देश की खबरें | प्रशांत भूषण पहुंचे न्यायालय, पुनर्विचार याचिका पर विचार होने तक सजा पर सुनवाई टालने का अनुरोध

Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on India at LatestLY हिन्दी. शीर्ष अदालत ने प्रशांत भूषण को न्यायपालिका के बारे में अपमानजनक ट्विट के लिये उन्हें आपराधिक अवमानना का दोषी ठहराया था और कहा था कि इन्हें जनहित में न्यायपालिका के कामकाज की निष्पक्ष आलोचना नहीं कहा जा सकता है।

एनडीआरएफ/प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credits: ANI)

शीर्ष अदालत ने प्रशांत भूषण को न्यायपालिका के बारे में अपमानजनक ट्विट के लिये उन्हें आपराधिक अवमानना का दोषी ठहराया था और कहा था कि इन्हें जनहित में न्यायपालिका के कामकाज की निष्पक्ष आलोचना नहीं कहा जा सकता है।

न्यायालय ने कहा था कि वह 20 अगस्त को इस मामले में भूषण को दी जाने वाली सजा पर दलीलें सुनेगा।

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प्रशांत भूषण ने अपने आवेदन में कहा है कि वह 14 अगस्त के आदेश का अध्ययन करने और इस पर उचित कानूनी सलाह के बाद पुनर्विचार याचिका दायर करना चाहते हैं। आवेदन में कहा गया है कि इस आदेश के परिणाम सांविधानिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है, विशेषकर बोलने की आजादी के अधिकार के मामले में।

स्वत: संज्ञान लिये गये इस मामले में दाखिल आवेदन में कहा गया है, ‘‘आवेदक फैसले की तारीख से 30 दिन की सीमा के भीतर इसे दाखिल करेगा क्योंकि वह उच्चतम न्यायालय की नियमावली, 2013 के आदेश 43 के तहत इसका हकदार है। अत: यह अनुरोध किया जाता है कि इसके मद्देनजर सजा के लिये 20 अगस्त को होने वाली सुनवाई इस न्यायालय द्वारा पुनर्विचार याचिका पर विचार किये जाने तक स्थगित की जाये।’’

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भूषण ने कहा है कि पुनर्विचार याचिका पर विचार होने तक इसकी सुनवाई स्थगित करना संविधान के अनुच्छेद 21 में नागरिक को प्राप्त स्वतंत्रता के अधिकार के संबंध में सार्वजनिक नीति के मद्देनजर न्याय के हित में होगा ।

आवेदन में यह भी कहा गया है कि अगर न्यायालय सजा के मुद्दे पर सुनवाई करता है और कोई सजा देता है तो उस पर पुनर्विचार याचिका के तहत राहत का विकल्प खत्म होने तक के लिये रोक लगायी जाये।

अधिवक्ता कामिनी जायसवाल के माध्यम से दायर इस आवेदन में कहा गया है कि आपराधिक अवमानना की कार्यवाही में शीर्ष अदालत सुनवाई अदालत और अंतिम अदालत की तरह काम करती है।

आवेदन मे कहा गया है, ‘‘ अदालत की अवमानना कानून की धारा 19 (1) उच्च न्यायालय द्वारा अवमानना के दोषी व्यक्ति को अपील का कानूनी अधिकार प्रदान करती है। यह हकीकत है कि उच्चतम न्यायालय के आदेश के खिलाफ कोई अपील नहीं हो सकती, इसलिए अधिक सावधानी बरतना जरूरी है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इस मामले में न्याय किया ही नहीं गया बल्कि यह किया गया नजर भी आये।’’

भूषण ने कहा है कि यह संविधान के अनुच्छेद 21 में प्रदत्त मौलिक अधिकार के अनुरूप होगा। अन्यथा घोर अन्याय हो जायेगा क्योंकि इसके बाद दोषी अवमाननाकर्ता की स्वतंत्रता खतरे में डालने से पहले स्वत: शुरू की गयी आपराधिक अवमानना की कार्यवाही से निकाले गये निष्कर्ष को परखने का मौका नहीं होगा।

अनूप

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