देश की खबरें | शंकराचार्य ने की बांग्लादेशी हिंदुओं से मुलाकात, सरकार के समक्ष उनकी चिंताओं को उठाने का आश्वासन
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वाराणसी, 25 दिसंबर शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने बुधवार को यहां बांग्लादेशी हिंदुओं के एक समूह से मुलाकात की और सरकार के समक्ष उनकी चिंताओं को उठाने का आश्वासन दिया।
बांग्लादेशी हिंदुओं के 12 सदस्यीय समूह ने शंकराचार्य से मुलाकात की और अपने धर्म की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उनसे हस्तक्षेप की मांग की।
बांग्लादेश में इस साल की शुरुआत में व्यापक विरोध प्रदर्शनों के बाद सरकार बदलने के बाद से बड़े पैमाने पर हिंसा हुई है, इसमें अल्पसंख्यक हिंदुओं के खिलाफ हिंसक घटनाएं भी शामिल हैं।
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने बांग्लादेशी हिंदुओं के समूह को आश्वासन दिया कि वे सरकार को पत्र लिखकर इस मामले पर कार्रवाई करने का आग्रह करेंगे।
शंकराचार्य ने कहा, ''बांग्लादेश में हिंदुओं को केवल उनकी आस्था के कारण सताया जा रहा है। इन परिवारों ने मुझसे अपनी शिकायतें साझा की हैं और मैं उनकी चिंताओं से भारत सरकार को अवगत कराऊंगा।''
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत की हालिया टिप्पणियों के बारे में पत्रकारों द्वारा पूछे जाने पर शंकराचार्य ने उन पर राजनीति से प्रेरित बयान देने का आरोप लगाया।
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा, ''भागवत ने दावा किया है कि कुछ लोग नेता बनने के लिए मंदिर-मस्जिद के मुद्दे उठाते हैं, लेकिन मैं स्पष्ट करना चाहता हूं कि आम हिंदू नेता बनने की आकांक्षा नहीं रखते। भागवत आम हिंदुओं की दुर्दशा को सही मायने में नहीं समझते।''
उन्होंने कहा, ''जब भागवत और उनके सहयोगी सत्ता में नहीं थे, तो वे राम मंदिर बनाने के लिए उत्सुक थे। अब जब वे सत्ता में हैं, तो ऐसे बयान अनावश्यक हैं।''
शंकराचार्य ने कहा, ''मोहन भागवत आम हिंदू का दर्द नहीं समझते।''
हाल ही में उत्तर प्रदेश में संभल की शाही जामा मस्जिद से लेकर बदायूं की जामा मस्जिद शम्सी और जौनपुर की अटाला मस्जिद तक मंदिर-मस्जिद विवादों से संबंधित कई मुकदमे विभिन्न अदालतों में दायर किए गए हैं, जहां हिंदू याचिकाकर्ताओं ने यह दावा करते हुए प्रार्थना करने की अनुमति मांगी है कि जिन जगहों पर अब मस्जिदें हैं वहां पहले कभी प्राचीन मंदिर हुआ करते थे।
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने गत 19 दिसंबर को कई मंदिर-मस्जिद विवादों के फिर से उठने पर चिंता व्यक्त की थी और कहा था कि अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के बाद कुछ लोग यह मानने लगे हैं कि वे इस तरह के मुद्दों को उठाकर 'हिंदुओं के नेता' बन सकते हैं।
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