देश की खबरें | लोकतांत्रिक अधिकार से इनकार के कारण जम्मू कश्मीर के लोग प्रदर्शन करने को मजबूर होंगे: उमर
Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on India at LatestLY हिन्दी. नेशनल कॉन्फ्रेंस (नेकां) के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने सोमवार को कहा कि निर्वाचन आयोग द्वारा जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान नहीं किए जाने से लोगों को चुनी हुई सरकार का अपना अधिकार हासिल करने के लिए सड़कों पर उतरने को मजबूर होना पड़ सकता है।
श्रीनगर, नौ अक्टूबर नेशनल कॉन्फ्रेंस (नेकां) के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने सोमवार को कहा कि निर्वाचन आयोग द्वारा जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान नहीं किए जाने से लोगों को चुनी हुई सरकार का अपना अधिकार हासिल करने के लिए सड़कों पर उतरने को मजबूर होना पड़ सकता है।
अब्दुल्ला ने यहां पत्रकारों से कहा, “ऐसा लगता है जैसे हमें ऐसी स्थिति में धकेला जा रहा है जहां हमें अपने लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए भी प्रदर्शन करना पड़े।”
पूर्व मुख्यमंत्री इस सवाल का जवाब दे रहे थे कि क्या जम्मू कश्मीर में राजनीति उस स्तर पर आ गई है जहां लोगों को विधानसभा चुनावों के लिए सड़कों पर उतरना पड़े।
उन्होंने कहा, “मुख्य निर्वाचन आयुक्त ने आज संवाददाता सम्मेलन में कहा कि वह जम्मू-कश्मीर में चुनाव कराने पर निर्णय लेने से पहले सभी कारकों पर विचार करेंगे। इससे पहले उन्होंने कहा था कि जम्मू-कश्मीर में एक खालीपन है जिसे भरने की जरूरत है।”
अब्दुल्ला ने पूछा, ‘‘ हम जानना चाहते हैं कि ये कारक क्या हैं? क्या सरकार ईवीएम उपलब्ध नहीं करा रही है? क्या सरकार सुरक्षा नहीं दे रही है? क्या हालात 1996 से भी बदतर हैं कि चुनाव नहीं हो सकते? क्या यह 2014 की बाढ़ के बाद के हालात से भी बदतर है?”
उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल ने उच्चतम न्यायालय में कहा था कि सरकार चुनाव के लिए तैयार है लेकिन इस पर फैसला निर्वाचन आयोग को लेना है।
नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता ने कहा, “या तो उन्होंने उच्चतम न्यायालय में झूठ बोला है या वे निर्वाचन आयोग के पीछे छुपे हुए हैं... (देरी के लिए) एकमात्र कारक जो मैं देख सकता हूं, वह है भाजपा का डर। अगर कोई अन्य कारक है तो कृपया हमें बताएं। पहले भाजपा राजभवन के पीछे छुपी हुई थी। अब वे निर्वाचन आयोग के पीछे छुप रहे हैं।”
अब्दुल्ला ने कहा कि लद्दाख स्वायत्त पर्वत विकास परिषद (एलएएचडीसी) करगिल चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की "जबरदस्त" हार की वजह से जम्मू-कश्मीर में विधानसभा, पंचायत तथा शहरी स्थानीय निकाय चुनाव कराने में और देरी हो सकती है।
उन्होंने कहा, “मैंने हमेशा कहा है कि हम चुनाव के लिए तैयार हैं लेकिन केंद्र और भाजपा तैयार नहीं हैं क्योंकि वे डरे हुए हैं। आज इसका प्रमाण है....।”
पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा, “हालात ये हो गए हैं कि अगर उनका बस चले तो वे संसदीय चुनाव भी नहीं कराएं। इस (एलएएचडीसी के) नतीजे के बाद हम कह सकते हैं कि हमारा चुनाव हमसे और भी दूर हो गया है।”
नेकां नेता ने कहा कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त को जम्मू-कश्मीर के लोगों को बताना चाहिए कि उन्हें देश के अन्य हिस्सों के लोगों की तरह अपनी सरकार चुनने का अधिकार है या नहीं?
उन्होंने कहा, “उन्हें मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, मिजोरम और राजस्थान के लोगों की तरह अधिकार नहीं है।"
अब्दुल्ला ने कहा कि 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और जम्मू-कश्मीर को दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित करने के बाद, सरकार ने दावा किया था कि यह लद्दाख के लोगों की लंबे समय से लंबित मांग थी जो पूरी हो गई है।
उन्होंने कहा, “लेकिन चुनाव नतीजे इस बात का सबूत हैं कि यह (फैसला) लद्दाख के लोगों को पसंद नहीं आया। इस अलगाव से वे भी उतने ही आहत थे जितने कश्मीर और जम्मू के लोग, जो अब इसका विरोध कर रहे हैं।”
अब्दुल्ला ने कहा, “भाजपा कहेगी कि करगिल के मुस्लिम बहुल क्षेत्र होने की वजह से यह (एलएएचडीसी का) नतीजा आया है। फिर सवाल उठता है: क्या जम्मू-कश्मीर का विभाजन धर्म के आधार पर हुआ था?"
(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)