देश की खबरें | शिक्षण संस्थानों की स्वतंत्रता को नष्ट कर देगा यूजीसी का मसौदा, वापस लिया जाए: कांग्रेस

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नयी दिल्ली, 14 जनवरी कांग्रेस ने उच्च शिक्षण संस्थानों में सहायक प्रोफेसर और कुलपतियों की भर्ती में बड़े बदलाव करने वाले मसौदे को संस्थानों की स्वतंत्रता को नष्ट करने वाला कदम करार देते हुए मंगलवार को कहा कि सरकार को इसे वापस लेना चाहिए।

पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने दावा किया कि इस कदम का एक मकसद शिक्षा जगत में प्रभावशाली पदों पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के लोगों को बिठाने के लिए राह आसान करना है।

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने पिछले सप्ताह मसौदा नियम जारी किए जिसमें सहायक प्रोफेसर और कुलपतियों की भर्ती में बड़े बदलाव का प्रस्ताव है।

रमेश ने ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, ‘‘विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने हाल ही में यूजीसी (विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में शिक्षकों और शैक्षणिक कर्मचारियों की नियुक्ति और पदोन्नति के लिए न्यूनतम योग्यता और उच्च शिक्षा में मानकों के रखरखाव के उपाय) नियमन, 2025 का मसौदा जारी किया है। इममें कई नियम ख़तरनाक उद्देश्य के साथ लाए गए हैं।’’

उन्होंने दावा किया, ‘‘अनुबंध आधारित प्रोफेसर के पदों को 10 प्रतिशत की सीमा को हटाकर उच्च शिक्षा में बड़े पैमाने पर संविदाकरण के लिए द्वार खोला गया है। यह हमारे संस्थानों की गुणवत्ता और शिक्षण स्वतंत्रता को नष्ट करने वाला है।

रमेश के मुताबिक, राज्यों के विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति में राज्य सरकार की सभी शक्तियों को छीन लिया गया है।

उन्होंने कहा कि गैर-शैक्षणिक व्यक्ति को कुलपति बनाने की छूट देने के लिए भी नियमों में संशोधन किए गए हैं ।

कांग्रेस नेता ने दावा किया कि यह एक ऐसा कदम है जिसका उद्देश्य पूरी तरह से शिक्षा जगत में प्रभावशाली पदों पर आरएसएस के लोगों को बिठाने के लिए राह आसान करना है।

उन्होंने कर्नाटक के उच्च शिक्षा मंत्री एमसी सुधाकर द्वारा केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को लिखे गए पत्र का हवाला देते हुए कहा, ‘‘ कांग्रेस इन्हें (नियमों) पूरी तरह से ख़ारिज करती है और इन मसौदा नियमों को तुरंत वापस लेने की मांग करती है।’’

केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने सोमवार को कांग्रेस पर हमला करते हुए उस पर यूजीसी द्वारा जारी भर्ती मानदंडों के मसौदे के बारे में झूठ फैलाने का आरोप लगाया था।

उन्होंने कहा था कि राज्यपालों द्वारा विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की नियुक्ति की प्रथा आजादी के पहले से ही चली आ रही है।

हक

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