देश की खबरें | स्वामी श्रद्धानंद ने शीर्ष अदालत से दया याचिका पर फैसला करने का निर्देश देने का किया आग्रह
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नयी दिल्ली, 10 जनवरी पत्नी की हत्या के मामले में 30 साल से जेल में बंद स्वामी श्रद्धानंद ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर कर अनुरोध किया है कि प्राधिकारी दिसंबर 2023 में राष्ट्रपति के समक्ष दायर उसकी दया याचिका पर फैसला करें।
शुक्रवार को जब याचिका न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आई, तो पीठ ने 84 वर्षीय श्रद्धानंद उर्फ मुरली मनोहर मिश्रा की ओर से पेश हुए वकील वरुण ठाकुर से कहा कि वह अपनी याचिका की एक प्रति केंद्र के वकील को उपलब्ध कराएं।
उन्होंने कहा कि याचिका पर अगले सप्ताह सुनवाई होगी।
ठाकुर ने कहा कि श्रद्धानंद ने एक भी दिन की पैरोल के बिना 30 साल जेल में बिताए हैं।
पिछले वर्ष अक्टूबर में उच्चतम न्यायालय ने श्रद्धानंद की उस याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया था, जिसमें उसने शीर्ष अदालत के उस फैसले की समीक्षा का अनुरोध किया था, जिसमें उसे शेष जीवन तक जेल में ही रखने का निर्देश दिया गया था।
उसने उच्चतम न्यायालय की तीन न्यायाधीशों की पीठ के जुलाई 2008 के फैसले की समीक्षा का अनुरोध किया था।
श्रद्धानंद की पत्नी शकेरेह मैसूर की पूर्ववर्ती रियासत के पूर्व दीवान सर मिर्जा इस्माइल की पोती थीं।
उच्चतम न्यायालय ने जुलाई 2008 के अपने फैसले में उल्लेख किया कि इस जोड़े ने अप्रैल 1986 में विवाह किया था, लेकिन मई 1991 में शकेरेह अचानक गायब हो गईं।
इसने कहा कि मार्च 1994 में केंद्रीय अपराध शाखा, बेंगलुरु ने शकेरेह के बारे में ‘‘गुमशुदगी’’ की शिकायत पर जांच अपने हाथ में ली और श्रद्धानंद ने उसकी हत्या करने की बात कबूल की।
न्यायालय में दायर अपनी नयी याचिका में श्रद्धानंद ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के मामले का हवाला दिया और कहा कि दोषियों को कारावास के दौरान पैरोल और छुट्टी मिली तथा अंततः 27 साल के कारावास के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया।
याचिका में श्रद्धानंद की पुनर्विचार याचिका पर उच्चतम न्यायालय द्वारा पिछले वर्ष 23 अक्टूबर को पारित आदेश का हवाला दिया गया।
इसमें कहा गया कि शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में उल्लेख किया है कि संविधान पीठ ने माना है कि अदालत द्वारा मृत्युदंड के विकल्प के रूप में मृत्यु तक आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान किए जाने के बावजूद राष्ट्रपति को अनुच्छेद 72 के तहत और राज्यपाल को अनुच्छेद 161 के तहत शक्तियों का प्रयोग करने का अधिकार है।
संविधान के अनुच्छेद 72 और 161 में राष्ट्रपति और राज्यपाल को क्षमादान आदि देने तथा कुछ मामलों में सजा को निलंबित करने, माफ करने या कम करने की शक्ति का उल्लेख है।
श्रद्धानंद ने कहा कि उसने दिसंबर 2023 में राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका दायर की थी, जो विचाराधीन है।
याचिका में कहा गया, ‘‘याचिकाकर्ता एक भी दिन की पैरोल या किसी छूट के बिना 30 साल से जेल में है और विभिन्न बीमारियों से पीड़ित है।’’
इसमें प्रतिवादी प्राधिकारियों को उसकी दया याचिका पर निर्णय लेने का निर्देश देने का आग्रह किया गया।
वर्ष 2005 में निचली अदालत ने श्रद्धानंद को दोषी ठहराया था और उसे मौत की सजा सुनाई थी, जिसके बाद उसी वर्ष सितंबर में कर्नाटक उच्च न्यायालय ने दोषसिद्धि और मौत की सजा की पुष्टि की।
उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ उसकी अपील उच्चतम न्यायालय की दो न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष आई, जिसने सर्वसम्मति से उसकी दोषसिद्धि को बरकरार रखा, लेकिन सजा पर मतभेद व्यक्त किया।
फैसले में एक न्यायाधीश ने कहा कि उसे जीवन के अंत तक जेल से रिहा नहीं किया जाना चाहिए, वहीं दूसरे न्यायाधीश ने कहा कि वह मृत्यु के अलावा किसी अन्य सजा का हकदार नहीं है।
इसके बाद यह मामला तीन न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष आया, जिसने 22 जुलाई 2008 को अपना फैसला सुनाया।
पीठ ने कहा, ‘‘हम तदनुसार अपीलकर्ता को निचली अदालत द्वारा दी गई मौत की सजा और उच्च न्यायालय द्वारा पुष्टि की गई सजा को आजीवन कारावास से प्रतिस्थापित करते हैं तथा निर्देश देते हैं कि उसे उसके शेष जीवन तक जेल से रिहा नहीं किया जाएगा।’’
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