मुंबई, 13 जून महाराष्ट्र सरकार ने मंगलवार को बंबई उच्च न्यायालय को सूचित किया कि शिक्षा और सरकारी नौकरियों में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए अलग से आरक्षण देना मुश्किल होगा।
महाधिवक्ता बीरेंद्र सराफ ने कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश नितिन जामदार और न्यायमूर्ति संदीप मार्ने की खंडपीठ को बताया कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए अतिरिक्त आरक्षण की व्यवस्था करने से उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्धारित आरक्षण पर 50 प्रतिशत की सीमा भंग हो जाएगी।
सराफ ने कहा, ‘‘पहले से दिये गये वर्टिकल (लंबवत) और हॉरिजेंटल (क्षैतिज) आरक्षण की सीमा को ध्यान में रखते हुए ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए अतिरिक्त आरक्षण प्रदान करना मुश्किल लगता है।’’
अदालत विनायक काशिद नामक ट्रांसजेंडर की ओर से दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिकाकर्ता इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में स्नातक और प्रौद्योगिकी (इलेक्ट्रिकल पावर सिस्टम इंजीनियरिंग) में स्नातकोत्तर है। वह भर्ती प्रक्रिया में ट्रांसजेंडर को शामिल करने के लिए इस साल मई में महाट्रांसको की ओर से जारी किए गए विज्ञापन में संशोधन की मांग कर रहा है।
काशिद के वकील एल.सी. क्रांति ने पहले अदालत को सूचित किया था कि कर्नाटक में सभी जाति श्रेणियों में ट्रांसजेंडर के लिए एक प्रतिशत आरक्षण प्रदान किया गया है, और अनुरोध किया था कि ऐसी आरक्षण नीति महाराष्ट्र में भी अपनाई जाए।
पीठ ने याचिका पर सुनवाई स्थगित कर दी, ताकि (मुद्दे पर गठित) राज्य सरकार की विशेषज्ञ समिति पहले आरक्षण के पहलू पर विचार करे।
राज्य सरकार ने इस साल मार्च में रोजगार और शिक्षा के क्षेत्र में ट्रांसजेंडर की भर्ती के लिए एक शासकीय प्रस्ताव (जीआर) जारी किया था।
जीआर में कहा गया है कि सामाजिक न्याय विभाग के तहत 14 सदस्यों वाली एक विशेषज्ञ समिति गठित की जाएगी।
इन सभी 14 सदस्यों में ज्यादातर राज्य के विभिन्न विभागों के सचिव और मनोवैज्ञानिक शामिल हैं।
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