जरुरी जानकारी | आयात घटाने के लिए दलहन, तिलहन में संकर प्रौद्योगिकी को तेजी से अपनाए भारत : पी के मिश्रा
Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on Information at LatestLY हिन्दी. प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव पी के मिश्रा ने बुधवार को कहा कि भारत को दलहन और तिलहन में संकर प्रौद्योगिकी अपनाने में तेजी लानी चाहिए ताकि उत्पादन में कमी की स्थिति को दूर किया जा सके। उन्होंने कहा कि साथ ही इन उन्नत कृषि पद्धतियों को लागू करने में किसानों के सामने आने वाली चुनौतियों को भी स्वीकार किया जाना चाहिए।
नयी दिल्ली, आठ जनवरी प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव पी के मिश्रा ने बुधवार को कहा कि भारत को दलहन और तिलहन में संकर प्रौद्योगिकी अपनाने में तेजी लानी चाहिए ताकि उत्पादन में कमी की स्थिति को दूर किया जा सके। उन्होंने कहा कि साथ ही इन उन्नत कृषि पद्धतियों को लागू करने में किसानों के सामने आने वाली चुनौतियों को भी स्वीकार किया जाना चाहिए।
मिश्रा ने इस बात पर प्रकाश डाला कि आशाजनक परिणाम दिखाने के बावजूद, संकर किस्में, विशेष रूप से अरहर ('तूर दाल') जैसी फसलों में, किसानों के बीच व्यापक रूप से अपनाई नहीं जा सकी हैं।
ट्रस्ट फॉर एडवांसमेंट ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज (टीएएएस) द्वारा यहां आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘अबतक हमने इन दो फसलों पर जितना ध्यान दिया है उससे कहीं अधिक इनपर ध्यान देने की जरूरत है।’’
उन्होंने कहा कि हालांकि बाजार में कुछ संकर सरसों के बीज उपलब्ध हैं, लेकिन खुले परागण वाली किस्मों की तुलना में उनके प्रदर्शन की आगे जांच की जरूरत है।
संकर फसलों के लिए एक आवश्यक वार्षिक बीज खरीद संबंधी दिक्कतों के बारे में बताते हुए मिश्रा ने किसानों को संकर बीजों को बचाकर रखने को कहा। उन्होंने पुनः इस्तेमाल की अनुमति देने वाली प्रौद्योगिकियों को विकसित करने के लिए चल रहे वैश्विक शोध प्रयासों का उल्लेख किया।
उन्होंने कहा कि इससे बीजों की (बार-बार खरीद की) लागत को बचाने में मदद मिलेगी।’’
उन्होंने कहा, ‘‘संकर प्रौद्योगिकी ने कई क्रॉस-परागण वाली, कम मात्रा वाली और उच्च मूल्य वाली खेत की और बागवानी फसलों में उल्लेखनीय श्रेष्ठता दिखाई है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘हालांकि, मक्का, बाजरा और कपास को छोड़कर खेत की फसलों में, संकर ने बड़े क्षेत्रों पर कब्जा नहीं किया है।’’
भारत की सब्जी उत्पादन की सफलता की कहानी संकर प्रौद्योगिकी की क्षमता को रेखांकित करती है। अधिकारी ने इस उपलब्धि का श्रेय मुख्य रूप से संकर किस्म को अपनाने को दिया।
उन्होंने संकर उपज क्षमता में सुधार के लिए केंद्रित अनुसंधान की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए कहा, ‘‘जब तक संकर सर्वोत्तम प्रबंधन स्थितियों और उच्च लाभ पर सर्वोत्तम शुद्ध वंश की किस्मों के साथ सफलतापूर्वक प्रतिस्पर्धा नहीं करते, तब तक खेती के रकबे का विस्तार नहीं होगा।’’
अनुसंधान प्राथमिकताओं में अब ऐसे संकर किस्मों को विकसित करना शामिल है जो उत्पादकता, पोषण और तनाव प्रतिरोध में स्पष्ट लाभ प्रदान करते हैं और साथ ही किसानों के लिए आर्थिक रूप से लाभप्रद भी हैं।
सरकार ने जीन संपादन प्रौद्योगिकी के लिए दिशानिर्देश पेश किए हैं, जो संभावित रूप से फसल सुधार में तेजी ला सकते हैं।
मिश्रा ने कार्यान्वयन चुनौतियों को दूर करने के लिए मजबूत सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) की आवश्यकता पर जोर दिया।
अधिकारी ने कहा कि भारत की दाल आयात पर निर्भरता को कम करने की दिशा में काम करते हुए किसानों की जरूरतों के लिए वैज्ञानिक अनुसंधान को प्रासंगिक बनाने पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।
टीएएएस के अध्यक्ष आर एस परोडा ने आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों पर स्पष्ट नीति और बीज उद्योग के लिए कर छूट जैसे प्रोत्साहनों का आह्वान किया। 10 जनवरी को समाप्त हो रहे तीन दिन के कार्यक्रम में आईसीएआर के महानिदेशक हिमांशु पाठक, भारतीय बीज उद्योग महासंघ के अध्यक्ष अजय राणा, आईसीआरआईएसएटी के महानिदेशक स्टैनफोर्ड ब्लेड सहित अन्य लोग मौजूद थे।
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