विदेश की खबरें | कब्जे वाले फलस्तीनी क्षेत्रों में इजराइल की उपस्थिति अवैध, यह खत्म होनी चाहिए : आईसीजे

Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on world at LatestLY हिन्दी. इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के 15 न्यायाधीशों की समिति द्वारा जारी गैर-बाध्यकारी राय की तुरंत निंदा करते हुए कहा कि ये क्षेत्र यहूदी लोगों की ऐतिहासिक “मातृभूमि” का हिस्सा है। लेकिन इस निर्णय का व्यापक प्रभाव अंतरराष्ट्रीय राय पर पड़ सकता है तथा फलस्तीन को एकतरफा मान्यता देने की कोशिशों को बढ़ावा मिल सकता है।

श्रीलंका के प्रधानमंत्री दिनेश गुणवर्धने

इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के 15 न्यायाधीशों की समिति द्वारा जारी गैर-बाध्यकारी राय की तुरंत निंदा करते हुए कहा कि ये क्षेत्र यहूदी लोगों की ऐतिहासिक “मातृभूमि” का हिस्सा है। लेकिन इस निर्णय का व्यापक प्रभाव अंतरराष्ट्रीय राय पर पड़ सकता है तथा फलस्तीन को एकतरफा मान्यता देने की कोशिशों को बढ़ावा मिल सकता है।

न्यायाधीशों ने नीतियों की एक विस्तृत सूची की ओर इशारा किया, जिसमें पश्चिमी तट और पूर्वी यरुशलम में इजराइली बस्तियों का निर्माण और विस्तार, क्षेत्र के प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग, भूमि पर कब्जा और स्थायी नियंत्रण लागू करना तथा फलस्तीनियों के खिलाफ भेदभावपूर्ण नीतियां शामिल थीं, जिनके बारे में उन्होंने कहा कि ये सभी अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन हैं।

न्यायालय ने कहा कि इजराइल को इन क्षेत्रों में संप्रभुता का कोई अधिकार नहीं है, वह बलपूर्वक क्षेत्र पर कब्जा करने के विरुद्ध अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन कर रहा है तथा फलस्तीनियों के आत्मनिर्णय के अधिकार में बाधा डाल रहा है। उसने कहा कि अन्य राष्ट्र इन क्षेत्रों में इजराइल की उपस्थिति को बनाए रखने में सहायता या मदद प्रदान न करने के लिए बाध्य हैं। अदालत के अध्यक्ष नवाफ सलाम द्वारा पढ़े गए 80 से अधिक पृष्ठों के सारांश के अनुसार, इसमें कहा गया है कि इजराइल को बस्तियों का निर्माण तुरंत बंद करना चाहिए और मौजूदा बस्तियों को हटाना चाहिए।

अदालत ने कहा कि इजराइल द्वारा “कब्जा करने वाली शक्ति के रूप में अपनी स्थिति का दुरुपयोग” “कब्जे वाले फलस्तीनी क्षेत्र में उसकी उपस्थिति को गैरकानूनी बनाता है”, और कहा कि इसकी उपस्थिति को “जितनी जल्दी हो सके” समाप्त किया जाना चाहिए।

फलस्तीनी अनुरोध के बाद संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अदालत की राय मांगी गयी। शुक्रवार की सुनवाई गाजा पर इजराइल के 10 महीने के भीषण सैन्य हमले की पृष्ठभूमि में हुई। दक्षिणी इजराइल में हमास के हमलों के बाद उसने यह जवाबी कार्रवाई शुरू की थी। एक अलग मामले में, अंतरराष्ट्रीय न्यायालय दक्षिण अफ्रीका के इस दावे पर विचार कर रहा है कि गाजा में इजराइल का अभियान नरसंहार के बराबर है। इस दावे का इजराइल पुरजोर खंडन करता है।

इजराइल, जो सामान्यतः संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरणों को अनुचित और पक्षपातपूर्ण मानता है, ने सुनवाई के लिए कोई कानूनी टीम नहीं भेजी। इसके बजाय, उसने लिखित टिप्पणियां प्रस्तुत कीं, जिसमें कहा गया कि अदालत के समक्ष रखे गए प्रश्न पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं और इजराइल की सुरक्षा चिंताओं का समाधान करने में विफल हैं। इजराइली अधिकारियों ने कहा है कि अदालत के हस्तक्षेप से शांति प्रक्रिया कमजोर हो सकती है, जो एक दशक से अधिक समय से ठप पड़ी हुई है।

नेतन्याहू ने कहा, “हेग में कोई भी गलत निर्णय ऐतिहासिक सत्य को विकृत नहीं करेगा और इसी तरह हमारी मातृभूमि के सभी क्षेत्रों में इजराइली बस्तियों की वैधता को चुनौती नहीं दी जा सकती है।”

अदालत के बाहर फलस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास के सलाहकार रियाद मलकी ने इस राय को “फलस्तीन, न्याय और अंतरराष्ट्रीय कानून के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण” कहा।

पश्चिम एशिया युद्ध में इजराइल ने 1967 में वेस्ट बैंक, पूर्वी यरुशलम और गाजा पट्टी पर कब्जा कर लिया था। फलस्तीनी तीनों क्षेत्रों को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में चाहते हैं।

इजराइल वेस्ट बैंक को विवादित क्षेत्र मानता है, जिसका भविष्य बातचीत से तय किया जाना चाहिए। उसने हालांकि अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए वहां बस्तियां बसा दी हैं। उसने पूर्वी यरुशलम पर कब्जा कर लिया है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसके इस कदम को मान्यता प्राप्त नहीं है। उसने 2005 में गाजा से अपनी सेना वापस बुला ली थी, लेकिन 2007 में हमास के सत्ता में आने के बाद भी इसने इस क्षेत्र की नाकेबंदी जारी रखी।

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