देश की खबरें | नागरिक सुरक्षा केंद्र को आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के साथ जोड़ने पर फैसला करे महाराष्ट्र सरकार : अदालत

Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on India at LatestLY हिन्दी. बंबई उच्च न्यायालय ने तटीय जिलों में नागरिक सुरक्षा केंद्रों को राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के साथ जोड़ने के प्रस्ताव पर चार जुलाई तक कोई फैसला करने में विफल रहने पर महाराष्ट्र सरकार के खिलाफ अवमानना कार्रवाई शुरू करने की चेतावनी दी है।

मुंबई, आठ जून बंबई उच्च न्यायालय ने तटीय जिलों में नागरिक सुरक्षा केंद्रों को राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के साथ जोड़ने के प्रस्ताव पर चार जुलाई तक कोई फैसला करने में विफल रहने पर महाराष्ट्र सरकार के खिलाफ अवमानना कार्रवाई शुरू करने की चेतावनी दी है।

मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति एम. एस. कार्णिक की खंडपीठ सोमवार को राज्य के राजस्व विभाग के एक सेवानिवृत्त अधिकारी शरद राउल द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिका में रत्नागिरी और सिंधुदुर्ग जिलों में नागरिक सुरक्षा केंद्र स्थापित करने की मांग की गई थी।

वर्ष 2021 में दायर याचिका में राउल ने कहा था कि ऐसे केंद्र किसी भी शत्रुतापूर्ण हमले या चक्रवात, भूकंप, बाढ़ और आग जैसी प्राकृतिक आपदाओं से सहायता और सुरक्षा प्रदान करेंगे।

जनहित याचिका में दावा किया गया था कि रत्नागिरी और सिंधुदुर्ग सहित महाराष्ट्र के छह जिलों को 2011 में "बहु-खतरनाक क्षेत्र" घोषित किया गया था। इन जिलों में नागरिक सुरक्षा केंद्र स्थापित करने के निर्देश जारी किए गए थे।

याचिका में कहा गया है कि ऐसे केंद्र मुंबई, रायगढ़, पालघर और ठाणे में स्थापित किए गए हैं, लेकिन रत्नागिरी और सिंधुदुर्ग में उनकी स्थापना नहीं की गई है।

उच्च न्यायालय ने बुधवार को उपलब्ध कराए गए अपने आदेश में कहा कि राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के साथ नागरिक सुरक्षा केंद्रों को जोड़ कर पुनर्गठित करने का राज्य सरकार का प्रस्ताव पांच साल से अधिक समय से लंबित है।

सोमवार को सुनवाई के दौरान अतिरिक्त सरकारी वकील बी. वी. सामंत ने अदालत से कहा कि राज्य सरकार के गृह विभाग ने इस पर अंतिम फैसला लेने के लिए समय को दो महीने बढ़ाने की मांग की है।

इससे नाराज़ पीठ ने अपने आदेश में कहा “ हमें यह टिप्पणी करने में कोई संकोच नहीं है कि राज्य सरकार राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के साथ नागरिक सुरक्षा केंद्रों को जोड़ने के प्रस्ताव पर अंतिम निर्णय लेने में पूरी तरह से लापरवाही बरत रही है।”

पीठ ने कहा कि वह राज्य सरकार को एक आखिरी मौका दे रही है। अदालत ने मामले की सुनवाई को चार जुलाई तक के लिए स्थगित कर दिया।

अदालत ने कहा “यह स्पष्ट किया गया है कि यदि राज्य उस समय तक उचित निर्णय लेने में विफल रहता है तो हमारे पास अदालत की अवमानना ​​अधिनियम के तहत कार्रवाई शुरू करने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है, जिसमें गृह विभाग के प्रधान सचिव की व्यक्तिगत उपस्थिति भी शामिल है।”

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