मुंबई, 19 दिसंबर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की एक रिपोर्ट में राज्यों को चेतावनी देते हुए कहा गया है कि कृषि ऋण माफी, मुफ्त बिजली एवं परिवहन जैसी छूट देने से सामाजिक और आर्थिक बुनियादी ढांचे के लिए उनके महत्वपूर्ण संसाधन खत्म हो सकते हैं।
हालांकि, आरबीआई की ‘राज्य वित्त: 2024-25 के बजट का एक अध्ययन’ शीर्षक वाली रिपोर्ट कहती है कि राज्य सरकारों ने लगातार तीन वर्षों (2021-22 से 2023-24) के लिए अपने सकल राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के तीन प्रतिशत के भीतर रखकर राजकोषीय मजबूती की दिशा में सराहनीय प्रगति की है।
राज्यों ने 2022-23 और 2023-24 में राजस्व घाटे को जीडीपी के 0.2 प्रतिशत पर सीमित रखा है।
बृहस्पतिवार को जारी रिपोर्ट के मुताबिक, ‘‘राजकोषीय घाटे में कमी से राज्यों को अपना पूंजीगत खर्च बढ़ाने और व्यय की गुणवत्ता में सुधार करने की गुंजाइश पैदा हुई है।’’
रिपोर्ट कहती है कि कई राज्यों ने चालू वित्त वर्ष के अपने बजट में कृषि ऋण माफी, कृषि और घरों को मुफ्त बिजली, मुफ्त परिवहन, बेरोजगार युवाओं को भत्ते और महिलाओं को नकद सहायता देने की घोषणाएं की हैं। इस तरह के खर्चों से उनके पास उपलब्ध संसाधन खत्म हो सकते हैं और महत्वपूर्ण सामाजिक और आर्थिक बुनियादी ढांचे के निर्माण की उनकी क्षमता बाधित हो सकती है।
आरबीआई रिपोर्ट के मुताबिक, सब्सिडी पर खर्च में तेज वृद्धि से शुरुआती तनाव का एक क्षेत्र पैदा हुआ है जो कृषि ऋण माफी, मुफ्त/सब्सिडी वाली सेवाओं (जैसे कृषि और घरों को बिजली, परिवहन, गैस सिलेंडर) और किसानों, युवाओं एवं महिलाओं को नकद हस्तांतरण की देन है।
रिपोर्ट के मुताबिक, राज्यों को अपना सब्सिडी व्यय नियंत्रित करने और तर्कसंगत बनाने की जरूरत है, ताकि ऐसे खर्चों से अधिक उत्पादक व्यय बाधित न हो।
आरबीआई के अध्ययन के अनुसार, उच्च ऋण-जीडीपी अनुपात, बकाया गारंटी और बढ़ते सब्सिडी बोझ के कारण राज्यों को विकास और पूंजीगत खर्च पर अधिक जोर देते हुए राजकोषीय मजबूती की राह पर बने रहने की जरूरत है। इसके अलावा व्यय की गुणवत्ता में सुधार भी जरूरी है।
हालांकि, राज्यों की कुल बकाया देनदारियां मार्च, 2024 के अंत में 28.5 प्रतिशत पर आ गई हैं, जबकि मार्च, 2021 के अंत में यह जीडीपी का 31 प्रतिशत थीं। लेकिन अब भी यह महामारी-पूर्व के स्तर से ऊपर बनी हुई हैं।
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