देश की खबरें | समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता मिले तो ऐसे जोड़े दंपति के रूप में बच्चा गोद ले सकते हैं: विशेषज्ञ

नयी दिल्ली, नौ अगस्त विशेषज्ञों का कहना है कि कानून व्यक्ति के यौन झुकाव के आधार पर बच्चा गोद लेने पर रोक नहीं लगाता है, लेकिन एलजीबीटीक्यू समुदाय के सदस्य दंपति के रूप में बच्चा तभी गोद ले पाएंगे, जब देश में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता मिल जाए क्योंकि बिना शादी के साथ रहने वाले (लिव-इन)जोड़ों को देश में बच्चा गोद लेने की इजाजत नहीं है।

विधि एवं कार्मिक संबंधी संसदीय स्थायी समिति ने अपनी सिफारिशों में कहा है कि हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम तथा किशोर न्याय अधिनियम में सामंजस्य की जरूरत है ताकि बच्चों को गोद लेने के संबंध में एक समान और समग्र कानून लाया जा सके, जिसके दायरे में सभी धर्म और एलजीबीटीक्यू (समलैंगिक, ट्रांसजेंडर आदि सभी) समुदाय आते हों।

विशेषज्ञों ने समिति की इसी सिफारिश पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की है।

विशेषज्ञों और कार्यकर्ताओं का कहना है कि ये सिफारिशें प्रगतिशील हैं, वहीं एलजीबीटी विवाह को मान्यता और ‘लिव-इन’ में रहने वाले जोड़ों को बच्चा गोद लेने की अनुमति देने के मुद्दों से भी निपटना होगा।

भारत में समलैंगिकता को 2018 में अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया था, लेकिन समलैंगिक जोड़ों के विवाह को अभी तक मान्यता नहीं मिली है। किशोर न्याय अधिनियम के तहत भी कोई एक व्यक्ति या स्थायी वैवाहिक संबंध में रहने वाला जोड़ा ही किसी बच्चे को गोद ले सकता है।

अधिवक्ता और ‘एचएक्यू: सेंटर फॉर चाइल्ड राइट्स’ से जुड़ी तारा नरुला ने कहा कि यौन झुकाव के आधार पर कानून में बच्चा गोद लेने की अनुमति या निषेध नहीं है, इसलिए कोई भी व्यक्ति किशोर न्याय अधिनियम या हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम के तहत बच्चे को गोद ले सकता है।

उन्होंने ‘पीटीआई-’ से बातचीत में कहा, ‘‘लेकिन ऐसा कोई कानून नहीं है, जो समलैंगिक विवाह या लिव-इन संबंधों में बच्चे को गोद लेने की अनुमति देता हो।’’

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