देश की खबरें | जम्मू कश्मीर में निर्वाचन क्षेत्रों के पुनर्निर्धारण के लिए गठित परिसीमन आयोग के खिलाफ याचिका खारिज

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नयी दिल्ली, 13 फरवरी उच्चतम न्यायालय ने केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर में विधानसभा और लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों के पुनर्निर्धारण के लिए परिसीमन आयोग के गठन के सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका सोमवार को खारिज कर दी।

न्यायमूर्ति एस के कौल और न्यायमूर्ति ए एस ओका की एक पीठ ने कश्मीर के दो निवासियों द्वारा दायर याचिका पर फैसला सुनाया। न्यायमूर्ति ओका ने फैसला सुनाते हुए कहा कि इस फैसले में किसी भी चीज को संविधान के अनुच्छेद 370 के खंड एक और तीन के तहत शक्ति के प्रयोग का अनुमोदन नहीं माना जाएगा।

पीठ ने कहा कि अनुच्छेद 370 से संबंधित शक्ति के प्रयोग की वैधता का मुद्दा शीर्ष अदालत के समक्ष लंबित याचिकाओं का विषय है।

पांच अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को निरस्त करने के केंद्र के फैसले की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर शीर्ष अदालत विचार कर रही है।

अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों और जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 के प्रावधानों को निरस्त करने के केंद्र के फैसले को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत में कई याचिकाएं दायर की गई हैं, जिसने तत्कालीन जम्मू कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों- जम्मू कश्मीर और लद्दाख में विभाजित कर दिया था।

केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को निरस्त करके जम्मू कश्मीर के विशेष दर्जे को रद्द कर दिया था।

शीर्ष अदालत ने परिसीमन आयोग गठित करने के सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर पिछले साल एक दिसंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

पिछले साल एक दिसंबर को सुनवाई के दौरान केंद्र ने शीर्ष अदालत को बताया था कि जम्मू कश्मीर में विधानसभा और लोकसभा क्षेत्रों के पुनर्निर्धारण के लिए गठित परिसीमन आयोग को ऐसा करने का अधिकार है।

केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने परिसीमन आयोग के गठन के सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करने का अनुराध करते हुए शीर्ष अदालत से कहा था कि जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 केंद्र सरकार को परिसीमन आयोग की स्थापना किए जाने से रोकता नहीं है।

केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्रालय (विधायी विभाग) ने छह मार्च, 2020 को परिसीमन अधिनियम, 2002 की धारा तीन के तहत अपनी शक्ति का इस्तेमाल करते हुए एक अधिसूचना जारी की थी, जिसमें उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश (सेवानिवृत्त) रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में एक परिसीमन आयोग का गठन करने की बात की गई थी।

दो याचिकाकर्ताओं हाजी अब्दुल गनी खान और मोहम्मद अयूब मट्टू की तरफ से पेश वकील ने दलील दी कि परिसीमन की कवायद संविधान की भावनाओं के विपरीत की गई थी और इस प्रक्रिया में सीमाओं में परिवर्तन तथा विस्तारित क्षेत्रों को शामिल नहीं किया जाना चाहिए था

याचिका में यह घोषित करने की मांग की गई थी कि जम्मू कश्मीर में सीट की संख्या 107 से बढ़ाकर 114 (पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में 24 सीट सहित) करना संवैधानिक और कानूनी प्रावधानों, विशेष रूप से जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 की धारा 63 के तहत अधिकारातीत है।

याचिका में कहा गया था कि 2001 की जनगणना के बाद प्रदत्त शक्तियों का इस्तेमाल करके पूरे देश में चुनाव क्षेत्रों के पुनर्निर्धारण की कवायद की गयी थी और परिसीमन अधिनियम, 2002 की धारा तीन के तहत 12 जुलाई, 2002 को एक परिसीमन आयोग का गठन किया गया था।

याचिका में कहा गया था कि आयोग ने पांच जुलाई, 2004 के पत्र के जरिए विधानसभा और संसदीय क्षेत्रों के परिसीमन के लिए संवैधानिक और कानूनी प्रावधानों के साथ दिशा-निर्देश और कार्यप्रणाली जारी की थी।

याचिका में कहा गया था, ‘‘यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और पांडिचेरी के संघ शासित प्रदेशों सहित सभी राज्यों की विधानसभाओं में मौजूदा सीटों की कुल संख्या, जैसा कि 1971 की जनगणना के आधार पर तय की गई है, वर्ष 2026 के बाद की जाने वाली पहली जनगणना तक अपरिवर्तित रहेगी।’’

इसने 6 मार्च, 2020 की उस अधिसूचना को असंवैधानिक घोषित करने का अनुरोध किया था, जिसमें केंद्र द्वारा जम्मू कश्मीर और असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और नगालैंड राज्यों में परिसीमन करने के लिए परिसीमन आयोग का गठन किया गया था।

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