नयी दिल्ली, छह जुलाई दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को स्पष्ट किया कि 1998 में जिम्बाब्वे से भारत को बतौर उपहार में मिला एक अफ्रीकी नर हाथी वापस नहीं भेजा जाएगा और यहां उसकी उचित देखभाल की जाएगी।
इसके साथ ही अदालत ने केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण को एक मादा दक्षिण अफ्रीकी हाथी आयात करने की संभावना की तलाश करने को कहा।
मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण (सीजेडए) तथा भारतीय पशु कल्याण बोर्ड (एडब्ल्यूबीआई) को दिल्ली चिड़ियाघर में रखे गए हाथी के संबंध में संयुक्त निरीक्षण करने का निर्देश दिया। अदालत ने जानवर और जहां उसे रखा गया है, के बारे में विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने का भी निर्देश दिया।
अदालत अफ्रीकी हाथी शंकर की रिहाई और पुनर्वास के अनुरोध वाली एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी। जिम्बाब्वे सरकार ने भारत को शंकर हाथी उपहार में दिया था और उसे यहां राष्ट्रीय प्राणी उद्यान में जंजीर से बांधकर रखा गया है।
पीठ ने कहा कि वह स्पष्ट कर रही है कि हाथी को वापस भेजने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
मुख्य न्यायाधीश ने कहा, "हम इसकी अनुमति नहीं देंगे। हम इसे भारत में रखेंगे और यहीं उसकी देखभाल करेंगे। वह हमारा है। हम उसकी उचित देखभाल करेंगे, चिंता नहीं करें।"
अदालत ने सीजेडए और एडब्ल्यूबीआई से कहा कि वे हाथी को किसी अभयारण्य या राष्ट्रीय उद्यान में रखे जाने की संभावना का हलफनामे में उल्लेख करें।
इस मामले में अगली सुनवाई 31 अगस्त को होगी।
सीजेडए के वकील ने अदालत में कहा कि हाथी पिछले 24 वर्षों से भारत में है और उसे 1998 में यहां लाया गया था।
अदालत ने कहा, ‘‘प्रतिवादी सीजेडए के वकील उसी उम्र की एक मादा दक्षिण अफ्रीकी हाथी आयात किए जाने की संभावना तलाशेंगे।"
‘यूथ फॉर एनिमल्स’ की संस्थापक निकिता धवन (16) द्वारा दायर याचिका में आरोप लगाया गया है कि शंकर नाम के अफ्रीकी हाथी के साथ चिड़ियाघर में कर्मचारियों द्वारा क्रूरतापूर्ण व्यवहार किया जा रहा है और उसकी मौजूदा स्थिति अवैध कारावास से कम नहीं है।
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