Kusum Ka Biyaah Review: 'कुसुम का बियाह' एक प्रेम कहानी से परे देती है सामाजिक संदेश, लॉकडाउन में फंसी शादी!
निर्देशक शुवेंदु राज घोष की फिल्म 'कुसुम का बियाह' केवल एक प्रेम कहानी से आगे निकलकर, सरकारी तंत्र को सुधारने और बिहार-झारखंड के बीच सद्भाव बढ़ाने का एक महत्वपूर्ण संदेश देती है.
Kusum Ka Biyaah Review: निर्देशक शुवेंदु राज घोष की फिल्म 'कुसुम का बियाह' केवल एक प्रेम कहानी से आगे निकलकर, सरकारी तंत्र को सुधारने और बिहार-झारखंड के बीच सद्भाव बढ़ाने का एक महत्वपूर्ण संदेश देती है. फिल्म में लवकेश गर्ग, सुजाना दार्जी, प्रदीप चोपड़ा, राजा सरकार, सुहानी बिस्वास और पन्या दर्शन गुप्ता जैसे प्रतिभाशाली कलाकारों का दमदार अभिनय देखने को मिलता है. यह फिल्म कोरोना महामारी के दौरान की है, लॉकडाउन के दौरान घटित वास्तविक घटनाओं से प्रेरित है और एक मनोरंजक मानवीय कहानी सुनाती है. फिल्म 1 मार्च को सिनेमाघरों में दस्तक देगी. Article 370 Review: यामी गौतम और प्रियामणि की दमदार अदाकारी के साथ 'आर्टिकल 370' कश्मीर के जटिल मुद्दे पर डालती है प्रकाश!
कहानी
कहानी सुनील (लवकेश गर्ग) की शादी के दिन आने वाली कठिनाइयों के इर्द-गिर्द घूमती है. खुशी के साथ तैयारियां चल रही हैं, लेकिन कहानी में तब नाटकीय मोड़ आता है, जब राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन शादी के उत्सव में खलल डालता है. बिहार और झारखंड की सीमा पर फंसी, पूरी बारात अप्रत्याशित स्थिति का सामना करती है, जो एक अनोखी और दिल को छू लेने वाली कहानी बयां करती है.
प्रेम से परे, सामाजिक मुद्दों की झलक
'कुसुम का बियाह' ग्रामीण आबादी के जीवन पर केंद्र सरकार के फैसलों के प्रभाव को दर्शाता है, खासकर कोविड-19 महामारी के चुनौतीपूर्ण समय के दौरान. इस दिल को छू लेने वाली कहानी के माध्यम से, फिल्म बिहार और झारखंड के बीच की जटिलताओं पर प्रकाश डालती है, जो नौकरशाही की जटिलताओं और सरकारी खामियों के बीच फंसे आम लोगों के संघर्षों को उजागर करती है. यह स्थिति दर्शकों को सोचने के लिए एक नया नजरिया पेश करती है.
प्रभावशाली अभिनय
सुजाना दार्जी ने शांत स्वभाव वाली नई दुल्हन के रूप में एक शानदार प्रदर्शन दिया है, अपने चरित्र में गहराई और बारीकियां जोड़ती हैं. लवकेश गर्ग सहजता और प्रामाणिकता के साथ दूल्हे की भूमिका निभाते हैं. भानु प्रताप सिंह की संगीत रचनाएं फिल्म को भावनात्मक कहानी के साथ जोड़ते हुए एक शानदार स्वर देती हैं.
मानवीय अनुभवों का ताना-बाना
यद्यपि 'कुसुम का बियाह' एक पारंपरिक कहानी का अनुसरण नहीं करता है, फिर भी यह महामारी के दौरान घटित विभिन्न घटनाओं को जोड़कर दर्शकों को आकर्षित करती है. यह इन घटनाओं को कुशलता से प्रस्तुत करती है, उन लोगों के लिए एक अनूठा दृष्टिकोण प्रदान करती है जो अप्रत्याशित परिस्थितियों और जटिल सरकारी प्रणालियों के जाल में फंसे हुए हैं या कभी फंसे थे.
कुशल निर्देशन
शुवेंदु घोष का निर्देशन कथानक को कुशलता से संभालने के लिए उल्लेखनीय है, यह सुनिश्चित करता है कि फिल्म शुरू से अंत तक मनोरंजक बनी रहे. हलांकि बीच बीच में फिल्म थोड़ा धीमी होती है पर अगले ही पल गति पकड़ लेती है. निर्देशक घटनाओं को बारीकी से जोड़ते हैं, किसी भी नीरस क्षण को रोकते हुए दर्शकों को बांधे रखते हैं.
निष्कर्ष
'कुसुम का बियाह' सिर्फ एक प्रेम कहानी होने से आगे निकलकर सामाजिक चुनौतियों, नौकरशाही बाधाओं और विपरीत परिस्थितियों का सामना करने वाले व्यक्तियों के असाधारण लचीलेपन पर एक मार्मिक टिप्पणी प्रस्तुत करती है. महामारी के दौरान वास्तविक जीवन की घटनाओं को चित्रित करने की फिल्म की क्षमता निर्देशक की कहानी कहने की असाधारण क्षमता का प्रदर्शन करती है