क्या डरावनी फिल्मों से बढ़ेगा समाज में अंधविश्वास?

भारत में इस साल दर्शकों ने डरावनी फिल्मों को खूब पसंद किया.

प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

भारत में इस साल दर्शकों ने डरावनी फिल्मों को खूब पसंद किया. स्त्री-2 और भूल-भुलैया-3 जैसी फिल्मों ने बढ़िया कमाई की है. इससे उत्साहित अक्षय कुमार और आयुष्मान खुराना जैसे कलाकार भी हॉरर फिल्मों में काम करने जा रहे हैं.साल 2024 हिंदी फिल्मों के लिए ज्यादा अच्छा साबित नहीं हुआ है. साल के लगभग 11 महीने बीत चुके हैं, लेकिन ज्यादा हिट फिल्में देखने को नहीं मिली हैं. हालांकि, इस साल भूतिया या कहें कि डरावनी फिल्मों को बॉक्स ऑफिस पर खूब सफलता मिली है. इन फिल्मों में भूल-भुलैया 3, स्त्री-2, मुंज्या और शैतान जैसे नाम शामिल हैं.

स्त्री-2 इस साल की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली हिंदी फिल्म है. इसमें एक बुरी और एक भली आत्मा की कहानी को कॉमेडी के साथ पेश किया गया है. भूल-भुलैया- 3 तो अभी भी सिनेमाघरों में चल रही है और सितारों से सजी सिंघम अगेन के लगभग बराबर कमाई कर चुकी है. इससे पहले, मार्च में रिलीज हुई अजय देवगन की ‘शैतान' और जून में रिलीज हुई ‘मुंज्या' ने भी ठीक-ठाक कमाई की थी.

डरावनी फिल्मों को क्यों भा रही हैं लोगों को?

वरिष्ठ फिल्म पत्रकार पंकज शुक्ल अमर उजाला अखबार के मनोरंजन प्रमुख हैं. वे कहते हैं, "डर का एक अलग मनोविज्ञान होता है. हमारे नौ रसों में वीभत्स और भयानक रस भी है. इसलिए सिनेमा में भी जब डर का भाव आता है, तो उसका एक अलग ही आकर्षण होता है.”

उन्होंने आगे कहा, "लोगों में खासकर युवाओं में डर के प्रति जो उत्सुकता है, उसकी वजह से डरावनी फिल्में सफल हो रही हैं. आजकल लोग प्रेम कहानियों वाली फिल्मों की तरफ ज्यादा आकर्षित नहीं हो रहे हैं. लेकिन हॉरर फिल्मों में दर्शकों को एक रोमांच मिलता है. वे डर को महसूस कर पाते हैं.”

आज भी भूत प्रेत क्यों मानते हैं लोग?

अखिल भारतीय अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के संस्थापक और प्रोफेसर श्याम मानव की राय भी इससे मिलती-जुलती है. वे कहते हैं, "हम जो नहीं कर पाते, लेकिन मन में करने की इच्छा होती है, उसे सिनेमा में देखना चाहते हैं. आम दर्शक हिंसक नहीं होते हैं, लेकिन उन्हें हिंसक फिल्में पसंद आती हैं. आम जीवन में हम किसी को नहीं पीटते हैं, लेकिन फिल्म में हीरो विलेन की पिटाई करता है तो हमें बड़ा मजा आता है. इसी तरह डर भी हमारे अंदर की एक भावना है. हॉरर फिल्मों के जरिए हम डर का अनुभव करते हैं. डर की भावना का आनंद लेते हैं.”

क्या सभी भूतिया फिल्में हो जाती हैं हिट?

इस साल दर्शकों ने भूतिया फिल्मों को खासा पसंद किया है. इससे उत्साहित होकर बॉलीवुड में कई और हॉरर फिल्में भी बन रही हैं. अक्षय कुमार भूत बंगला नाम की फिल्म लेकर आ रहे हैं, जिसे प्रियदर्शन डायरेक्ट करेंगे. श्रद्धा कपूर अपनी अगली फिल्म में नागिन का किरदार निभाने जा रही है. इसके अलावा, स्त्री-2 के निर्माता दिनेश विजान एक और हॉरर फिल्म बना रहे हैं जिसमें आयुष्मान खुराना, रश्मिका मंदाना और परेश रावल नजर आएंगे.

