मुम्बई, 22 मार्च बंबई उच्च न्यायालय ने मंगलवार को महाराष्ट्र सरकार को वे सारी फाइल एवं आंकड़े पेश करने का निर्देश दिया जिनके आधार पर राज्य कार्यकारी समिति ने कोविड-19 महामारी के मद्देनजर स्थानीय ट्रेनों में बिना टीका वाले व्यक्तियों को सफर नहीं करने देने का निर्णय लिया था।
मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति एम एस कार्णिक की खंडपीठ एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिका में सरकार के इस फैसले को चुनौती दी गयी है कि जिसमे इस बात पर जोर दिया जा रहा है कि लोक ट्रेनों एवं सार्वजनिक परिवहन के अन्य साधनों से यात्रा करने के लिए व्यक्ति को कोविड-19 रोधी टीकों की दोनों खुराक अवश्य ही लगी होनी चाहिए।
पीठ ने यह भी जानना चाहा कि याचिका के जवाब में दाखिल किये गये अपने हलफनामे में सरकार ने यह किस आधार पर कहा है कि टीका ले चुके इंसान की तुलना में बिना टीका वाले व्यक्ति को कोविड-19 से संक्रमित होने का खतरा है और ऐसी स्थिति में इस वायरस के फैलने की आशंका अधिक है ।
न्यायमूर्ति दत्ता ने सवाल किया, ‘‘ कैसे सरकार यह कह सकती है? किस आधार पर यह बयान दिया गया। टीका ले चुके व्यक्ति भी इस वायरस की चपेट में आ सकते हैं।’’
अदालत ने कहा, ‘‘ (हमें) वे फाइल एवं आंकड़े दिखाइए जिनके आधार पर राज्य कार्यकारी समिति ने (स्थानीय ट्रेनों में बिना टीका वाले व्यक्तियों को सफर की इजाजत नहीं देने) का निर्णय लिया।’’
इस पर राज्य सरकार के वकील एस यू कामदार ने कहा कि टीका ले चुके व्यक्ति संक्रमित होते तो हैं लेकिन उन्हें हल्के लक्षण होते हैं। उन्होंने कहा कि वह वे सारी फाइल एवं आंकड़े अदालत में जमा करने को तैयार हैं।
अदालत ने मामले की अगली सुनवाई की तारीख बुधवार तय करते हुए कहा कि वह बस इतना सुनिश्चित कर रही है कि यह फैसला करते समय कानून का पालन किया गया या नहीं।
फिरोज मिठिबोरवाला ने जनहित याचिका दायर कर रखी है जिसमें एक मार्च, 2022 को महाराष्ट्र सरकार के परिपत्र को चुनौती दी गयी है। इस परिपत्र में कोविड-19 महामारी के मद्देनजर मानक संचालन प्रक्रिया एवं नागरिक के लिए सुरक्षा उपाय सूचीबद्ध किये गये हैं।
परिपत्र में बिना टीका वालों के स्थानीय ट्रेनों समेत सार्वजनिक परिवहन में सफर करने पर पाबंदी शामिल है। याचिकाकर्ता ने ऐसी पाबंदी को मनमानापूर्ण एवं असंवैधानिक करार दिया है।
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