देश की खबरें | संसद नहीं चल रही क्योंकि सरकार पेगासस जासूसी मामले पर खुली बहस की मांग नहीं मान रही : कांग्रेस
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नयी दिल्ली, 26 जुलाई कांग्रेस ने सोमवार को संसद के दोनों सदनों की कार्यवाही उसके प्रदर्शन की वजह से बाधित होने के बाद आरोप लगाया कि संसद काम नहीं कर रही क्योंकि सरकार पेगासस जासूसी मामले पर बहस कराने की विपक्ष की ‘संयुक्त’ मांग को स्वीकार नहीं कर रही है।
कांग्रेस ने यह भी कहा कि विपक्ष उच्चतम न्यायालय की निगरानी में पूरे मामले की जांच कराना चाहता है। राज्य सभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने सुबह में अपने चैंबर में विपक्षी पार्टियों के नेताओं से मुलाकात की और मामले पर चर्चा के लिए नियम-267 के तहत नोटिस देने का फैसला किया।
बता दें कि संसद के दोनों सदनों में पेगासस के मुद्दे को लेकर विपक्ष के हंगामे की वजह से सोमवार को कोई कामकाज नहीं हो सका।
राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू ने विपक्षी नेताओं खड़गे और के सी वेणुगोपाल (दोनों कांग्रेस के), तिरुचि सिवा (द्रमुक), तृणमूल कांग्रेस के सुखेंदु शेखर रे, भाकपा के इलामाराम करीन और अन्य द्वारा नियम-267 के तहत दिए नोटिस को अस्वीकार कर दिया और कहा कि मामले को सामान्य अवधि में उठाया जा सकता है। नियम-267 में सामान्य कामकाज को रोक कर मुद्दे पर चर्चा कराने का प्रावधान है।
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा, ‘‘पूरा विपक्ष एकजुट है। प्रधानमंत्री या गृहमंत्री की उपस्थिति में पेगासस जासूसी मामले पर चर्चा कराई जाए। उच्चतम न्यायालय की निगरानी में पूरे मामले की जांच की घोषणा की जाए।’’ उन्होंने ट्वीट किया, ‘‘ ससंद काम नहीं कर रही क्योंकि सरकार इन जायज मांगों को नहीं मान रही है।’’
तृणमूल कांग्रेस के नेता डेरेक ओ ब्रायन ने रमेश के ट्वीट पर जवाब देते हुए कहा, ‘‘हमें इसकी संसद में जरूरत है। पीयूष गोयल के कार्यालय में ग्रीन टी की जरूरत नहीं है। धन्यवाद। लेकिन धन्यवाद नहीं।’’ ब्रायन दरअसल राज्यसभा में सदन के नेता पीयूष गोयल की पेशकश का संदर्भ दे रहे थे जिन्होंने अपने कार्यालय में मामले को सुलझाने और संसद को सुचारु रूप से चलने देने का रास्ता तलाशने के लिए विपक्षी नेताओं को चाय पर बुलाया था।
खड़गे ने इससे पहले सदन में कामकाज रोककर प्रधानमंत्री या गृहमंत्री की उपस्थिति में कथित पेगासस जासूसी और निगरानी कांड पर चर्चा के लिए नोटिस दिया था। उन्होंने कहा कि यह मुद्दा ‘‘ हमारे लोकतंत्र और संवैधानिक अधिकारों को कमतर करता है’’ और इस मामले की तुरंत उच्चतम न्यायालय की निगरानी में जांच होनी चाहिए।
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