जरुरी जानकारी | आर्थिक वृद्धि, मुद्रस्फीति, वैश्विक संतुलन के मामले में भारत की स्थिति बेहतर: वित्त मंत्रालय रिपोर्ट

Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on Information at LatestLY हिन्दी. सरकार के नीतिगत और भारतीय रिजर्व बैंक के मौद्रिक नीति उपायों से देश चालू वित्त वर्ष में आर्थिक वृद्धि, मुद्रास्फीति और वैश्विक स्तर पर संतुलन के मामले में दो महीने पहले के मुकाबले बेहतर स्थिति में है। वित्त मंत्रालय की शुक्रवार को जारी मासिक आर्थिक समीक्षा में यह कहा गया है।

नयी दिल्ली, 19 अगस्त सरकार के नीतिगत और भारतीय रिजर्व बैंक के मौद्रिक नीति उपायों से देश चालू वित्त वर्ष में आर्थिक वृद्धि, मुद्रास्फीति और वैश्विक स्तर पर संतुलन के मामले में दो महीने पहले के मुकाबले बेहतर स्थिति में है। वित्त मंत्रालय की शुक्रवार को जारी मासिक आर्थिक समीक्षा में यह कहा गया है।

समीक्षा में कीमत स्थिति के बारे में कहा कि वैश्विक स्तर पर जिंसों के दाम में नरमी के साथ केंद्रीय बैंक के नीतिगत कदम अैर सरकार की राजकोषीय नीतियों से आने वाले महीनों में मुद्रास्फीति को लेकर दबाव पर अंकुश लगेगा।

इसमें कहा गया है कि भारत में मुद्रास्फीतिक दबाव में नरमी आने की संभावना है। इसका कारण लौह अयस्क, तांबा और टिन जैसे महत्वपूर्ण कच्चे माल की कीमतों का जुलाई, 2022 में नीचे आना है। ये सामान घरेलू विनिर्माण प्रक्रिया के लिहाज से महत्वपूर्ण हैं।

खुदरा मुद्रास्फीति जुलाई, 2022 में नरम होकर 6.7 प्रतिशत पर आ गई है, जो इससे पिछले महीने में 7.01 प्रतिशत पर थी।

वैश्विक चुनौतियों के बावजूद अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) ने 2022-23 में भारत की आर्थिक वृद्धि दर 7.4 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया है। यह बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे अधिक है। आरबीआई ने वृद्धि दर चालू वित्त वर्ष में 7.2 प्रतिशत रहने का अनुमान रखा है।

जीएसटी संग्रह, पीएमआई (परचेजिंग मैनेजर इंडेक्स), ई-वे बिल जैसे कुछ प्रमुख आंकड़ें 2022-23 के पहले चार महीनों में आईएमएफ के अनुमान के अनुरूप हैं।

समीक्षा के अनुसार, औद्योगिक उत्पादन सूचकांक और आठ बुनियादी उद्योगों का प्रदर्शन औद्योगिकी गतिविधियों में मजबूती का संकेत देता है। वहीं पीएमआई विनिर्माण जुलाई में आठ महीने के उच्चस्तर पर पहुंच गया। यह नये कारोबार और उत्पादन में वृद्धि को दर्शाता है।

वित्त मंत्रालय के अनुसार, बाह्य मोर्चे पर रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद से निवेशकों में अनिश्चितता बढ़ी है। इससे पूंजी निकासी हुई। यह स्थिति न केवल भारत में है बल्कि अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं (ईएमई) में भी देखने को मिली।

भारत के अलावा अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं की मुद्राओं की विनिमय दर में भी अमेरिकी डॉलर के मुकाबले इस साल जनवरी से जुलाई के दौरान गिरावट देखी गयी। विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने उभरती अर्थव्यवस्थाओं से इस दौरान 48 अरब डॉलर निकाले।

रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के आर्थिक परिदृश्य में वैश्विक निवेशकों का विश्वास बना हुआ है। इसका पता 2022-23 की पहली तिमाही में शुद्ध प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) से पता चलता है जो 13.6 अरब डॉलर पर मजबूत बना हुआ है। जबकि पिछले वर्ष की इसी अवधि के दौरान यह 11.6 अरब डॉलर था।

इसमें कहा गया है कि 2022-23 के लिये भारत का वृद्धि परिदृश्य अभब भी ऊंचा बना हुआ है और मजबूत पुनरुद्धार की पुष्टि करता है।

वित्त मंत्रालय के अनुसार, निजी क्षेत्र और बैंकों के बही-खाते बेहतर हैं। कर्ज लेने और ऋण देने का जज्बा दिख रहा है। जिंसों की कीमतों में वृद्धि के कारण उत्पन्न व्यापार संतुलन जैसे कुछ झटकों को छोड़कर ऐसा लगता है कि अगले वित्त वर्ष 2023-24 में भी आर्थिक वृद्धि अपनी गति बनाए रखेगी।

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