नई दिल्ली, 9 अगस्त : एनडीए से नाता तोड़ कर नीतीश कुमार ने एक बार फिर से लालू यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल, कांग्रेस और अन्य दलों के साथ मिलकर सरकार बना लिया है.
नीतीश कुमार के इस फैसले के साथ एक बार फिर से यह सवाल खड़ा हो गया है कि क्या नीतीश कुमार 2020 में मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद ही एनडीए का साथ छोड़ने की योजना बनाने लगे थे ? क्या 2020 में ही नीतीश कुमार को यह समझ आ गया था कि मोदी-शाह की इस नई भाजपा के साथ वो बहुत लंबे समय तक नहीं रह सकते हैं ? आखिर इन दो सालों में कब-कब ऐसा क्या-क्या हुआ जिसकी वजह से नीतीश कुमार ने एक बार फिर से उन्ही लालू यादव के साथ मिलकर सरकार बनाने के बारे में सोचना शुरू कर दिया जिनपर जंगल राज का आरोप लगाते हुए नीतीश कुमार ने एक दशक से भी लंबे समय तक राजनीतिक संघर्ष किया था ?
मंगलवार को बिहार में हुए इस राजनीतिक घटनाक्रम की शुरूआत सही मायनों में नवंबर 2020 में उसी दिन हो गई जिस दिन नीतीश कुमार ने एनडीए गठबंधन के नेता के तौर पर सातवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी. भाजपा में उनके सबसे भरोसेमंद माने जाने वाले उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी को बिहार की राजनीति से बाहर कर , भाजपा ने अपने दो नेताओं - तारकिशोर प्रसाद और रेणु देवी को उपमुख्यमंत्री बनवाया. उसी दिन नीतीश कुमार को यह समझ आ गया कि इस नई भाजपा को वो अपने अनुसार चला नहीं सकते. भाजपा ने अपनी मर्जी से अपने कोटे से मंत्री बनाए, प्रशासन पर भी पकड़ बनाने की लगातार कोशिश की और अपनी शर्तों पर अपने अनुसार सरकार चलाने के अभ्यस्त हो चुके नीतीश कुमार के लिए इस नई राजनीतिक परिस्थिति को स्वीकार कर पाना सहज नहीं हो पा रहा था.
जुलाई 2021 में मोदी मंत्रिमंडल का विस्तार हुआ और नीतीश कुमार की लगातार मांग के बावजूद भाजपा ने जेडीयू कोटे से सिर्फ एक ( राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह ) नेता को ही मंत्री बनाया. बताया जा रहा है कि उसी समय से नीतीश कुमार अपने सबसे भरोसेमंद सहयोगी जिन्हें उन्होंने अपनी पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया था, उन आरसीपी सिंह से भी नाराज रहने लगे और हाल ही में सिंह को जेडीयू से इस्तीफा भी देना पड़ा.
नीतीश कुमार को यह लगता रहा कि भाजपा ने उनके सबसे भरोसेमंद करीबी और राजदार आरसीपी सिंह को तोड़कर उन्हें उन्ही की पार्टी के कोटे से मंत्री बनाकर उनकी अहमियत कम करने की कोशिश की है. नीतीश इस दर्द को अपने दिल में पाले रहे और एक वर्ष बाद जब मौका आया तो आरसीपी सिंह को फिर से राज्य सभा न भेजकर उन्होंने अपना गुस्सा सार्वजनिक कर दिया. इसके बाद जेडीयू ने खुद ही अपने पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया और इसके बाद सिंह को पार्टी से इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा. यह भी पढ़ें : Bihar Politics Impact UP: बिहार में सरकार बदलने से समाजवादी पार्टी की उम्मीदें, Akhilesh Yadav बोले- यह एक अंत की शुरुआत
मार्च 2022 में बिहार विधान सभा के अंदर नीतीश कुमार और भाजपा कोटे से स्पीकर बने विजय सिन्हा के बीच हुई तीखी नोक-झोंक ने भी गठबंधन के भविष्य को लेकर कई सवाल खड़े कर दिए थे. नीतीश कुमार ने उस समय विधानसभा अध्यक्ष पर संविधान का उल्लंघन तक करने का आरोप लगा दिया. वो चाहते थे कि भाजपा इन्हें हटा दे लेकिन भाजपा ने ऐसा नहीं किया. जेडीयू की तरफ से दबी जुबान में यह भी कहना शुरू कर दिया गया था कि भाजपा जानबूझकर नीतीश कुमार को अपमानित करने का प्रयास कर रही है और शायद नीतीश कुमार भी इस बात को मानने लगे थे. इस घटना के बाद से ही नीतीश कुमार ने दिल्ली से दूरी बनाना शुरू कर दिया था.
जुलाई 2022 में भाजप ने पहली बार अपने सभी सातों मोचरें की संयुक्त बैठक की और इस महत्वपूर्ण बैठक के लिए बिहार को चुना गया. मसला एक बैठक तक ही सीमित रहता तो शायद नीतीश कुमार चिंतित नहीं होते लेकिन इस बैठक के जरिए भाजपा द्वारा बिहार के सभी 243 विधानसभा क्षेत्रों में पार्टी संगठन को मजबूत करने की कवायद ने शायद नीतीश कुमार को इतना ज्यादा परेशान कर दिया कि उस बैठक के समापन के महज 10 दिनों के अंदर ही उन्होंने भाजपा को बाय-बाय कह दिया.
जेडीयू की तरफ से यह भी दावा किया जा रहा है कि भाजपा आरसीपी सिंह के जरिए जेडीयू के विधायकों को तोड़ने की कोशिश कर रही थी. नीतीश कुमार मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया और महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे प्रकरण देख चुके थे और उन्हें इस बात का डर सताने लगा था कि बिहार में भी भाजपा यही खेल कर सकती है हालांकि ये और बात है कि भाजपा ने अपनी तरफ से कभी भी नीतीश सरकार को गिराने की कोशिश नहीं की. स्थानीय स्तर पर भले ही भाजपा और जेडीयू नेताओं के बीच बयानबाजी होती रही लेकिन भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा , गृह मंत्री अमित शाह से लेकर पार्टी के तमाम दिग्गज नेता हमेशा यही कहते रहे हैं कि बिहार में नीतीश कुमार ही एनडीए के नेता हैं और उन्ही के साथ मिलकर 2024 का लोक सभा और 2025 का विधानसभा चुनाव लड़ा जाएगा.
लेकिन 2020 से ही भाजपा को लेकर मन में खुंदक पाले नीतीश कुमार को लगा कि भाजपा को छोड़ने का सही समय आ गया है तो उन्होंने फैसला लेने में कोई देर नहीं की.