प्रदूषण के खिलाफ बड़ा वार, दिल्ली में 21 नंवबर को ऐसे करवाई जाएगी बिन मौसम की बरसात

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में जहरीले हवा से निपटने के लिए बिन मौसम की बरसात करवाई जाएगी. कृत्रिम बारिश के लिए सभी तैयारियां भी लगभग पूरी हो चुकी है. केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की इस योजना में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो), वायुसेना और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (आइआइटी) कानपुर मिलकर काम करने वाली है.

फाइल फोटो (Photo Credit: PTI)

नई दिल्ली: राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में जहरीले हवा से निपटने के लिए बिन मौसम की बरसात करवाई जाएगी. कृत्रिम बारिश के लिए सभी तैयारियां भी लगभग पूरी हो चुकी है. केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की इस योजना में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो), वायुसेना और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (आइआइटी) कानपुर मिलकर काम करने वाली है.

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक दिल्ली में 21 नवंबर को कृत्रिम बारिश कराई जाएगी. पर्यावरण मंत्रालय ने सभी जरुरी मंजूरिया ले ली है.  बताया जा रहा है डायरेक्टर जनरल ऑफ सिविल एविएशन (डीजीसीए) की आखिरी मुहर लगनी बाकी है जो कि आज ही मिलने की संभावना है. इसके बाद दिल्ली में कृत्रिम बारिश करवाने का रास्ता साफ़ हो जाएगा.

एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक प्रदूषण के बढ़े स्तर को कम करने के लिए कृत्रिम बारिश कराने की योजना पर वर्षो से काम चल रहा था. लेकिन पहली बार इसका इस्तेमाल 21 नवंबर को होने जा रहा है, क्योंकि मौसम विभाग ने इसी दिन दिल्ली के ऊपर बादलों के जमघट होने का अनुमान जताया है.

20 लाख रुपये होगें खर्च-

इस योजना में कुल 20 लाख रुपये खर्च होने वाले है. जिसमें वायु सेना का विशेष विमान, फव्वारा मशीन व बादलों के बीच रासायनिक क्रिया कराने के लिए केमिकल शामिल है. हालांकि वायु सेना इस काम के लिए पैसे नहीं लेगी. जबकि कृत्रिम बारिश के लिए उपकरण आइआइटी कानपुर से मुहैया कराए जाएंगे. पर्यावरण मंत्रालय सिर्फ बादलों को बारिश की बूंदों में बदलने के लिए केमिकल देगा.

ऐसे होती है कृत्रिम बारिश-

सिल्वर आयोडाइड और शुष्क बर्फ का उपयोग करके कृत्रिम बारिश कराई जाती है. इसमें एक खास डॉप्लर रडार की मदद ली जाती है जिससे 20 किलोमीटर के दायरे में बारिश वाले बादलों को खोजा जाता है. फिर इन्ही बादलों पर सिल्वर आयोडाइड का फव्वारा मारा जाता है जो बादलों से रासायनिक क्रिया करता है. और फिर पानी की बूंदें गतिशील होकर बरसती है.

जुलाई महीने में आईआईटी कानपुर के विशेषज्ञ सरकार के सामने क्लाउड-सीडिंग (कृत्रिम बारिश) तकनीक का प्रजेंटेशन दे चुके हैं. क्लाउड-सीडिंग में प्राकृतिक गैसों का इस्तेमाल किया जाता है.

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