टाटा संस के चेयरमैन एन. चंद्राशेखरन ने कहा- कोविड-19 के बाद की दुनिया में जुगाड़ से नहीं चलेगा काम, नये सिरे से सोचने की जरूरत
कोरोना से जंग (Photo Credits: Pixabay)

मुंबई: कोविड-19 के बाद की दुनिया में ‘जुगाड़, थोड़ा बहुत बदलाव या किसी चालबाजी से मौजूदा समय की दिक्कतें पूरी तरह दूर नहीं हो सकतीं हैं, इसके लिये भारत को पूरी अर्थव्यवस्था के बारे में नये सिरे से सोचने और नया आकार देने की जरूरत है।’’ यह बात टाटा संस के चेयरमैन एन. चंद्राशेखरन ने मंगलवार को कही. चीन का नाम लिए बगैर उन्होंने कहा कि आपूर्ति श्रृंखला के नये संतुलन की कोशिशों से खुदबखुद एक बड़ा अवसर सामने आया है। भारत यदि वह बुनियादी ढांचे के मोर्चे पर काम करता है तो वह इसमें यह सफल हो सकता है.

चंद्रशेखरन 26वें ललित दोषी स्मृति व्याख्यान को संबोधित कर रहे थे. टाटा संस, 110 अरब डॉलर से अधिक के टाटा समूह की विभिन्न कंपनियों की धारक कंपनी है। इसकी स्थापना 1868 में हुई थी. चंद्रशेखरन ने कहा कि हर महामारी में बेहतर बदलाव के लिए बड़े मौके सामने आते हैं। उन्होंने 1920 के स्पेनिश फ्लू को याद करते हुये कहा इसके बाद दुनियाभर में विभिन्न समुदाय स्वतंत्रता के लिए एकजुट हुए थे. यह भी पढ़े | तमिलनाडु: ऑनलाइन क्लासेस के लिए स्मार्टफोन न मिलने पर 10वीं कक्षा के छात्र ने कथित तौर पर की आत्महत्या.

 

उन्होंने कहा, ‘‘आगे आने वाली चुनौतियां कठिन हैं. मुझे इस बात को लेकर कोई शक-शुबहा नहीं. लेकिन एक शताब्दी पहले एक विनाशकारी महामारी के अवशेषों पर एक राजनीतिक क्रांति उभरकर सामने आयी. शताब्दी पूर्व की यह घटना हमें सिखाती है कि बुरे से बुरा संकट भी एक बड़े गहन बदलाव का अवसर लाती है, और आज के समय में यदि हम बहादुर हैं तो हम जीने के नए तरीके के बारे में सोच सकते हैं.

चंद्रशेखरन ने कहा कि कोविड-19 शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में डिजिटल प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल को बढ़ावा देने का उत्प्रेरक बन सकता है और एक बड़ा बदलाव ला सकता है जो कई अरब डॉलर का निवेश करने के बावजूद वेंचर कैपिटलिस्ट लाने में सफल नहीं रहे. चंद्रशेखरन ने कहा कि उनके हिसाब से अपनी मानव पूंजी के बल पर नया भारत शोध और विकास, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, कृत्रिम मेधा और नवीन विनिर्माण इत्यादि में अग्रणी हो सकता है लेकिन इसके लिए सही दिशा में निवेश और मौलिकता के साथ शुरूआत करने की जरूरत है.

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