देश की खबरें | धर्मांतरण पर उप्र, उत्तराखंड के कानूनों के खिलाफ मामले में दो लोगों ने पक्ष बनाने का अनुरोध किया

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नयी दिल्ली, 19 जनवरी उच्चतम न्यायालय का रुख कर दो लोगों ने अंतर-धार्मिक शादियों के कारण धार्मिक धर्मांतरण का नियमन करने वाले उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड के नए विवादास्पद कानूनों के संबंध में पक्षकार बनाए जाने का मंगलवार को अनुरोध किया।

उच्चतम न्यायालय ने वकील विशाल ठाकरे और अन्य के साथ एक एनजीओ ‘सिटीजन फॉर जस्टिस एंड पीस’ द्वारा दायर याचिकाओं पर इस महीने दोनों राज्य सरकारों को नोटिस जारी किया था। हालांकि, दोनों राज्यों ने कानूनों के विवादास्पद प्रावधानों पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था।

याचिकाकर्ताओं ने ‘उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश, 2020' और उत्तराखंड धार्मिक स्वतंत्रता कानून, 2018 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी है। इन दोनों कानूनों में अंतर धार्मिक शादियों के लिए धर्म परिवर्तन का नियमन किया गया है।

बिहार निवासी वसीम अहमद और उत्तरप्रदेश के रामलखन चौरसिया द्वारा दाखिल हस्तक्षेप याचिका में कहा गया है कि ‘‘अध्यादेश व्यक्ति के निर्णय का नियमन करने का प्रयास है क्योंकि यह अपनी पंसद से धर्म परिवर्तन के लिए किसी व्यक्ति के अधिकारों में दखल की तरह है।’’

याचिका में कहा गया, ‘‘राज्य द्वारा इस तरह निरीक्षण किया जाना संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है और यह किसी व्यक्ति की निजी स्वतंत्रता पर गंभीर आघात है।’’

याचिका में मामले में सहयोग के लिए अदालत की अनुमति मांगी गयी है। याचिकाओं के वकीलों ने छह जनवरी को कानून के प्रावधानों पर रोक लगाने का अनुरोध किया था और कहा था कि शादी के दौरान ही प्रशासन लोगों को ‘‘उठा’’ ले जा रहा है।

वकीलों ने कहा था कि ये कानून ‘‘दमनकारी और खौफनाक’’ प्रकृति के हैं और इसके लिए शादी करने पहले सरकार से अनुमति लेने की जरूरत है जो कि बिल्कुल आपत्तिजनक हैं।

न्यायालय ने कहा था कि वह नोटिस जारी कर रहा है और दोनों राज्यों से चार हफ्ते के भीतर जवाब देने को कहा गया ।

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