कोई भी राष्ट्रमंडल खेल कराने को तैयार क्यों नहीं है?
पहले ऑस्ट्रेलिया का एक राज्य 2026 के कॉमनवेल्थ खेल कराने से पीछे हट गया और फिर कनाडा के एक राज्य ने 2030 की अपनी दावेदारी वापस ले ली.
पहले ऑस्ट्रेलिया का एक राज्य 2026 के कॉमनवेल्थ खेल कराने से पीछे हट गया और फिर कनाडा के एक राज्य ने 2030 की अपनी दावेदारी वापस ले ली. क्या अब कॉमनवेल्थ खेल कभी नहीं होंगे?पिछले हफ्ते कनाडा के अल्बेर्टा राज्य की सरकार ने कहा कि 2030 कॉमनवेल्थ खेलों की दावेदारी का वह समर्थन नहीं करेगी. 2030 में राष्ट्रमंडल खेलों को सौ साल पूरे होने हैं और इस मौके को बड़े आयोजन के रूप में देखा जा रहा था. लेकिन गुरुवार को अल्बेर्टा के ऐलान ने खेलों के भविष्य को ही खतरे में डाल दिया.
राष्ट्रमंडल खेल संघ अभी ऑस्ट्रेलिया से मिले झटके से भी नहीं उबर पाया था कि यह दूसरा झटका लगा. हाल ही में ऑस्ट्रेलिया के विक्टोरिया राज्य ने कहा था कि वह 2026 के कॉमनवेल्थ खेल कराने में असमर्थ है क्योंकि आयोजन का असल खर्च अनुमानित खर्च से कहीं ज्यादा बढ़ चुका है. इससे पहले 1930 में पहले राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजक रहे कनाडा के दो शहरों ओंतारियो और हैमिल्टन ने पिछले साल ही 2030 के आयोजन की दावेदारी से अपना नाम वापस ले लिया था.
वजूद ही खतरे में
इन फैसलों को बहुत से विशेषज्ञों ने खेलों के वजूद पर सवाल के रूप में देखा है. ऑस्ट्रेलिया में खेल इतिहासकार मैथ्यू क्लूगमन कहते हैं, "मुझे लगता है कि यह विनाशकारी धक्का है. इससे इन खेलों की अभी की ही नहीं बल्कि भविष्य की संभावनाओं पर भी गंभीर सवाल खड़े होते हैं.”
विक्टोरिया ने बढ़ते खर्च के कारण आयोजन से कदम पीछे खींचे थे. कॉमनवेल्थ स्पोर्ट कनाडा का कहना है कि इसी फैसले ने अल्बेर्टा को भी प्रभावित किया. कनाडा में मार्किटिंग कंपनी कॉस्मोस स्पोर्ट्स एंड एंटरटेनमेंट के अध्यक्ष कैरी कैपलान कहते हैं, "अब तक सबसे बड़ी वजह तो पैसा ही है. किसी भी देश में कॉमनवेल्थ खेल कराने का खर्च अच्छा-खासा हो जाता है. कोविड से उबरते हुए ऐसे खेलों को क्षेत्रीय या राष्ट्रीय स्तर पर भी समर्थन दे पाना पहले से कहीं ज्यादा महंगा है, जो कि बहुत दुख की बात है. लोगों में भी बड़े अंतरराष्ट्रीय खेलों के लिए उत्सुकता पहले से कम है और राजनेता भी इसे लेकर उदासीन हैं.”
दुनियाभर में खेलों के आयोजन लगातार बढ़ रहे हैं. हर जगह आयोजक इस विशाल अर्थव्यवस्था का एक हिस्सा पाने को बेकरार हैं. और लंबे समय तक चलने वाले आयोजनों के लिए इतने दिनों तक लगातार दर्शकों को उत्साहित रख पाना मुश्किल हो रहा है.
