देश की खबरें | आरक्षण लाभ का मामला: न्यायालय ने केंद्र को रुख स्पष्ट करने के लिए तीन हफ्ते का समय दिया
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नयी दिल्ली, 30 अगस्त उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को केंद्र सरकार को उन याचिकाओं पर रुख स्पष्ट करने के लिए तीन हफ्ते का समय दिया, जिसमें ईसाई और इस्लाम धर्म अपना चुके दलितों को अनुसूचित जाति आरक्षण का लाभ देने का मुद्दा उठाने वाली याचिकाएं शामिल हैं।
शीर्ष अदालत में दायर एक जनहित याचिका (पीआईएल) में धर्मांतरण करने वाले दलितों के लिए उसी तरह आरक्षण की मांग की गई है, जैसे हिंदू, बौद्ध और सिख धर्म के अनुसूचित जातियों को आरक्षण मिलता है।
एक अन्य याचिका में सरकार को यह निर्देश देने की मांग की गई है कि अनुसूचित जाति मूल के ईसाइयों को वही आरक्षण लाभ दिया जाए, जो अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं।
न्यायमूर्ति एस. के. कौल की अध्यक्षता वाली पीठ को सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि इस मुद्दे के प्रभाव हैं और वह सरकार के मौजूदा रुख को रिकॉर्ड में रखेंगे।
न्यायमूर्ति ए. एस. ओका और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की सदस्यता वाली पीठ ने कहा कि सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि वह इस मुद्दे पर वर्तमान स्थिति को रिकॉर्ड में रखना चाहेंगे, इसलिए उनके अनुरोध पर तीन हफ्ते का समय दिया जाता है।
पीठ ने कहा कि इसमें शामिल कानूनी मुद्दे को सुलझाना होगा। पीठ ने मौखिक रूप से कहा, ‘‘ये सभी मामले जो इस ‘सामाजिक प्रभाव’ के कारण लंबित हैं ... और जब समय आएगा, तो हमें फैसला करना होगा।’’
एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि सरकार ने पहले न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्रा आयोग का गठन किया था, जिसने इस मुद्दे पर बहुत विस्तृत रिपोर्ट दी थी। इस पर सॉलिसिटर जनरल ने कहा, ‘‘उन्होंने आंशिक रूप से यह सही कहा कि एक आयोग का गठन किया गया था, न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्रा आयोग। लेकिन संभवतः वह इस बात से चूक गए कि उस समय की सरकार ने आयोग की सिफारिशों को इस आधार पर स्वीकार नहीं किया कि उन्होंने कई तथ्यों पर विचार नहीं किया था।’’
पीठ इस मामले पर अब 11 अक्टूबर को सुनवाई करेगी। शीर्ष अदालत के समक्ष लंबित याचिकाओं में से एक में कहा गया कि हिंदू, सिख और बौद्ध धर्म से अलग धर्म को मानने वाले अनुसूचित जाति के व्यक्ति को संवैधानिक (अनुसूचित जाति) आदेश, 1950 के पैराग्राफ तीन के लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता है।
इसमें कहा गया कि धर्म में परिवर्तन से सामाजिक बहिष्कार नहीं बदलता है और जाति पदानुक्रम ईसाई धर्म के भीतर भी कायम है, भले ही धर्म में इसकी मनाही है।
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