रूसी गैस आयात कर पश्चिमी देशों के सब्र का इम्तहान ले रहा पाकिस्तान
पाकिस्तान अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए अलग-अलग देशों से समझौता कर रहा है.
पाकिस्तान अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए अलग-अलग देशों से समझौता कर रहा है. हाल ही में उसने रूसी गैस और तेल का आयात करना शुरू कर दिया है.इस समझौतेके बाद ऐसे लोग उत्साहित हैं जो दावा करते हैं कि आयातित वस्तुएं सस्ती हैं. हालांकि, विश्लेषकों का मानना है कि ऐसी आपूर्ति तकनीकी, आर्थिक और राजनीतिक चुनौतियों से भरी हुई है. पाकिस्तान में मौजूद रूसी दूतावास ने पिछले महीने सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म एक्स पर पोस्ट किया था कि पाकिस्तान को रूस से तरल पेट्रोलियम गैस (एलपीजी) की पहली खेप प्राप्त हुई. पोस्ट में पुष्टि की गई कि रूस ने ईरान के सरख्स स्पेशल इकोनॉमिक जोन के जरिए पाकिस्तान को एक लाख मीट्रिक टन एलपीजी की आपूर्ति की.
पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने रूसी ऊर्जा मिलने पर कहा था कि यह संकटग्रस्त देश के लिए ‘परिवर्तनकारी दिन' है. उन्होंने एक्स पर लिखा, "मैंने अपने मुल्क से किया एक और वादा पूरा कर लिया है. यह पाकिस्तान के लिए पहला रूसी तेल कार्गो है. पाकिस्तान और रूस के बीच एक नए रिश्ते की शुरुआत है.”
हालांकि, कई लोगों का मानना है कि इस तरह के आयात से पाकिस्तान के लिए राजनीतिक समस्याएं पैदा हो सकती हैं. साथ ही, यूक्रेन पर रूसी हमले के इस दौर में हुआ समझौता नकदी की कमी से जूझ रहे पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था के लिए कई चुनौतियां पैदा कर सकता है.
फरवरी 2022 में यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद से पश्चिमी देश रूसी ऊर्जा से दूरी बना रहे हैं. साथ ही, जो देश इस दौरान रूस से समझौता कर आर्थिक फायदा उठा रहे हैं उनके प्रति उदासीन रवैया अपना रहे हैं.
तकनीकी चुनौतियां
पाकिस्तान अरब देशों से तेल और गैस का आयात करता रहा है और खाड़ी क्षेत्र से इस आयात को ध्यान में रखते हुए तकनीकी बुनियादी ढांचे का भी निर्माण किया गया था. हालांकि, कुछ अनुमानों में बताया गया है कि रूसी कच्चा तेल 60 डॉलर प्रति बैरल है और खाड़ी से खरीदा गया तेल 84 डॉलर प्रति बैरल है.
इस्लामाबाद में रहने वाले विश्लेषक राणा अबरार खालिद का मानना है कि पाकिस्तान के पास रूसी कच्चे तेल को रिफाइन करने के लिए पर्याप्त तकनीकी क्षमता नहीं है, क्योंकि यह काफी ज्यादा भारी होता है और इसे पाकिस्तानी रिफाइनरी में इस्तेमाल होने वाले मौजूदा ट्यूब के जरिए आसानी से रिफाइन नहीं किया जा सकता. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "पाकिस्तान की रिफाइनरी खाड़ी देशों से आयात किए जाने वाले हल्के कच्चे तेल को रिफाइन कर सकती हैं. पाकिस्तान ने खाड़ी के हल्के तेल और रूस के भारी तेल को एक साथ मिलाने की कोशिश की, लेकिन यह प्रयोग पूरी तरह सफल नहीं हुआ.”
खालिद का मानना है कि पाकिस्तान को रूसी तेल रिफाइन करने के लिए नई रिफाइनरी स्थापित करनी होगी या मौजूदा रिफाइनरी में इस तरह बदलाव करना होगा कि वहां रूसी तेल को रिफाइन किया जा सके. हालांकि, इसके लिए काफी धन की जरूरत होगी.सरकारी विभाग से जुड़े एक विशेषज्ञ ने नाम न छापने की शर्त पर खालिद की बातों पर सहमति जताई. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया कि पाकिस्तान की रिफाइनरी के पास तेल को रिफाइन करने की क्षमता सीमित है, जबकि भारत की क्षमता काफी अधिक है.
अधिकारी ने आगे कहा, "इसके अलावा, रूसी तेल से 45 फीसदी तक फर्नेस ऑयल (काला तेल) का उत्पादन होता है, जबकि पाकिस्तान को बिजली बनाने के लिए 15 फीसदी फर्नेस ऑयल की जरूरत होती है. ऐसे में इस अतिरिक्त फर्नेस ऑयल को औने-पौने दाम पर बेचना पड़ता है और इनका खरीदार ढूंढ़ना भी मुश्किल होता है.”
पाकिस्तान में छपने वाले अंग्रेजी अखबार द एक्सप्रेस ट्रिब्यून की एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में पांच प्रमुख तेल रिफाइनरी हैं, जो हर दिन 4,17,000 बैरल से अधिक तेल को रिफाइन कर सकती हैं. फिलहाल, ये रिफाइनरी अपनी आधी क्षमता पर ही काम कर रही हैं.
