नागरिकता कानून: पूर्वोत्तर में तनाव बरकरार, गुवाहाटी में आज कर्फ्यू में 7 घंटे की ढील- जानें हिंसा के पीछे क्या है मुख्य वजह
गुवाहाटी में शनिवार को कर्फ्यू में सुबह 9 बजे से 4 बजे तक सात घंटे के लिए ढील दी जाएगी. हालांकि इंटरनेट सेवा बंद रहेगी. नागरिकता कानून पर पूर्वोत्तर में तनाव बरकरार है.
दिसपुर: नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2019 (Citizenship Amendment Bill 2019) के विरोध में पूर्वोत्तर के राज्यों में उग्र प्रदर्शन जारी है. असम, त्रिपुरा में सेना तैनात है और कर्फ्यू भी लागू है. इस बीच असम से कुछ राहत की खबर आ रही है. गुवाहाटी में शनिवार को कर्फ्यू में सुबह 9 बजे से 4 बजे तक सात घंटे के लिए ढील दी जाएगी. हालांकि इंटरनेट सेवा बंद रहेगी. बता दें कि नागरिकता संशोधन बिल के विरोध में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन के बाद गुरुवार शाम से ही इंटरनेट सेवा बंद कर दी गई थी. इस बीच ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन ने तीन दिन के लिए सत्याग्रह का ऐलान किया है. नागा स्टूडेंड्स फेडरेशन (NSF) ने शनिवार को सुबह 6 बजे से छह घंटों के लिए बंद बुलाया है.
ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (AASU) और इसके महासचिव लुरिनज्योति गोगोई ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके गुहार लगाई है कि नागरिकता संशोधन कानून 2019 (CAB) ने 1985 के असम समझौते का उल्लंघन किया है. प्रदर्शनकारियों का कहना है कि सरकार ने बगैर सोच-समझे यह फैसला लिया है. इस तरह बाहर के लोगों को नागरिकता देना असम समझौते का उल्लघंन है. साथ ही उनकी संस्कृति, सभ्यता और पहचान और अधिकारों पर भी खतरा मंडरा रहा है.
गुवाहाटी में आज कर्फ्यू में ढील-
पूर्वोत्तर में जारी विरोध प्रदर्शन के बीच शुक्रवार को नागरिकता संसोधन बिल के खिलाफ जामिया मिलिया इस्लामिया (Jamia Millia Islamia) के छात्रों ने भी प्रोटेस्ट मार्च निकाला. इस दौरान संसद भवन तक मार्च करने पर अड़े छात्रों और पुलिस के बीच हिंसक झड़प हो गई. जिसमें कई पुलिसकर्मी और छात्र घायल हो गए.
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क्या है 1985 असम समझौता ?
साल 1985 के असम समझौते के अनुसार, 24 मार्च 1971 के बाद बांग्लादेश से असम में प्रवेश करने वाले सभी लोगों को अवैध प्रवासी माना जाता है. इस समझौते में एएएसयू और अन्य समूहों के नेतृत्व में कई वर्षों तक आंदोलन किया गया था, जिसमें राज्य से अवैध प्रवासियों को निष्कासित करने की मांग उठाई गई थी. प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि नागरिकता संशोधन विधेयक-2019- साल 1985 में हुए असम समझौते का उल्लघंन है. इससे वहां के मूल निवासियों की भावनाओं और हितों को नुकसान पहुंचेगा.
क्यों पड़ी असम समझौते की जरुरत ?
असम में मूल निवासियों बनाम बाहरी शरणार्थियों की जंग की शुरुआत साल 1979 में हुई. मंगलदोई सीट पर उपचुनावों के दौरानमतदाताओं की संख्या अचानक कई गुना ज्यादा बढ़ गई. छानबीन शुरू हुई तो सामने आया कि मतदाताओं की संख्या बांग्लादेशी शरणार्थियों की वजह से बढ़ी है. इसके बाद राज्य में मूल निवासी बनाम शरणार्थी पर बवाल मच गया.
राज्य में बड़े पैमाने पर बांग्लादेशी शरणार्थियों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुए. धीरे-धीरे यह प्रदर्शन हिंसक होते चले गए. रिपोर्ट्स के मुताबिक इन विरोध प्रदर्शनों में साल 1979 से लेकर 1985 तक 2000 से ज्यादा बांग्लादेशी शरणार्थियों की हत्या हो गई. इसके बाद साल 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने असम समझौता किया.
असम की हिंसा के पीछे का कारण क्या है?
असम के मूल निवासियों को आशंका है कि इस कानून से उनके हितों को नुकसान होगा. कानून बदलने से बांग्लादेश से आए हिंदुओं को नागरिकता (Indian Citizenship) मिल जाएगी. इन बांग्लादेशी हिंदुओं को नागरिकता मिलने से वे यहां के मूल निवासियों के अधिकारों को चुनौती देंगे. इसका असम की संस्कृति, भाषा, परंपरा, रीति-रिवाजों पर असर पड़ेगा. सरल शब्दों में समझे तो असम के मूल निवासी बाहर से आए शरणार्थियों को नहीं चाहते.
क्या है नागरिकता (संशोधन) विधेयक-
नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2019 (Citizenship Amendment Bill 2019) राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद (Ram Nath Kovind) की मंजूरी के साथ ही गुरुवार देर रात से देशभर में लागू हो गया. इस नए कानून के तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न का सामना करने वाले गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यक प्रवासियों को भारतीय नागरिकता दी जाएगी.
नागरिकता कानून सोमवार को लोकसभा और बुधवार को राज्यसभा में पारित हुआ. इसके तहत हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों के सदस्य, जो 31 दिसंबर, 2014 तक पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए हैं और वहां धार्मिक उत्पीड़न का सामना किया है, उन्हें गैरकानूनी प्रवासी नहीं माना जाएगा बल्कि भारतीय नागरिकता दी जाएगी.