देश की खबरें | अदालतों में आपराधिक मामलों का बोझ घटाने के लिए लीक से हटकर सोचने की जरूरत: शीर्ष अदालत

नयी दिल्ली, पांच अगस्त उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि जेलों में भीड़ कम करने तथा अदालतों में आपराधिक मामलों का बोझ घटाने के लिए कुछ ‘लीक से हटकर’ सोचने की जरूरत है।

शीर्ष अदालत ने कहा कि जब देश अपनी स्वतंत्रता के 75 साल पूरे करने जा रहा है, तब प्रशासन द्वारा कुछ कदम उठाया जाना चाहिए।

शीर्ष अदालत ने कहा कि सरकार इस पहलू पर विचार कर रही है, यह संकेत भेजने के लिए इस साल स्वतंत्रता दिवस से पूर्व कुछ ‘प्रतीकात्मक’ किया जा सकता है।

न्यायमूर्ति एस के कौल एवं न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश की पीठ ने आपराधिक मामलों में अपील के लंबे समय से लंबित रहने से संबंधित मामलों की सुनवाई करते हुए कहा कि अदालतों पर आपराधिक मामलों का बोझ एक महत्वपूर्ण पहलू है।

पीठ ने अतिरिक्त सॉलीसीटर जनरल (एएसजी) के एम नटराज से कहा कि यदि इस संबंध में इस साल कुछ किया जाता है तो उसका ‘बड़ा सकारात्मक’ प्रभाव होगा।

पीठ ने एएसजी से कहा, ‘‘ लीक से हटकर सोचिए। यदि आप कुछ कर सकते हैं तो सरकार को स्वतंत्रता दिवस से पहले कुछ करने के लिए राजी कीजिए, इससे एक संकेत जा सकता है।’’

शीर्ष अदालत ने पिछले हफ्ते दोषियों की अपील लंबित रहने तक उनके जमानत आवेदनों की सुनवाई में काफी देरी पर नाखुशी प्रकट की थी और यह कहते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय की खिंचाई की थी कि उसे ‘लीक से हटकर’ सोचना शुरू कर देना चाहिए तथा त्वरित निस्तारण के लिए अवकाश के दिन भी बैठना चाहिए।

शीर्ष अदालत ने कहा था कि यदि उच्च न्यायालय को उन्हें संभालना ‘मुश्किल’ लग रहा है तो वह ‘अतिरिक्त बोझ उठाने’ एवं आवेदनों को अपने यहां मंगवाने के लिए तैयार है।

शुक्रवार को उच्चतम न्यायालय ने एएसजी से कहा, ‘‘ हम 75 वां स्वतंत्रता दिवस मनाने जा रहे हैं। क्यों राज्य एवं भारत सरकार द्वारा कुछ कदम उठाया नहीं जा सकता है।’’

नटराज ने कहा कि प्राधिकार इसका तौर-तरीका तय कर रहा है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने भी इस मुद्दे पर हाल में बोला था।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 30 जुलाई को कहा था कि भारत जब अपनी स्वतंत्रता के 75 साल पूरे कर रहा है, तब न्याय सुगमता जीवन सुगमता के जितना ही महत्वपूर्ण है।

यहां पहले अखिल भारतीय जिला विधिक सेवा प्रधिकरण की बैठक को संबोधित करते हुए प्रधानंमत्री ने न्यायपालिका से विचाराधीन कैदियों की रिहाई में तेजी लाने की अपील की थी।

पीठ ने शुक्रवार को कहा कि यदि हर आपराधिक मामला शीर्ष अदालत तक ही आना है तो कुछ ‘लीक से हटकर’ सोचने की जरूरत है। उसने कहा कि किसी को 20 या 25 साल सलाखों के पीछे रखने का क्या तुक है।

शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘ समस्या यह है कि हम केवल दंडात्मक हिस्सा ही देखते हैं। सुधारकारी पक्ष, हम देखते ही नहीं हैं।’’ पीठ ने कहा कि हल केवल किसी को लंबे समय तक जेल में रखना नहीं हो सकता है।

शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘चिंताजनक हिस्सा यह है कि यदि अपील मंजूर की जाती है, तो कौन इन सालों को लौटाने जा रहा है।’’

उसने कहा कि जिसने गुनाह किया है, उसे सजा मिलनी चाहिए, लेकिन लंबी मुकदमेबाजी इसका हल नहीं है।

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