देश की खबरें | पीड़िता की पहचान का खुलासा करने से जुड़े एक मामले में न्यायाधीशों ने अलग अलग फैसला सुनाया
Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on India at LatestLY हिन्दी. उच्चतम न्यायालय के दो न्यायाधीशों की एक पीठ ने सोमवार को इसको लेकर अलग-अलग फैसला सुनाया कि क्या यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पोक्सो) अधिनियम की धारा 23 के तहत पीड़ित की पहचान का खुलासा करने के अपराध की जांच के लिए पुलिस को एक मजिस्ट्रेट की अनुमति की आवश्यकता है।
नयी दिल्ली, 21 मार्च उच्चतम न्यायालय के दो न्यायाधीशों की एक पीठ ने सोमवार को इसको लेकर अलग-अलग फैसला सुनाया कि क्या यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पोक्सो) अधिनियम की धारा 23 के तहत पीड़ित की पहचान का खुलासा करने के अपराध की जांच के लिए पुलिस को एक मजिस्ट्रेट की अनुमति की आवश्यकता है।
न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी और न्यायमूर्ति जे के माहेश्वरी की पीठ ने इस मुद्दे पर अलग-अलग फैसले दिए।
चूंकि पीठ ने अलग-अलग फैसले सुनाये और वह सहमत नहीं हो पाई, इसलिए रजिस्ट्री को निर्देश दिया गया कि वह मामले को उचित पीठ को सौंपने के लिए इसे तत्काल मुख्य न्यायाधीश एन वी रमण के समक्ष रखे।
शीर्ष अदालत एक समाचार पत्र के संपादक द्वारा दायर एक अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें कर्नाटक उच्च न्यायालय द्वारा दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत पारित एक फैसले को चुनौती दी गई थी जिसमें प्रधान जिला न्यायाधीश, उत्तर कन्नड़, कारवार द्वारा पारित एक आदेश को बरकरार रखा गया था। प्रधान जिला न्यायाधीश ने यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम, 2012 की धारा 23 के तहत अपराध के लिए अपीलकर्ता के खिलाफ संज्ञान लिया था।
संपादक ने समाचार पत्र में प्रकाशित एक समाचार रिपोर्ट में यौन उत्पीड़न के मामले में 16 वर्षीय पीड़िता का नाम लिया था।
न्यायमूर्ति बनर्जी ने अपील खारिज कर दी और इस दलील को स्वीकार करने से इनकार कर दिया कि कथित अपराध की जांच के लिए न्यायिक मजिस्ट्रेट की पूर्व अनुमति नहीं होने के कारण कार्यवाही रद्द कर दी जानी चाहिए।
न्यायमूर्ति माहेश्वरी ने कहा कि जब कोई संज्ञेय अपराध किया जाता है, तो थाने का प्रभारी अधिकारी मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना गिरफ्तारी करने में सक्षम होता है। हालांकि, एक गैर-संज्ञेय अपराध में, पुलिस अधिकारी को अदालत के आदेश के बिना जांच नहीं करनी चाहिए।
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