यूएस इंटरनेशनल ट्रेड एडमिनिस्ट्रेशन (आईटीए) की 2021 की रिपोर्ट में कहा गया है, "पाकिस्तान की कुल तेल शोधन क्षमता लगभग चार लाख बैरल प्रति दिन या लगभग 19 मिलियन टन प्रति वर्ष है. हालांकि, आपूर्ति 11.6 मिलियन टन प्रति वर्ष है. वहीं, मौजूदा मांग प्रति वर्ष 20 मिलियन टन है.”
पाकिस्तान में बढ़ती ऊर्जा जरूरतें
पाकिस्तान की ऊर्जा ज़रूरतेंबढ़ रही हैं. आईटीए की रिपोर्ट के मुताबिक, 2019 में देश ने 4.3 मिलियन मीट्रिक टन कच्चे तेल का उत्पादन किया, जो देश की कुल पेट्रोलियम जरूरतों का महज 20 फीसदी है. बाकी 80 फीसदी मांग की पूर्ति आयात किए गए कच्चे तेल और रिफाइन पेट्रोलियम प्रॉडक्ट से की गई. इसके लिए, 15 से 16 अरब डॉलर सालाना खर्च किया गया.
रिपोर्ट में बताया गया कि देश की कुल ऊर्जा आपूर्ति में प्राकृतिक गैस की हिस्सेदारी 38 फीसदी है. कुल घरेलू गैस उत्पादन लगभग 4 बिलियन क्यूबिक फीट प्रति दिन (बीसीएफडी) हो गया है, जबकि मांग 6 से 8 बीसीएफडी है.
बर्शेन एलपीजी (पाकिस्तान) लिमिटेड के मुताबिक, देश में एलपीजी की कुल सालाना मांग करीब 14 लाख टन है, जिसमें से लगभग 8,76,000 मीट्रिक टन का उत्पादन स्थानीय स्तर पर किया जाता है. बाकी पड़ोसी देशों से आयात किया जाता है. देश में एलपीजी की मांग लगातार बढ़ रही है और इसका उत्पादन स्थिर है. इसलिए, आयात में भी वृद्धि होगी.
प्रतिबंधों की वजह से चुनौतियां
यूक्रेन पर हमले के बाद से पश्चिमी देशों ने रूस पर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए हैं. इस वजह से पाकिस्तान जैसे देशों के लिए रूस के साथ कारोबार करना मुश्किल हो गया है. खालिद कहते हैं, "प्रतिबंध की वजह से पाकिस्तानी कंपनियां या सरकार, इंटरनेशनल पेमेंट सिस्टम स्विफ्ट के जरिए पेमेंट नहीं कर सकती है. हालांकि, रूस के पास पेमेंट का अपना तरीका है, लेकिन पाकिस्तान उस तरीके से पेमेंट नहीं कर सकता है.”
यह बात भी कही जा रही है कि पाकिस्तान को रूसी तेल और गैस की सही कीमत अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) को बतानी होगी. हालांकि, पाकिस्तान की वित्त मंत्री डॉ. शमशाद अख्तर इस बात को खारिज करती हैं. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया कि आईएमएफ के साथ हमारे समझौते में ऐसी कोई शर्त नहीं है. देश के पास पेमेंट करने के लिए पर्याप्त धन है. पेमेंट के तरीके पर पूछे गए सवाल के जवाब में उन्होंने रूस का नाम लिए बिना कहा कि तेल और गैस सहित सभी वस्तुओं के आयात के लिए डॉलर में पेमेंट किए जाते हैं.
पश्चिमी देशों का रवैया
यह बात जगजाहिर है कि पाकिस्तान अमेरिका के साथ अपने संबंधों को फिर से मजबूत बना रहा है. पाकिस्तान को हाल ही में आईएमएफ से पैकेज मिला है. यह विश्व बैंक, एशियाई विकास बैंक और अन्य क्षेत्रीय एवं वैश्विक आर्थिक निकायों से कर्ज लेने की कोशिश कर रहा है. पाकिस्तान में कई लोगों का मानना है कि अमेरिका और उसके सहयोगियों के समर्थन के बिना, पाकिस्तान को आर्थिक सहायता मिलना मुश्किल है.
इस्लामाबाद में इंटरनेशनल इस्लामिक यूनिवर्सिटी की विशेषज्ञ डॉ. नूर फातिमा का कहना है कि अमेरिका की नजर इन तेल और गैस सौदों पर है. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "अमेरिका ने पाकिस्तान से इन सौदों के बारे में जानकारी मांगी है. उसे डर है कि ऐसे सौदे पाकिस्तान और रूस को करीब ला सकते हैं.” फातिमा ने कहा, "पाकिस्तान और रूस के करीब आने या दोनों के बीच व्यापार बढ़ने से अमेरिका कभी खुश नहीं होगा. हालांकि, हमें अमेरिकी दबाव पर ध्यान देने की जगह राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देनी चाहिए.”
वहीं, इस्लामाबाद के कायदे आजम विश्वविद्यालय के डॉ. जफर नवाज जसपाल को डर है कि अगर पाकिस्तान रूस के करीब जाता है और तेल-गैस खरीदना जारी रखता है, तो अमेरिका अप्रत्यक्ष तरीके से प्रतिबंध लगा सकता है. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया कि अमेरिका अंतरराष्ट्रीय मौद्रिक संस्थानों पर दबाव डालकर पाकिस्तान के लिए आर्थिक परेशानियां पैदा कर सकता है. पश्चिमी देश भी पाकिस्तान को रूसी तेल और गैस खरीदने से रोकने के लिए अलग-अलग रणनीतियां अपना सकते हैं.