Bhopal Gas Tragedy: भोपाल गैस त्रासदी में केंद्र से सुप्रीम कोर्ट ने कहा- इतने अंतरराष्ट्रीय व्यापार को देखते हुए समझौते की पवित्रता होनी चाहिए

सुप्रीम कोर्ट ने यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन (यूसीसी) की उत्तराधिकारी फर्मों से अतिरिक्त 7,844 करोड़ रुपये की मांग वाली केंद्र की उपचारात्मक याचिका पर सुनवाई करते हुए बुधवार को कहा कि जब इतना अंतरराष्ट्रीय व्यापार और वाणिज्य है, तो समझौते की पवित्रता होनी चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट (Photo Credit : Twitter)

नई दिल्ली, 12 जनवरी : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन (UCC) की उत्तराधिकारी फर्मों से अतिरिक्त 7,844 करोड़ रुपये की मांग वाली केंद्र की उपचारात्मक याचिका पर सुनवाई करते हुए बुधवार को कहा कि जब इतना अंतरराष्ट्रीय व्यापार और वाणिज्य है, तो समझौते की पवित्रता होनी चाहिए. जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने केंद्र की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी से कहा: ऐसा नहीं है कि जो हुआ उसके प्रति हम संवेदनशील नहीं हैं, लेकिन जब सुप्रीम कोर्ट कुछ करता है तो उसका व्यापक प्रभाव होता है.

बेंच - जिसमें जस्टिस संजीव खन्ना, अभय एस ओका, विक्रम नाथ और जेके माहेश्वरी भी शामिल हैं - ने कहा: विशेष रूप से आज के समय में, जब इतना अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और वाणिज्य है, समझौते की पवित्रता होनी चाहिए. पीठ ने कहा कि 1991 में कार्यवाही में अपने एक फैसले में, अदालत ने सुझाव दिया था कि सरकार भविष्य के दावों की देखभाल के लिए पीड़ितों के लिए बीमा पॉलिसी ले, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार ने इसे लागू नहीं किया. यह भी पढ़ें : कर्नाटक के सीएम बोम्मई का अफसरों को निर्देश, 25 तालुकों में मिनी-टेक्सटाइल पार्क शुरू करें

पीठ ने एजी को आगे बताया कि केंद्र ने समझौते के 20 से अधिक वर्षों के बाद उपचारात्मक याचिका के बजाय एक समीक्षा याचिका दायर नहीं की. पीठ ने कहा, हम कानून द्वारा विवश हैं, हालांकि हमारे पास कुछ छूट है. लेकिन हम यह नहीं कह सकते हैं कि हम मूल मुकदमे के अधिकार क्षेत्र के आधार पर उपचारात्मक याचिका (क्यूरेटिव पिटीशन) पर फैसला करेंगे.

केंद्र ने समझौते को रद्द करने के लिए समीक्षा याचिका दायर नहीं की, जिसे वह अब बढ़ाना चाहता है. एजी ने तर्क दिया कि शीर्ष अदालत ने भोपाल गैस रिसाव आपदा (दावों का प्रसंस्करण) अधिनियम, 1985 और इसके तहत योजना का समर्थन किया था और इस बात पर जोर दिया था कि मानवीय त्रासदी को देखते हुए कुछ पारंपरिक सिद्धांतों से परे जाना बहुत महत्वपूर्ण है.

केंद्र सरकार ने इस बात पर जोर दिया है कि 1989 में हुए समझौते में मानव जीवन के नुकसान का आकलन नहीं किया जा सका. न्यायमूर्ति कौल ने कहा: समस्या यह है कि आप इसे (यूसीसी) पर डाल रहे हैं. क्या हम इस समय सब कुछ खोल सकते हैं? शीर्ष अदालत दिसंबर 2010 में भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों के लिए मुआवजा बढ़ाने के लिए केंद्र द्वारा दायर क्यूरेटिव पिटीशन पर सुनवाई कर रही है.

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