देश की खबरें | खारिज करने के अधिकार के बिना नोटा औचित्यहीन : विशेषज्ञ

Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on India at LatestLY हिन्दी. उच्चतम न्यायालय के आदेश पर चुनाव के लिए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) में नोटा का विकल्प शामिल करने के 10 साल से अधिक समय के बाद भी इसका इस्तेमाल करने वालों की संख्या अब तक कम है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह (नोटा) ‘दंतहीन शेर’ की तरह है क्योंकि इसका असर नतीजों पर नहीं पड़ता।

नयी दिल्ली, नौ मार्च उच्चतम न्यायालय के आदेश पर चुनाव के लिए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) में नोटा का विकल्प शामिल करने के 10 साल से अधिक समय के बाद भी इसका इस्तेमाल करने वालों की संख्या अब तक कम है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह (नोटा) ‘दंतहीन शेर’ की तरह है क्योंकि इसका असर नतीजों पर नहीं पड़ता।

उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद नोटा (उपरोक्त में से कोई नहीं) बटन को सितंबर 2013 में ईवीएम में शामिल किया गया था। इसे दलों द्वारा दागी उम्मीदवारों को मैदान में उतारने से हतोत्साहित करने के लिए शामिल किया गया था।

उच्चतम न्यायालय ने निर्वाचन आयोग को मतपत्रों/ईवीएम में आवश्यक प्रावधान करने का निर्देश दिया था ताकि मतदाता मैदान में किसी भी उम्मीदवार को वोट न देने का फैसला कर सकें।

सितंबर 2013 में उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद निर्वाचन आयोग ने अंतिम विकल्प के रूप में ईवीएम पर नोटा बटन जोड़ा। एक मतपत्र इकाई में 16 बटन होते हैं।

शीर्ष अदालत के आदेश से पहले जो लोग किसी भी उम्मीदवार को वोट देने के इच्छुक नहीं होते थे उनके पास फॉर्म 49-ओ भरने का विकल्प था। लेकिन चुनाव संचालन नियम, 1961 के नियम 49-ओ के तहत मतदान केंद्र पर फॉर्म भरने से मतदाता की गोपनीयता भंग होती थी।

पिछले पांच वर्षों में राज्य विधानसभा चुनावों और लोकसभा चुनावों में संयुक्त रूप से नोटा को 1.29 करोड़ से अधिक वोट मिले हैं। इसके बावजूद आम और विधानसभा दोनों चुनावों में आपराधिक रिकॉर्ड वाले उम्मीदवारों की संख्या में वृद्धि हुई है।

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले दशक में उन सांसदों का अनुपात बढ़ा है जिनके खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं।

लोकसभा की 543 सीट के लिए 2009 में हुए चुनाव के आंकड़ों का विश्लेषण करने के बाद एडीआर ने खुलासा किया कि जीत दर्ज करने वाले 543 सांसदों में से 162 (30 प्रतिशत) ने घोषित किया था कि उनके खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज थे जबकि 76 (14 प्रतिशत) के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले दर्ज थे।

एडीआर के मुताबिक 2019 में आपराधिक और गंभीर आपराधिक मामलों वाले सांसदों की हिस्सेदारी बढ़कर क्रमश: 43 प्रतिशत और 29 प्रतिशत हो गई।

एडीआर के प्रमुख मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) अनिल वर्मा ने ‘पीटीआई-’ को बताया, ‘‘जहां तक आपराधिकता का सवाल है तो नोटा से कोई फर्क नहीं पड़ा है, वास्तव में आपराधिक रिकॉर्ड वाले उम्मीदवारों की संख्या में वृद्धि हुई है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘नोटा की अवधारणा यह थी कि दलों पर कुछ दबाव पड़ेगा कि वे दागी उम्मीदवारों को मैदान में न उतारें। लेकिन ऐसा नहीं हुआ है।’’

(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)

Share Now

\