पालघर, 31 जुलाई महाराष्ट्र के आदिवासी बहुल पालघर जिले में माहवारी के बारे में बात करना अच्छा नहीं माना जाता, लेकिन दाभोन गांव के कटकरी समुदाय की महिलाओं के लिए सेनिटरी पैड बनाना स्थायित्व और सतत आय के स्रोत की गारंटी है।
कटकरी समुदाय की महिलाओं को ‘प्रिमिटिव वल्नरेबल’ आदिवासी समूह (पीवीटीजी) की श्रेणी में रखा गया है। यह महिलाएं आमतौर पर राज्य और देश के विभिन्न हिस्सों में जाकर ईंट भट्ठों या खेत में काम करती हैं, लेकिन एकीकृत आदिवासी विकास परियोजना (आईटीडीपी) के तहत जारी एक पहल ने उन्हें एक स्थान पर रहकर आजीविका कमाने का अवसर प्रदान किया है।
दहानू की सब डिविजनल मजिस्ट्रेट असीमा मित्तल के दिमाग की उपज इस परियोजना के लिए महाराष्ट्र सरकार के मानव विकास मिशन के जरिये पैसा दिया जा रहा है और आईटीडीपी, दहानू द्वारा इसे क्रियान्वित किया जा रहा है।
आईटीडीपी, दहानू की प्रमुख मित्तल ने कहा, “कटकरी समुदाय की महिलाएं काम के लिए अन्य स्थानों पर जाती थीं। हमने उन्हें प्रशिक्षण दिया और अब उन्होंने सेनिटरी नैपकिन बनाना शुरू कर दिया है। हमें उम्मीद है कि उनके जीवन में बड़ा बदलाव आएगा।”
उन्होंने कहा कि गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) नवजीवन फाउंडेशन ने इन महिलाओं को जैविक तरीके से नष्ट होने वाले सेनिटरी पैड बनाने की प्रक्रिया सिखाने के लिए छह महीने तक प्रशिक्षण दिया गया। उन्होंने कहा कि ये महिलाएं ‘प्रगति’ नामक ब्रांड के तहत सेनिटरी पैड बना रही हैं।
अधिकारी ने कहा कि अभी 10 महिलाएं यह काम कर रही हैं और जिले के अन्य हिस्सों में इस परियोजना को विस्तार देने के बाद कई और महिलाओं के इससे जुड़ने की उम्मीद है।
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