ऐसी फिल्म कि थिएटर छोड़ कर भागने लगे

हालांकि हर हॉरर फिल्म सफल हो जाए, यह भी जरूरी नहीं है. इसी साल जुलाई में सोनाक्षी सिन्हा और रितेश देशमुख की काकुड़ा फिल्म ओटीटी पर रिलीज हुई. वह भी एक हॉरर-कॉमेडी थी, लेकिन उसकी उतनी चर्चा नहीं हुई. 2022 में रिलीज हुई वरुण धवन की भेड़िया औसत कमाई ही कर पाई थी. वहीं, भूत पुलिस, रूही और फोन भूत जैसी फिल्में भी बॉक्स ऑफिस पर नाकाम साबित हुई थीं.

पकंज शुक्ल मानते हैं, "हॉरर फिल्म में अगर देसी कहानी होगी और उसकी जड़ें दर्शकों के अतीत या बचपन से जुड़ी होंगी, तभी फिल्म चलेगी. दर्शकों का कहानी से भावनात्मक जुड़ाव होना चाहिए. फिल्म में एक्टर भी अच्छे होने चाहिए. इसके अलावा, हिट होने के लिए फिल्म को ऐसा होना चाहिए जिसे पूरा परिवार साथ बैठकर देख सके.”

क्या हॉरर फिल्मों से बढ़ता है अंधविश्वास

प्रोफेसर श्याम मानव की राय में डरावनी फिल्में समाज के लिए एक अच्छा संकेत नहीं हैं. वे कहते हैं कि ऐसी फिल्में देखने से जिनका भूत-प्रेतों में विश्वास होता है, वह और पक्का हो जाता है. हालांकि, उनका यह भी कहना है कि जो लोग अंधविश्वासी नहीं है, वे हॉरर फिल्म देखकर अंधविश्वासी नहीं बन जाते, क्योंकि वे इसे सिर्फ मनोरंजन के तौर पर लेते हैं. प्रोफेसर मानव कहते हैं कि जो लोग थोड़े-बहुत अंधविश्वासी होते हैं, उनका इसमें भरोसा बढ़ सकता है.

उन्होंने समझाया, "जिस समाज में बिल्कुल भी अंधविश्वास नहीं होगा, वहां लोग ऐसी फिल्मों को सिर्फ मनोरंजन के लिए देखेंगे. जैसे साइंस फिक्शन भी पूरी तरह सच नहीं होता है. लोग उसे एक अच्छी कल्पना मानकर मनोरंजन के लिए देखते हैं. लेकिन भूत-प्रेतों की कहानी को वे सिर्फ कल्पना मानकर नहीं देख सकते क्योंकि बचपन से उनके दिमाग में होता है कि ये बातें सच्ची हैं.”

प्रोफेसर मानव सुझाव देते हैं, "एक गाइडलाइन होनी चाहिए कि फिल्में इस ढंग से बनें कि उनसे समाज की बुराइयों को बढ़ावा ना मिले. साथ ही ऐसी हॉरर फिल्में बिल्कुल नहीं बननी चाहिए जो आखिर में बताती हैं कि वे सच्ची घटनाओं पर आधारित हैं. क्योंकि यह सच नहीं होता है. ऐसी फिल्मों से लोगों के अंधविश्वास को बढ़ावा मिलता है.”

क्या अंधविश्वास के खिलाफ नहीं बनती फिल्में

भारत में हॉरर फिल्में तो खूब बनती हैं, लेकिन भूत-प्रेत, काला जादू और अंधविश्वास को झुठलाने वाली फिल्में बेहद कम हैं. साल 2002 में आई ‘मकड़ी' ऐसी ही एक फिल्म है. इसमें दिखाया गया है कि कैसे चुड़ैल के नाम पर लोगों को डराकर उनका फायदा उठाया जाता है.

भूल-भुलैया-1 में भी एक भूतिया कहानी के पीछे की सच्चाई को दिखाया गया है. उसके वैज्ञानिक पहलू पर प्रकाश डाला गया है.

प्रोफेसर मानव कहते हैं, "अंधविश्वास की फिल्मों को हम गंभीरता से लेते हैं क्योंकि उससे जुड़ी बातें हमारे दिमाग में पहले से होती हैं. लेकिन अंधविश्वास के खिलाफ बनी फिल्मों को हम ज्यादा गंभीरता से नहीं लेते. इसलिए अगर अंधविश्वास के खिलाफ फिल्में बनाई भी जाएंगी तो भी उनका ज्यादा असर नहीं होगा.”

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