यूरोपीयन खेलों जैसे अंतरमहाद्वीपीय आयोजनों के लिए भी मुश्किलें बढ़ रही हैं, जो ओलंपिक खेलों के लिए क्वॉलिफायर होते हैं. क्लूगमन कहते हैं, "यह तो स्पष्ट है कि कॉमनवेल्थ खेलों की अहमियत कम हो रही है, खासकर अंग्रेजी भाषी देशों में जैसे कि कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन.”
पैसे का संकट
अंतरराष्ट्रीय खेल आयोजनों में आय का सबसे बड़ा साधन होते हैं टीवी अधिकार. लेकिन वर्ल्ड कप या ओलंपिक खेलों की तुलना में कॉमनवेल्थ खेलों का रेट बहुत कम है. इससे राष्ट्रीय और प्रांतीय सरकारों को बजट घाटा झेलना पड़ता है.
आयोजकों ने 2022 के बर्मिंगम कॉमनवेल्थ खेलों को बहुत बड़ी सफलता बताया था. उसके 14 लाख टिकट बिके थे. लेकिन पेरिस ओलंपिक खेल टिकटों के मामले में उनसे कहीं ज्यादा आगे निकल सकते हैं. आयोजकों को उम्मीद है कि वे एक करोड़ टिकट बेच पाएंगे.
अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति में लंबे समय तक मार्किटिंग के लिए जिम्मेदार रहे और अब बतौर मीडिया रणनीतिकार काम कर रहे माइक पाएन राष्ट्रमंडल खेलों के बारे में कहते हैं, "उनके सामने भी मार्किटिंग सबसे बड़ी चुनौती है. उनके पास ऐसे बड़े बाजार नहीं हैं, जहां से टीवी अधिकारों के जरिये पैसा कमाया जा सके. उनके पास बस कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और यूके जैसे बाजार हैं जबकि ओलंपिक खेलों के पास कहीं ज्यादा बड़े बाजार हैं.”
फिर भी, पाएन नहीं मानते कि कॉमनवेल्थ खेलों का अंत नजदीक है. वह कहते हैं, "बर्मिंगम खेल बहुत सफल रहे थे. इसलिए यह कहना कि अंत हो गया है, थोड़ी जल्दबाजी होगी. जब खेल चल रहे होते हैं तो वे ब्रिटेन, कनाडा या ऑस्ट्रेलिया में टीवी के सफल प्रोग्राम होते हैं.”
प्रासंगिकता का सवाल
कैपलान कहते हैं कि कनाडा में प्रसारकों और स्पॉन्सरों की प्रतिक्रिया बहुत ढीली थी. उन्होंने बताया, "महारानी एलिजाबेथ की मौत के बाद राष्ट्रमंडल की प्रासंगिकता घट रही है. नतीजतन खेलों की प्रासंगिकता भी घटेगी, अगर आयोजक आने वाले सालों में मार्किटिंग और ब्रैंडिंग को लेकर ज्यादा मेहनत नहीं करते हैं, तो. कनाडा में मैंने इस बारे में ज्यादा बातचीत होते नहीं देखी है कि यह आयोजन कितना महत्वपूर्ण है. और जिस तरह हाल ही में नाम वापस लिये जा रहे हैं, वह तो खतरे की घंटी है.”
हाल के सालों में राष्ट्रमंडल खेलों की अवधारणा को लेकर भी विवादित सवाल उठे हैं और यह भावना बढ़ी है कि महारानी एलिजाबेथ के बाद इनका कोई औचित्य नहीं रह गया है. हालांकि क्लूगमन कहते हैं कि छोटे देशों के लिए ये खेल आज भी बहुत अहमियत रखते हैं.
वह कहते हैं, "अमीर देश, जिन्होंने साम्राज्यवाद से खूब लाभ उठाया, वे संभवतया अब इन खेलों को खत्म करना चाहते हैं, जिनका उन गरीब देशों के लिए महत्व है जिन्हें लूटा गया. ये खेल उन बहुत से तरीकों में से हो सकते हैं, जिनके जरिये साम्राज्वादियों द्वारा लूटे गये धन का दोबारा बंटवारा हो सके.”
वीके/एए (रॉयटर्स)