भी ज्यादा का समय हो गया है, बढते संक्रमण को रोकने के लिये देश में टेस्टिंग बढ़ा दी गई है. इसी के तहत लक्षण वाले मरीजों के अलावा अलग-अलग शहरों में सीरो सर्वे भी जारी है. ऐसे में अगर कोई व्‍यक्ति जो पहले से किसी बीमारी से ग्रसित है, वो अगर कोरोना पॉजिटिव आ जाता है, तो क्या उसकी बीमारी, या फिर अगर सर्जरी करनी है, तो क्या उसे रोक दिया जाएगा?

इस सवाल का जवाब आरएमएल, नई दिल्ली के डॉ. ए के वार्ष्‍णेय ने प्रसार भारती से बातचीत में दिया. उन्होंने कहा कि इस वक्त कोई भी बीमारी हो, अस्‍पताल जाते ही सबसे पहले कोरोना टेस्‍ट किया जाता है. वो इसलिए ताकि अगर पेशेंट पॉजिटिव हो, तो उससे संक्रमण फैलने से रोका जा सके. दूसरी बात पॉजिटिव होने पर इलाज रोका नहीं जाता है, बस डॉक्टर, नर्स व अन्‍य स्‍वास्‍थ्‍यकर्मी अतिरिक्त सावधानी बरतते हैं. कई बार इमरजेंसी में सर्जरी करनी पड़ती है, तो अगर मरीज कोरोना पॉजिटिव है तो डॉक्‍टर सारे प्रोटेक्शन के साथ सर्जरी करते हैं.

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क्या कोरोना नहीं होने पर भी बताया जाता है पॉजिटिव:

वहीं कई लोगों की शिकायत होती है कि कुछ जगहों पर कोरोना नहीं होने पर भी पॉजिटिव बता दिया जाता है, इस बारे में उन्होंने बाताया कि इस वक्त डॉक्टर व चिकित्साकर्मी मरीजों की सेवा में जी जान से लगे हुए हैं. कई बार मरीज मानने को तैयार नहीं होता है, कि वो कोरोना पॉजिटिव है. ऐसे लोगों को लगता है कि कोरोना बहुत सीरियस बीमारी है, और मुझे तो कोई लक्षण नहीं हैं, फिर भी मुझे पॉजिटिव क्यों बताया जा रहा है. वो सोचता है हल्‍का खांसी-बुखार कोरोना कैसे हो सकता है. यह भी सोचिए कि एंटीजेन टेस्‍ट में तो कई बार पॉजिटिव मरीजों की रिपोर्ट भी निगेटिव आती है. यानी कुल मिलाकर डॉक्‍टर की बात मानें और नियमों का पालन करें.

एसिम्‍प्‍टोमेटिक में फेफड़ों से संबंधित परेशानी की कितनी है संभावना:

इस दिनों कई लोग जो वायरस से गंभीर रुप से संक्रमित रहे और ठीक हो चुके हैं उनमें कुछ परेशानी देखने को मिली, जिनके लिये पोस्ट कोविड अस्पताल खोले गये हैं. लेकिन अब एसिम्‍प्‍टोमेटिक मरीजों को भी डर सताने लगा है कि क्या उन्हें भी फेफड़ों से संबंधित कोई परेशानी आ रही है. इस बारे में डॉ वार्ष्‍णेय ने कहा कि संक्रमण के एक हफ्ते के बाद शरीर में आईजीएम एंटीबॉडी बनते हैं, और दो हफ्ते के बाद आईजीजी एंटीबॉडी बनते हैं. ये एंटीबॉडी प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा कर वायरस को नष्‍ट कर देते हैं. ऐसे अधिकांश लोगों में लक्षण नहीं आते हैं या बहुत कम आते हैं. ये लोग एसिम्‍प्‍टोमेटिक होते हैं. इनको कोई तकलीफ नहीं होती है, लेकिन ऐसा पाया गया है कि ऐसे लोगों में तीन-चार हफ्ते बाद सांस लेने में दिक्कत आती रही है, या बहुत थकावट हो रही है. उससे पहले उनको सांस की कोई बीमारी नहीं थी. इसका मतलब साइलेंट इंफेक्शन के दौरान लंग्‍स में थोड़ा-बहुत डैमेज हो जाते हैं. हालांकि यह वायरस नया है, इस पर रोज नए शोध हो रहे हैं. फिलहाल यह माना जा रहा है कि एसिम्‍प्‍टोमेटिक लोगों के फेफड़ों में जो परेशानी आयी है, वो थोड़े दिनों में खत्म हो जाएगी.

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