L.N. Mishra Murder Case : न्यायालय ने पोते को दोषियों के खिलाफ सुनवाई में सहयोग की अनुमति दी

उच्चतम न्यायालय ने 48 साल पहले बिहार के समस्तीपुर रेलवे स्टेशन पर हुए विस्फोट में जान गंवाने वाले पूर्व रेल मंत्री एल.एन. मिश्रा के पोते को हत्या के मामले में दोषियों की अपील की अंतिम सुनवाई में दिल्ली उच्च न्यायालय की सहायता करने की अनुमति दे दी है.

Court | Photo Credits: Twitter

नयी दिल्ली, 1 नवंबर उच्चतम न्यायालय ने 48 साल पहले बिहार के समस्तीपुर रेलवे स्टेशन पर हुए विस्फोट में जान गंवाने वाले पूर्व रेल मंत्री एल.एन. मिश्रा के पोते को हत्या के मामले में दोषियों की अपील की अंतिम सुनवाई में दिल्ली उच्च न्यायालय की सहायता करने की अनुमति दे दी है. दिवंगत नेता के पोते एवं वकील वैभव मिश्रा ने दिल्ली उच्च न्यायालय के सात फरवरी के आदेश को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया. उच्च न्यायालय ने केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को ‘‘निष्पक्ष और पुनः जांच’’ करने का निर्देश देने की उनकी याचिका खारिज कर दी थी.

वैभव मिश्रा ने इस आधार पर मामले की दोबारा जांच की मांग की कि जांच में गड़बड़ी की गई और ‘‘असली दोषियों’’ को बरी कर दिया गया, जिससे ‘‘न्याय का मजाक’’ बना. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और कैबिनेट मंत्री मिश्रा को समस्तीपुर में हथगोले से किए गए विस्फोट में घातक चोटें आईं। वह दो जनवरी, 1975 को ब्रॉड गेज लाइन के उद्घाटन के लिए वहां गए थे. उन्हें इलाज के लिए समस्तीपुर से दानापुर ले जाया गया, जहां तीन जनवरी, 1975 की सुबह उन्होंने दम तोड़ दिया. मिश्रा के अलावा, तत्कालीन विधान परिषद सदस्य सूर्य नारायण झा और रेलवे क्लर्क राम किशोर प्रसाद सिंह की भी विस्फोट में मौत हो गई थी.

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने मिश्रा की दलीलों पर गौर किया और मामले की दोबारा जांच संबंधी याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया। पीठ ने हालांकि याचिकाकर्ता को दिल्ली उच्च न्यायालय की सहायता करने की अनुमति दी. पीठ ने कहा, ‘‘कुछ समय तक मामले पर बहस करने के बाद, याचिकाकर्ता के सुविज्ञ वकील ने दोषियों द्वारा दायर आपराधिक अपीलों की अंतिम सुनवाई के समय दिल्ली उच्च न्यायालय की खंडपीठ की सहायता करने की स्वतंत्रता के साथ इस याचिका को वापस लेने की मांग की, जिसकी अनुमति दी गई.’’

पीठ ने 13 अक्टूबर को पारित अपने आदेश में कहा, ‘‘विशेष अनुमति याचिका को उक्त स्वतंत्रता के साथ वापस लिया गया मानकर खारिज किया जाता है.’’ इससे पहले, उच्च न्यायालय ने सात फरवरी को याचिकाकर्ता द्वारा मांगी गई राहत देने से इनकार कर दिया था.

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