देश की खबरें | उच्च न्यायालय ने ‘तलाक-ए-हसन’ नोटिस को चुनौती देने वाली याचिका पर जवाब मांगा

Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on India at LatestLY हिन्दी. दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली पुलिस और एक मुस्लिम व्यक्ति से जवाब मांगा है, जिनकी पत्नी ने उन्हें भेजे गए ‘तलाक-ए-हसन’ के नोटिस को अमान्य और असंवैधानिक घोषित करने का अनुरोध किया है।

नयी दिल्ली, 27 जून दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली पुलिस और एक मुस्लिम व्यक्ति से जवाब मांगा है, जिनकी पत्नी ने उन्हें भेजे गए ‘तलाक-ए-हसन’ के नोटिस को अमान्य और असंवैधानिक घोषित करने का अनुरोध किया है।

न्यायमूर्ति दिनेश कुमार शर्मा ने ‘तलाक-ए-हसन’ के खिलाफ महिला की याचिका पर दिल्ली पुलिस के आयुक्त और डाबरी थाना प्रभारी को नोटिस जारी किया। ‘तलाक-ए-हसन’ मुसलमानों के बीच पतियों द्वारा अपनी जीवनसाथी को तीन बार में कहकर तलाक देने की प्रथा है।

अदालत मामले पर आगे 18 अगस्त को सुनवाई करेगी। महिला ने याचिका में अपने पति द्वारा उसे भेजे गए ‘तलाक-ए-हसन’ के दो जून के नोटिस को संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21 और 25 तथा मानव अधिकारों के संयुक्त राष्ट्र सम्मेलनों के प्रावधान के विपरीत बताते हुए इसे अमान्य और असंवैधानिक घोषित करने का अनुरोध किया है।

तलाक-ए-हसन वह प्रथा है जिसके द्वारा एक मुस्लिम पुरुष अपनी पत्नी को महीने में एक बार तीन महीने तक तलाक शब्द कहकर तलाक दे सकता है। याचिका में धार्मिक समूहों, संगठनों और नेताओं को निर्देश देने का अनुरोध किया गया है कि "ऐसी प्रथाओं को अनुमति देना या बढ़ावा नहीं देना चाहिए जिससे याचिकाकर्ता महिला को शरिया कानून के अनुसार कार्य करने और ‘तलाक-ए-हसन’ को स्वीकार करने के लिए मजबूर किया जाए।’’

याचिका में पुलिस को भी उसे धार्मिक समूहों और संगठनों से सुरक्षा को लेकर निर्देश देने का अनुरोध किया है ताकि उसे ‘तलाक-ए-हसन’ स्वीकार करने के लिए मजबूर नहीं किया जाए। महिला ने कहा है कि उसने व्यक्ति से सितंबर 2020 में शादी की थी और आरोप लगाया कि उसके ससुरालवालों ने उनकी विधवा मां को धूम धाम से शादी आयोजित करने के लिए मजबूर किया और दहेज की मांग की।

महिला ने आरोप लगाया कि ससुरालवालों की अनुचित मांगों को स्वीकार किए जाने के बावजूद उसे प्रताड़ित किया गया। जिसके बाद उसने दिल्ली महिला आयोग में घरेलू हिंसा की शिकायत तथा 2021 में एक प्राथमिकी भी दर्ज कराई।

याचिका में कहा गया कि अपने और अपने परिवार के खिलाफ किसी भी कार्रवाई से बचने के लिए व्यक्ति ने ‘तलाक-ए-हसन’ का इस्तेमाल किया और सभी कानूनी कार्रवाई वापस लेने के लिए पहला नोटिस दिया। ‘तलाक-ए-हसन’ की प्रथा को चुनौती देने वाली एक याचिका उच्चतम न्यायालय में भी लंबित है।

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