लॉकडाउन: प्रेम और धैर्य की ताकत समेटे यात्रा करने वाले लोग

महामारी के इस दौर में शांत और बंद पड़े भारत के बीच सड़कों पर अपनी कार, स्कूटर और यहां तक की साइकिल पर लंबी दूरी तय कर अकेले ही अपने परिजनों से मिलने पहुंचे साहसी लोगों ने सुर्खियां बटोरी।

जमात

नयी दिल्ली, 18 अप्रैल देशव्यापी लॉकडाउन के कारण ट्रेन, बस और हवाई सेवा बंद होने के बावजूद कुछ लोग सैकड़ों किलोमीटर यात्रा कर अपनी संतान और परिजनों से मिलने पहुंचे।

महामारी के इस दौर में शांत और बंद पड़े भारत के बीच सड़कों पर अपनी कार, स्कूटर और यहां तक की साइकिल पर लंबी दूरी तय कर अकेले ही अपने परिजनों से मिलने पहुंचे साहसी लोगों ने सुर्खियां बटोरी।

एक माँ स्कूटी पर निजामाबाद से 1400 किलोमीटर की यात्रा कर नेल्लोर अपने बेटे को लेने पहुंची, एक पिता अपनी बेटी को लेने बोकारो से गाड़ी चलाकर कोटा तक गए, अमृतसर के एक वृद्ध दंपत्ति ने अपने बेटे के अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए बेंगलुरु तक की यात्रा की, एक महिला ने अपनी अवसाद ग्रस्त बहन से मिलने के लिए एक ही दिन में लखनऊ से दिल्ली और वापसी की यात्रा की।

प्रेम और धैर्य की ताकत समेटे इन लोगों की यात्राओं और अनुभवों ने उस विशालता का एहसास कराया है जिसे भारत कहा जाता है।

इनकी यात्राओं के माध्यम से सामान्य लोगों की असामान्य क्षमता का पता चलता है।

काला बुरका पहने लाल स्कूटी पर पीछे अपने बेटे को बिठा कर यात्रा करने वाली रजिया बेगम चर्चा का केंद्र बनीं।

निजामाबाद में एक स्कूल की प्रधानाध्यापिका बेगम (48) ने लॉकडाउन के दौरान आंध्र प्रदेश स्थित नेल्लोर में फंसे अपने 19 वर्षीय बेटे को वापस लाने की खातिर स्कूटर पर तीन दिन तक लगभग 1400 किलोमीटर यात्रा की।

बेगम की तस्वीरें सोशल मीडिया और राष्ट्रीय अखबारों में छाई रहीं।

उन्होंने पीटीआई- से कहा, “छोटे से दोपहिया वाहन पर एक महिला के लिए यह कठिन यात्रा थी। लेकिन अपने बेटे को वापस लाने के संकल्प ने मेरा सारा डर खत्म कर दिया। मैंने रोटियां पैक की और उनके सहारे चलती गई। रात में सड़क पर कोई व्यक्ति और यातायात न होने से डर लगता था।”

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